इतिहास में आज का दिन ( अंग्रेज़ी हुकूमत )
आज का दिन इतिहास में
8 अप्रैल 1929
जब क्रांतिकारियों ने खोले अंग्रेज़ी हुकूमत के कान
बहरी अंग्रेजी सत्ता तक भारतीयों की आवाज पहुंचाने वाला असेम्बली बम काण्ड : ( अंग्रेज़ी हुकूमत )
अमर बलिदानी भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त
अंग्रेजों के द्वारा अमानवीय व्यवहार तथा भारतवासियों का शोषण करने से लेकर हमारी भारत माता के ऑंचल से सारा धन-धान्य विदेशों में पहुँचाने तक जिन भारतवासियों ने कष्ट सहे,
अपनी भारत माता को स्वतन्त्र करवाने और अपने भारतवासी भाई-बहनों को सुखी जीवन देने की इच्छा लिए बहुत सारे महान् बलिदानियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, उनमें दो नाम अमर बलिदानी भगत सिंह जी एवं अमर बलिदानी बटुकेश्वर दत्त जी के भी हैं।
8 अप्रैल, 1929 को इन दोनों क्रान्तिकारियों की जोड़ी ने मिलकर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की माँग करने हेतु असेम्बली में बम विस्फोट किया।
“_ संसद भवन कही जाने वाली असेम्बली में जॉन ऑलसेब्रुक साइमन मौजूद था। इस ब्रिटिश व्यक्ति को ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था।
भारतीय सांविधिक आयोग (जिसे आमतौर पर इसके अध्यक्ष के नाम पर साइमन कमीशन के रूप में जाना जाता है)
में सम्भावित संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने के लिए फरवरी-मार्च 1928 और अक्टूबर 1928 से अप्रैल 1929 तक इसके अध्यक्ष जॉन ऑलसेब्रुक साइमन को दो बार भारत भेजा गया था।
साइमन कमीशन को पूरे भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विरोध और प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा और लाहौर से पटना तक काले झण्डे और नारों के साथ स्वागत किया गया। इसी के विरोध में असेम्बली बम काण्ड हुआ
8 अप्रैल 1929 को, दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा(असेम्बली) में अमर बलिदानी भगत सिंह एवं उनके निडर साथी बटुकेश्वर दत्त द्वारा “इंकलाब ज़िंदाबाद
” (क्रांति अमर रहे) के नारों के साथ असेम्बली के खाली स्थान में कम तीव्रता वाले दो हस्तनिर्मित बम फेंके गए, जिस कारण असेम्बली भय से हिल गई थी।
उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाए और दर्शक दीर्घा से लुटेरी अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध पर्चे बरसाए।
पर्चों में लिखा था कि यह बधिरों(बहरों) को सुनाने के लिए एक तेज धमाका है।
बम विस्फोट का उद्देश्य किसी को हानि पहुँचाना नहीं था, अपितु अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगाने
, नागरिक स्वतन्त्रता और श्रमिकों के अधिकारों को कम करने वाले दमनकारी विधेयकों के विरुद्ध शक्तिशाली विरोध का प्रदर्शन करना था। इस घटना के बाद क्रान्तिकारियों की इस प्रतिष्ठित जोड़ी ने आत्मसमर्पण कर दिया था
और वे गिरफ्तार कर लिए गए। उन्होंने बचने का कोई प्रयास नहीं किया, क्योंकि वे चाहते थे कि उनकी आवाज सुनी जाए। ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह के गद्दार बाप शोभा सिंह ने इन क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही दी थी
जिसके लिए अंग्रेजों ने उसे संपत्ति और सम्मान दिए। बाद में कुछ समाचार पत्रों की खबरों ने क्रांतिवीरों को यह कहते हुए उद्धृत किया कि यह प्रशासन की प्रणाली को बदलने को लेकर केवल सरकार के लिए खतरे का संकेत था।
उस समय के समाचार पत्रों ने यह भी खबर छापी थी कि दो स्वतन्त्रता सेनानियों ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की ओर से आगन्तुकों की गैलरी से लाल पत्रक गिराए थे, जिसमें संदेश था – ‘यह बधिरों को सुनाने के लिए एक तेज धमाका है’।
इन दोनों क्रान्तिकारियों को अंग्रेजी क्रूर सत्ता द्वारा इस दबे कुचले भारतीयों की आवाज बनने के कथित अपराध के लिए अंग्रेजी कोर्ट ने आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई।
बाद में अमर बलिदानी भगत सिंह को सांडर्स की हत्या के आरोप में फांसी दे गई जबकि बटुकेश्वर दत्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के बाद जेल से छूट पाए। मातृभूमि के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले इन क्रांतिवीरों को श्रद्धा से नमन।
Today's day in history
This day in history
8 April
When revolutionaries opened the ears of the British rule
The Assembly bomb incident that carried the voice of Indians to the deaf British rule:
Amar Balidani Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt
From the inhumane behaviour and exploitation of Indians by the British to sending all the wealth and grains from the lap of our Mother India to foreign countries, the Indians who suffered,
many great martyrs sacrificed their all with the desire to make our Mother India independent and to give a happy life to their Indian brothers and sisters,
two of them are Amar Balidani Bhagat Singh ji and Amar Balidani Batukeshwar Dutt ji.
On 8 April 1929, this pair of revolutionaries together exploded a bomb in the Assembly to demand freedom of speech.”_ John Allsebrook Simon was present in the Assembly,
now called Sansad Bhavan.
This British man was also referred to in the slogan ‘Simon Go Back’. The Indian Constitutional Commission (commonly known as the Simon Commission after its chairman
John Allsebrook Simon was sent to India twice in February-March 1928 and from October 1928 to April 1929 to study possible constitutional reforms.
The Simon Commission faced protests and
demonstrations in various areas across India and was greeted with black flags and slogans from Lahore to Patna. The Assembly bombing took place in protest against this.
On 8 April 1929, the assembly was bombed by Amar Balidani Bhagat Singh and his fearless companion Batukeshwar Dutt in the Central Assembly of Delhi,
shouting slogans of “Inquilab Zindabad” (Long live the revolution) Two low intensity handmade bombs were thrown in the empty space of the assembly, due to which the assembly was shaken with fear.
They shouted slogans of “Inqlab Zindabad” and showered pamphlets against the plundering British rule from the gallery.
It was written in the pamphlets that this is a loud explosion to make the deaf hear.