जयमल-पत्ता(फत्ता) और कल्लाजी राठौड़ की गौरवान्वित कहानी 

0

वो कहानी जिसे हर वामपंथी ने छुपाने की कोशिश की  ( कल्लाजी राठौड़ )

वो कहानी जो हर हिंदू को गौरवान्वित करती है 

रोंगटे खड़े कर देने वाला युद्ध 

जयमल-पत्ता(फत्ता) और कल्लाजी राठौड़ की कहानी 

जब 8,000 राजपूतो ने अकबर की 60,000 मुगलिया सेना को धूल चटा दी थी 

इतिहास में सभी युद्धों का निर्णय हार या जीत के आधार पर नही किया जा सकता। कुछ युद्धों का परिणाम योद्धाओं के शौर्य, बलिदान और शत्रु द्वारा किए जाने वाले सम्मान पर भी निर्भर करता है। 

जयमल और फत्ता(पत्ता) वह दो वीर पुरुष है जिनकी वीरता से प्रभावित होकर अकबर ने इन वीरों की हाथी पर सवार विशाल पत्थर की मूर्तियां बनवाई थी। ‘

कई इतिहासकारों ने इन वीरो की शौर्य गाथा को इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण जगह दी है परंतु दुर्भाग्य पूर्ण रूप से हमारे इतिहासकारो ने पुस्तकों में अकबर को तो बहुत ही विशेष स्थान दिया है 

किन्तु भारत के ऐसे शूरवीरों का ज़िक्र भी पुस्तकों में ढूंढ पाना मुश्किल है।कर्नल जेम्स टॉड ने जयमल और फत्ता द्वारा अकबर और उसकी सेना के साथ किए संघर्ष को थर्मापायली जैसे युद्ध की संज्ञा दी है। 

जर्मन इतिहासकार द्वारा अकबर पर लिखी पुस्तक में जयमल को “Lion of Chittod” कहा गया है।जयमल और फत्ता का पूरा नाम जयमल मेड़तिया राठौड़ और फत्ता सिसोदिया था। जयमल मेड़तिया राठौड़ , मीरा बाई के सौतेले भाई भी थे।

जयमल मेड़तिया राठौड़  ( कल्लाजी राठौड़ )

महान राजपूत योद्धा जयमल का जन्म सन् 17 सितंबर 1507 को हुआ था। सन् 1544 में जयमल 36 वर्ष की आयु में अपने पिता वीरमदेव की मृत्यु के बाद मेड़ता की राज गद्दी पर बैठे।

 पिता के साथ अनेक युद्धों में सक्रिय भाग लेने के कारण जयमल में बड़ी-बड़ी सेनाओं का सामना करने की सूझ बूझ थी। कुछ ही समय में जयमल मेड़तिया राठौड योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ बन चुके थे।

पत्ता या फत्ता सिसौदिया 

फतेह सिंह चुंडावत (इन्हे पत्ता या फत्ता के नाम से भी जाना जाता है। सन 1555 में इनके पिता की उदयपुर में मृत्यु होने के बाद इन्होंने केलवा की जागीर प्राप्त की। 

1567 में इनकी वीरता और युद्ध कौशल को देखते हुए उदय सिंह ने इन्हे चित्तौड़गढ़ के प्रमुख सेनापति के रूप में नियुक्त किया।

कल्लाजी राठौड़ 

राजपूत इतिहास के वीर योद्धा कल्ला राठौड़ , जयमल राठौड़ भतीजे थे। महाराणा उदयसिंह ने इन्हे रनेला की जागीर प्रदान की थी। कल्ला जी के पिताजी का नाम अचल सिंह था और इनकी माता का नाम श्वेत कुंवर था। 

कल्लाजी लगभग सभी शस्त्र विद्याओं में निपुण थे। कृष्ण भक्त मीरा बाई रिश्ते में कल्लाजी की भुआ लगती थी।जब जयमल जी के द्वारा भेजे गए 

संदेशवाहक से अकबर के चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हमले का समाचार कल्ला राठौड़ को मिला उस समय वो अपने ही विवाह समारोह में थे। 

कल्लाजी ने तोरणोच्छेद के लिए तलवार उठाई ही थी कि इतने में उन्हे संदेशवाहक से संदेश मिलता है कि “अकबर ने अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया है

 और चितौड़ पर बहुत बड़ा संकट आ गया है तथा राव जयमल ने मेवाड़ की रक्षा के लिये आपको युद्ध में तुरंत बुलाया है।

शूरवीर कल्लाजी ने मातृभूमि की आवाज सुन तोरण पर उठी अपनी तलवार को पीछे खींचा और सुंदर राजकुमारी को वही अकेला छोड़ पुनः आकर मिलने का वचन देकर 2000 वीर राजपूत योद्धाओं सहित चित्तौड़ प्रस्थान किया।

कल्लाजी का चित्तौड़ दुर्ग में प्रवेश 

जयमलजी को वीर कल्लाजी के चित्तौड़ आने का संदेश पहले ही प्राप्त हो गया था। इस वजह से अर्द्ध रात्रि को उन्होंने किले का एक दरवाजा खुलवा दिया था। 

किले के निकट अकबर के सेनापति आसिफ खाँ ने अपने मुगल सैनिकों के साथ मोर्चा ले रखा था वहीं पर शाही सैनिकों ने उन्हें रोका। 

कल्लाजी ने मुगल सैनिकों से लड़ते–लड़ते अपने प्रमुख सेनापति रणधीरसिंह से कहा की मेरा दुर्ग में प्रवेश करना चित्तौड़ की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

 इस पर सेनापति रणधीरसिंह ने कल्लाजी को भरोसा दिलाया कि आप अवश्य ही दुर्ग में प्रवेश करेंगे। इसके बाद रणधीरसिंह ने 500 सैनिकों को कल्लाजी को घेरे में लेकर अंदर दुर्ग के अंदर प्रवेश करवाने का आदेश दिया।

 रणधीरसिंह सहित 500 राजपूत योद्धा मुगलों से लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो जाते है परंतु इसके पहले वीर कल्लाजी शेष सेना सहित किले में प्रवेश करने में कामयाब हो जाते है।

जयमल – पता और कल्ला जी राठौड की कहानी जब 8000 राजपूतों ने अकबर की 60000 मुगल सेना को धूल खिला दी थी

चित्तौड़ दुर्ग की रक्षा के लिए मुगल अक्रमणकारियो से संघर्ष और जयमल जी व पत्ता सिसौदिया की सूझ बूझ अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण की योजना गुप्तचरों द्वारा जयमल को बहुत पहले ही मिल चुकी थी

 इस कारण वे बहुत पहले ही चित्तौड़ पहुंच चुके थे। 26 अक्टूबर 1567 को अकबर चित्तौड़ के पास नगरी नामक गांव पहुंचा।

 जिसकी सूचना मिलने पर महाराणा उदय सिंह ने युद्ध परिषद की राय के बाद वीर जयमल और फत्ता को 8000 सैनिकों के साथ चित्तौड़ दुर्ग की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी और स्वयं दक्षिणी पहाड़ों में चले गए।

कठिन युद्ध लड़ने के अनुभवी जयमल ने खाद्य पदार्थों का संग्रह कर युद्ध की तैयारियां प्रारंभ कर दी। उधर अकबर ने चित्तौड़ की सामरिक महत्व की जानकारी एकत्रित कर अपनी रणनीति तैयार की। 

दोनों ओर से संघर्ष शुरु हुआ। आक्रमणकारी अकबर जानता था कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग को जीतना आसान नहीं होगा इसीलिए उसने दुर्ग को जीतने के लिए तोपों का प्रयोग किया।

 तोपों की मार से दुर्ग की दीवारो में दरार पड़ जाती थी जिसे जयमल रात्रि के समय फिर से ठीक करा देते थे। जयमल, फत्ता सिसौदिया की रणनीति से अकबर में खीज बढ़ती जा रही थी 

अनेक महीनों के भयंकर युद्ध के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला जिसके कारण अकबर की सेना में हताशा बढ़ती जा रही थी। 

इसे देखकर अकबर ने किले के नीचे सुरंग खोदने का आदेश दिया जिस कारण उसमें बारूद भरकर दुर्ग की दीवारों को तोड़ा जा सके। 

राजपूत सेना ने सुरंगे बनाने वाले मुगल सैनिकों पर तथा बाकी मुगल सेना पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। सुरंग खोदने वाले मुगल सैनिकों को इतना मारा गया कि मुगलों की लाशों के अंबार लग गए।

इस कारण से अब कोई भी सुरंग खोदने को तैयार नहीं हो रहा था। अकबर ने किले सुरंग खोदने वाले सैनिकों को एक-एक मिट्टी की टोकरी के बदले एक-एक स्वर्ण मुद्राएं दी ताकि कार्य सुचारु रुप से चल सके। 

अकबर की सलाह से सुरंग खोदने वाले मुगल सैनिकों की सुरक्षा के लिए मोटे लेदर (चमड़े) के टेंट भी बनाए गए ताकि सुरंग को आसानी से खोदा जा सके

 और राजपूत सैनिको के द्वारा हमला करने पर कम से कम सैनिक मारे जाए परंतु यह योजना ज्यादा काम ना आ सकी क्योंकि राजपूत योद्धा चित्तौड़गढ़ दुर्ग के ऊपर से टेंटो पर हमला करते थे

 इस कारण हमला बहुत ही भीषण और घातक होता था और लेदर के बने टेंट उन्हें झेल नहीं पाते थे।

अबुल फजल ने लिखा है कि इस युद्ध में मिट्टी की कीमत भी स्वर्ण के समान हो गई थी। बादशाह अकबर जयमल के पराक्रम से भयभीत और आशंकित था।

 इसलिए उसने राजा टोडरमल के जरिए जयमल को संदेश भेजा कि आप राणा और चित्तौड़ के लिए अपने प्राण क्यों व्यर्थ में गवा रहे हो,

 चित्तौड़ दुर्ग पर मेरा कब्जा करा दो मैं तुम्हें तुम्हारा पैतृक राज्य मेड़ता और अन्य राज्य भेंट दूंगा। लेकिन जयमल ने अकबर का प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा 

कि राणा और चित्तौड़ के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता और मेरे जीवित रहते तुम्हारी मुगल सेना किले में प्रवेश नहीं कर पाएगी।

अकबर भी युद्ध के परिणाम को लेकर बहुत चिंतित था इसीलिए वह भी दुर्ग के पास लगे मुगल सेना के कैंप में मौजूद था।

 अकबर इतना चिंतित था कि उसने अजमेर शरीफ दरगाह पर जाने की बात भी कही थी अगर उसे यहां विजय मिलती है तो। 

अंततः इतनी मशक्कत करने के बाद मुगल सेना कुछ सुरंगों के द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग की दीवारों को तोड़ने में कामयाब रही परंतु

 जब सामने पत्ता(फत्ता) सिंह सिसोदिया और जयमल जैसे अनुभवी वीर योद्धा हो तो मुगल सेना के लिए दुर्ग में प्रवेश करना इतना आसान कैसे हो सकता था।

पत्ता सिंह सिसोदिया ने अपनी सेना को आदेश दिया कि जहां-जहां मुगल सेना दीवारों को तोड़ने में कामयाब रही है 

वहां मिट्टी का तेल डालकर और लकड़ी, रूई और कुछ अन्य ज्वलनशील वस्तुओं को रख दिया जाए। इस योजना का इस्तेमाल करते हुए पत्ता सिंह सिसोदिया ने मुगलों का दुर्ग में प्रवेश रोक दिया। 

एक रात्रि को अकबर ने देखा कि किले की दीवार पर हाथ में मशाल लिए एक सामंत दीवार का मरम्मत कार्य देख रहा है तभी अकबर ने अपनी संग्राम नामक बंदूक से गोली दागी जो उस सामंत के पैर में लगी।

 वो सामंत कोई और नहीं खुद जयमल मेड़तिया थे। जयमल के पैर में गोली लगने से उनका चलना दूभर हो गया। उनके घायल होने से किले के अंदर शूरवीरों में क्रोध की ज्वाला फट पड़ी और मुगलों को अंतिम समय तक मारने का प्रण लिया गया।

दूसरा यह था कि मात्र 8000 राजपूत योद्धाओं ने लगभग 16 हजार से 17 हजार मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

 तीसरा कारण था कि दुर्ग के अंदर महाराणा उदयसिंह नहीं मिले और ना ही कोई खजाना।अपनी इसी खीज को मिटाने के लिए अकबर ने दुर्ग के अंदर प्रवेश करने वाली मुगल सेना को अंदर मौजूद आम नागरिकों तथा 

आसपास रहने वाले किसानों तथा निर्दोष लोगों की हत्या करने का आदेश दिया। प्रामाणिक इतिहास की पुस्तकों के अनुसार लगभग 30,000 निर्दोष नागरिकों को अकबर की सेना ने मौत के घाट उतार दिया

 यह अकबर पर लगने वाला सबसे बड़ा धब्बा है।इस युद्ध में जयमल और पत्ता सिसोदिया की वीरता ने अकबर के हृदय में ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि अकबर ने दोनों वीरों की हाथी पर

 सवार पत्थर की विशालकाय मूर्तियां बनवाई जिनका कई विदेशी पर्यटकों और इतिहासकारों ने अपने लेखों में उल्लेख किया है।

हर हर महादेव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *