क्यों आदिवासी 1 जनवरी को काला दिवस मनाते है ?

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आदिवासी

ना भूलेंगे ना भुलने देंगे 

क्यों आदिवासी 1 जनवरी को काला दिवस मनाते है ?

1 जनवरी आज का दिन इतिहास में 

स्वतन्त्रता पश्चात् प्रथम संघर्ष : 

खरसावां गोलीकाण्ड

स्वतन्त्रता पश्चात् प्रथम गोलीकाण्ड-

जब पुलिस व आदिवासियों के बीच हुआ था खूनी संघर्ष। खरसावां गोलीकाण्ड में कई लोग बलिदान हुए थे।

 गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार सैकड़ों लोग मारे गए थे। हालांकि बिहार सरकार 100 बताती है और ओडिशा सरकार मात्र 40 । 

पहली जनवरी, 1948 को यह लोमहर्षक घटना घटी थी। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने लिखा कि खरसावां में 500 से अधिक लोग मारे गए थे। लोहिया ने इस पर लेख भी लिखा — 

खरसावां का रक्तस्नान

तीन जनवरी को कलकत्ता (कोलकाता) में अपने भाषण में सरदार पटेल ने इस घटना की निन्दा की। अन्तत: पाॅंच महीने बाद सरायकेला-खरसावां का बिहार में विलय कर दिया गया। स्वतन्त्रता के उपरान्त देशी रियासतों का विलय हो रहा था। 

सरायकेला-खरसावां राज का भी विलय होना था। 14 दिसंबर 1947 को कटक में हुई बैठक में खरसावां राजा बिहार में विलय के पक्षधर थे। 

उन्होंने दो तर्क दिए थे– पहला, यह इलाका बिहार के सिंहभूम जिले का हिस्सा है और दूसरा, स्थानीय आदिवासी आबादी का बहुमत सिर्फ बिहार के साथ विलय को उत्सुक है। 

वीपी मेनन अस्थायी समाधान के पक्ष में थे और उन्होंने भविष्य में लोगों की इच्छा जानने के लिए जनमत संग्रह का सुझाव दिया।

 इसके बाद 18 दिसम्बर को ही ओडिशा के अधिकारी व पुलिस की तीन कम्पनी पहुँच गई थी। ओडिशा पुलिस यहा चल रहे आन्दोलन को देखते हुए 31 दिसम्बर को ही धारा 144 लगा चुकी थी।

 खरसावां में 31 दिसम्बर को 15 हजार लोग इकट्ठा हो गए थे। उस दिन धारा-144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई। सवेरे तक हाट मैदान में इकट्ठा लोगों की संख्या 30 हजार के आसपास पहुॅंच गई थी। 

लोग केवल आसपास के गाॅंवों से ही नहीं आए थे, अपितु चाईबासा, जमशेदपुर, चक्रधरपुर, रांची जैसे दूर के इलाके से भी आए थे। वे परम्परागत हथियारों से लैस थे और विलय-विरोधी नारे लगा रहे थे। 

बहुत सारे लोग अपने राजा जयपाल सिंह को देखने के लिए आए थे। सरायकेला-खरसावां के विलय के सवाल को लेकर विशाल रैली थी। रैली को जयपाल सिंह सम्बोधित करने वाले थे, किन्तु वे अज्ञात कारणों से नहीं आ सके। 

जयपाल सिंह की जयकार लगाते हुए अपने पारम्परिक हथियारों के साथ आगे बढ़ रही थी कि अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। सैकड़ों लोग मारे गए। हाट मैदान में एक कुआं था, जो लाशों से पट गया था।

 अगले दिन यानी 2 जनवरी, 1948 को पता चला कि खरसावां में कर्फ्यू लगा दिया गया है और किसी को भी बाहर जाने की इजाजत नहीं है। 

1 जनवरी, 1948 को हुए लोम हर्षक गोलीकाण्ड में बलिदान देने वाले सभी आदिवासी वीर सपूतों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि आप सभी का बलिदान देश भूल जाय पर कुछ जीवित आत्मा नहीं भूलेंगे 

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