लालच और भय के कारण इस्लाम कुबूलने के स्थान पर धर्मरक्षा के लिए बलिदान होना स्वीकार कर गए सिख पंथ के गुरु अर्जन देव जी के प्रेरणादायक पावनजीवन या उनके बलिदान को शब्दों में पिरो पाना अत्यंत कठिन है। किन्तु तब जरा से लालच या भय के कारण धर्मभ्रष्ट होने से बचाने हेतु उनका जीवन बच्चे बूढ़े जवान हर व्यक्ति के मस्तिष्क में भरा जाना चाहिए।
जीवन परिचय
सिखों के पांचवे गुरु अर्जन देव जी, चौथे गुरु राम दास जी और माता भानी जी के सुपुत्र थे। आपने अपने पिता द्वारा आरंभ करवाए गए रामदास सरोवर को पक्का करवाया और उसके पश्चात् सरोवर के बीचों बीच दरबार साहिब जिसे बहुत से लोग हरमिंदर साहिब या स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जानते हैं, उसका निर्माण भी करवाया।
आपने भाई गुरदास जी द्वारा सारे गुरु साहिबान और अन्य कई विद्वानों की वाणी को राग अनुसार संग्रह करवाया और इस प्रकार आदिग्रन्थ की संरचना हुई जिसका प्रकाश दरबार साहिब में किया गया। इतिहासकार गुरु जी के बलिदान होने का कारण कुछ भी या किसी को भी बताएं, पर सच यही है की उनके बढ़ते प्रभाव और अनुयाईयों से मुग़ल और खासकर उलेमा बिलकुल नाखुश थे या यूँ कहलें कि उनमें ख़ौफ़ था, जी हाँ ख़ौफ़।
वो तो बस मौके की तलाश में थे, फिर चाहे वो मौका उन्हें दीवान चंदु शाह ने दिया हो या नक़्शबन्दी संप्रदाय के शेख़ अहमद सिरहिंदी ने। जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को अमृतसर से गिरफ़्तार कर लाहौर लाया गया।
मुग़ल दरबार में उन पर शेख़ अहमद सिरहिंदी और शेख़ फरीद बुखारी जो कि जहाँगीर का विशेष सैन्य अधिकारी था द्वारा जहाँगीर के बेटे खुसरो तथा उसके साथिओं को पनाह देने, इस्लाम के प्रचार में बाधक बनने,
इस्लाम के विरुद्ध प्रचार करने तथा आदिग्रंथ में इस्लाम का अपमान करने जैसे कई सारे मिथ्या आरोप लगा कर जहाँगीर से उन पर एक बड़ी राशि देने का दण्ड दिलवाया। यहाँ कुछ इतिहासकार इस राशि को एक और कुछ दो लाख बताते हैं।
जब गुरु अर्जन देव जी ने दण्ड स्वरुप मांगी गयी राशि देने से मना कर दिया तो शेख़ अहमद सिरहिंदी ने शाही क़ाज़ी से उनके नाम का फ़तवा जारी करवाया। फ़तवे में यह कहा गया था
कि “अगर गुरु अर्जन देव जी दण्ड की राशि का भुगतान नहीं कर सकते तो उन्हें इस्लाम कबूल करना होगा अन्यथा मृत्यु के लिए त्यार हो जाएं।” तब गुरु जी ने उन्हें यह उत्तर दिया कि “जीवन मरण तो सब उस अकाल पुरख (ईश्वर) के हाथ में है, इस्लाम कबूल करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।”
गुरु अर्जन देव जी से बर्बरता
इस पर क़ाज़ी ने उन्हें यासा के कानून के अंतर्गत मृत्यु दण्ड का फतवा दिया। ऐसे में अहमद सिरहिंदी ने गुरु जी को यातनाएं दे कर इस्लाम कबूल करवाने की योजना बनाई। उसने पहले गुरु जी को कड़ी धूप में भूखे प्यासे खड़े रखा।
जब उसका गुरु जी पर कोई असर नहीं हुआ तो उन्हें लोहे के बड़े तवे पर बिठा कर उनके ऊपर गरम रेत डाली गयी। परन्तु तब भी गुरु जी अपने निश्चय पर अडिग रहे।
ऐसा देख कर जलादों ने उन्हें उबलती हुई देग में बिठा दिया और इस प्रकार गुरु जी का देहांत हो गया। उनके शरीर को रावी नदी में बहा कर ये कह दिया गया की उन्होंने ने नदी में सनान करने की इच्छा प्रकट की थी और वापिस नहीं लौटे अथवा जल समाधी ले ली।
गुरु जी द्वारा सहे गए इन्ही कष्टों को ध्यान में रखते हुए और उनके परम बलिदान से प्रेरणा लेते हुए हर साल उसी समय सिख संगत सारी दुनिया में छबील लगाती है। तपती धुप में लोगों को ठंडा शरबत पिलाया जाता है। कई गुरुद्वारों में इस महीने हर सप्ताह शबील लगाई जाती है।
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान होने के पश्चात् एक मुगल शेख़ अहमद सिरहिंदी ने अपनी चिठ्ठी “मकतूबत इमाम रब्बानी” में उनके बारे में लिखा कि,
गोइंदवाल के इस भ्रष्ट काफ़िर की शहादत से हमारी एक बड़ी जीत हुई है, चाहे उसे कैसे भी और किसी भी बहाने से मरवाया गया हो,
इससे काफिरों को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। सारे मुसलमानो के लिए यह एक बहुत बड़े फायदे की बात है। इस काफिर के मरने से पहले मैंने एक सपना देखा था जिसमें बादशाह जहाँगीर ने कुफ़्र का सिर कुचल दिया था।
इसमें में कोई शक नहीं है की यही काफिर, काफिरों का बड़ा मुखिया था।।
मकतूबत इमाम रब्बानी – पृष्ठ क्रमांक १९३ मुझे व्यक्तिगत रूप से इस बात पूरा भरोसा है कि शेख़ अहमद सिरहिंदी को ऐसा कोई सपना नहीं आया होगा अपितु दिन रात खुली आँखों से वह ये सपना देखता जरूर होगा।
मृत्यु
जिरु अर्जुनदेव जी की 30 मई, 1606 को मृत्यु हुई।
मुग़लों ने हमारे सिख गुरुओं के अतिरिक्त भी और कई सारे सिखों/हिंदुओं को मरवाया था। परन्तु इस सब के बारे में हम में से संभवतः ही किसी ने कभी पढ़ा या सुना होगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है की हमने अपने स्कूलों में जो इतिहास की पुस्तकें पढ़ी हैं उनमें यह सब लिखा ही नहीं गया था।
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