चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य 

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चक्रवर्ती सम्राट

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य संपूर्ण जीवन परिचय

अनुसार आज से 2288 वर्ष पूर्व उज्जैन में हुआ ।इनके पिता का नाम  गंधर्वसेन तथा माता का नाम सौम्यदर्शना था।
वर्ण से सूर्यवंशी क्षत्रिय थे । ये परमार वंश से थे।इनकी सेना का नाम  भैरव सेना था। इनके  इष्ट देवता महाकाल जी थे।
 
इनकी  कहानियां 
 बृहत्कथा , विक्रम वेताल और सिंहासन 
 
नौरत्न – धन्वन्तरि, क्षपनक, अमरसिंह, शंकु, खटकरपारा, कालिदास, वेतालभट्ट (बेतालभट्ट), वररुचि और वराहमिहिर, राजकवि ,कालिदास
 
मंत्री परिषद
सेनापति – विक्रमशक्ति और चंद्र 
मंत्री – भट्टि और बहसिंधु
राज्य- आज का पूरा भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्की, अफ्रीका, अरब, नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया, श्रीलंका, चीन और रोम तक राजा विक्रमादित्य का राज्य फैला हुआ था।
 
समकालिक  ईशु मसीह ईसा से 57 ईस्वी पूर्व महाराज विक्रमादित्य ने ही विक्रम सम्वत की शुरुआत की और वर्ष को 12 मासों में बांटा। ये 12 मास हिन्दू पंचांग में विशेष स्थान रखते हैं और इन्ही के अनुसार हिन्दू नव वर्ष आरम्भ होता है। 

12 मास ( चक्रवर्ती सम्राट )

चैत्र-मार्च
वैशाख-अप्रैल
ज्येष्ठ-मई
आषाढ़-जून
श्रावण-जुलाई
भाद्रपद-अगस्त
अश्विन-सितम्बर
कार्तिक-अक्टूबर
मार्गशीर्ष-नवम्बर
पौष-दिसंबर
माघ-जनवरी
फाल्गुन- फरवरी
 

 भारत में चक्रवर्ती सम्राट उसे कहा जाता है जिसका की संपूर्ण भारत में राज रहा है। ऋषभदेव के पुत्र राजा भरत पहले चक्रवर्ती सम्राट थे, जिनके नाम पर ही इस अजनाभखंड का नाम भारत पड़ा।विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे ।

 अपनी बुद्धि, अपने पराक्रम, अपने जूनून से इनका नाम आर्यावर्त के इतिहास में अमर है।राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा का हाल-चाल देखने के लिए साधारण वस्त्रों में या वेश बदलकरअपने राज्य का भ्रमण करते थे।

 

 उज्जैन के महाराजा चक्रवर्ती सम्राट प्राचीन भारत के एक महान सम्राट हैं , जिन्हें अक्सर एक आदर्श राजा के रूप में जाना जाता है, उन्हें उनकी उदारता, साहस और विद्वानों के संरक्षण के लिए जाना जाता है।विक्रमादित्य को सैकड़ों पारंपरिक भारतीय किंवदंतियों में चित्रित किया गया है,

 जिनमें बैयल पचीसी और सिंघासन बत्तीसी शामिल हैं, कई लोग उन्हें उज्जैन में अपनी राजधानी के साथ एक सार्वभौमिक शासक के रूप में वर्णित करते हैं । उनके पराक्रम को देखकर ही उन्हें महान सम्राट कहा गया और उनके नाम की उपाधि कुल 14 भारतीय राजाओं को दी गई।

उपाधि ( चक्रवर्ती सम्राट )

 “विक्रमादित्य” की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की थी, जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय और सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (जो हेमु के नाम से प्रसिद्ध थे) उल्लेखनीय हैं। राजा विक्रमादित्य नाम,
 
‘विक्रम’ और ‘आदित्य’ के समास से बना है जिसका अर्थ ‘पराक्रम का सूर्य’ या ‘सूर्य के समान पराक्रमी’ है।उन्हें विक्रम या विक्रमार्क (विक्रम + अर्क) भी कहा जाता है (संस्कृत में अर्क का अर्थ सूर्य है)।
 
नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। राजा गंधर्व सेन का एक मंदिर मध्यप्रदेश के सोनकच्छ के आगे गंधर्वपुरी में बना हुआ है।उनके पिता को महेंद्रादित्य भी कहते थे। उनके और भी नाम थे जैसे गर्द भिल्ल, गदर्भवेष।
 
गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। चक्रवर्ती सम्राट  ब्रहरताहारी के छोटे भाई थे, जिन्होंने सांसारिक सुखों को त्याग दिया और शिप्रा नदी के तट पर उज्जैन में एक गुफा में तपस्या की।
 
विक्रम की माता का नाम सौम्यदर्शना था जिन्हें वीरमती और मदनरेखा भी कहते थे।प्रमुख मित्रों में भट्टमात्र का नाम आता है। राज पुरोहित त्रिविक्रम और वसुमित्र थे।
 
 कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे।
 
विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।
 
राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव कार्य करते थे। इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रीय राजाओं में से एक माने गए हैं।कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का शासन था।
 
भर्तृहरित के शासन काल में शको का आक्रमण बढ़ गया था। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर जब राज्य त्याग दिया तो विक्रम सेना ने शासन संभाला और उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया।
 
इसी की याद में उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया।
Chakravarti Emperor Vikramaditya Complete Biography
 The full name of Chakravarti Emperor Vikramaditya was Vikram Sen Parmar. According to Vikram Samvat, Vikramaditya was born in Ujjain 2288 years ago. His father’s name was Gandharvsen and his mother’s name was Saumyadarshna. 
 
 He was a Suryavanshi Kshatriya by caste. He belonged to the Parmar dynasty. The name of his army was Bhairav ​​Sena. His favorite deity was Mahakal ji. 
 
 Their stories Brihatkatha, Vikram Vetal and throne 
 
 Nauratna – Dhanvantari, Kshapanak, Amarsingh, Shanku, Khatkarpara, Kalidas, Vetalbhatt (Betalbhatt), Varruchi and Varahamihir, court poet, Kalidas 
 
 Council of Ministers
 
 Commander-in-Chief – Vikramshakti and Chandra 
 
 Ministers – Bhatti and Bahsindhu 
 
 Kingdom – The kingdom of King Vikramaditya was spread across today’s entire India, Pakistan, Afghanistan, Tajikistan, Uzbekistan, Kazakhstan, Turkey, Africa, Arabia, Nepal, Thailand, Indonesia, Cambodia, Sri Lanka, China and Rome. 
 
 Maharaja Vikramaditya started Vikram Samvat 57 BC before Jesus Christ and divided the year into 12 months. These 12 months hold a special place in the Hindu calendar and the Hindu New Year begins according to them.

12 months

Chaitra-March 
 Vaishakh-April 
 Jyestha-May 
 Ashadha-June
 Shravan-July 
 Bhadrapada-August 
 Ashwin-September 
 Kartik-October 
 Margashirsha-November 
 Paush-December
 Magh-January 
 Phalguna-February

5 thoughts on “चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य 

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