तात्याटोपे जी : जीवन परिचय

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तात्याटोपे

इतिहास में आज का दिन ( तात्याटोपे )

आज का दिन इतिहास में 
 

जन्म- 16 फरवरी 1814

मृत्यु- 18 अप्रैल 1859
 
 1857 का विद्रोह 10 मई को मेरठ से शुरू हुआ था। 

तात्या टोपे जी का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के समीप येवला नामक गाँव में हुआ। तात्या टोपे जी का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था। महाराष्ट्र का येवला उनका पैतृक गांव था। उनके पिता पांडुरंग एक पढ़े लिखे व्यक्ति थे जिन्हें वेद और उपनिषद पूरी तरह स्मरण थे। 

 तात्या टोपे जी भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी।

 

तात्याटोपे जी ने कुछ समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल सेना के तोपख़ाना रेजिमेंट में भी काम किया था। तोपख़ाने में नौकरी करने के कारण ही इनके नाम में टोपे लगा। इस बात का दूसरा और महत्वपूर्ण कारण लोग ये भी मानते है कि एक बार बाजीराव ने तात्या जी को टोपी भेंट में दी थी और तात्या जी स्दैव उस टोपी को पहने रखते थे इसी कारण लोग उनके नाम में टोपे लगाने लगे। 

तात्या टोपे ने महाराष्ट्र के पुणे में गांधीबाग में ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और विजय प्राप्त की। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और पुणे के पिंपरी तालुका में 1857 में ब्रिटिश के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका वीरता, साहस, और स्वतंत्रता के लिए प्रेम ने उन्हें एक लोकप्रिय नेता बना दिया।

तात्या टोपे का अंत ब्रिटिश सम्राट विलियम ल्यूटन के अधीनस्थ पुणे के एक मंदिर में 18 अप्रैल 1859 को हुआ। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर किया था। तात्या टोपे को भारतीय इतिहास में एक वीर पुरुष के रूप में स्थान दिया जाता है, जिनका बलिदान स्वतंत्रता संग्राम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था।

तात्याटोपे जी को ज़िंदा पकड़ना अंग्रेजों के लिये नामुमकिन कार्य था अंग्रेजों ने हज़ारों बार उनको पीछे मिलों तक किया लेकिन छापामार युद्ध नीति में तात्या जी ने महारत हासिल कर रखी थी लेकिन अपनों के द्वारा किया गया

 छल नरवर का राजा मानसिंह ने विश्वासघात किया और इसी कारण अंग्रेजों ने तात्याटोपे जी को सोते हुए ज़िंदा पकड़ लिया। उनका कोर्टमार्शल किया गया और फाँसी की सजा सुनाई।
 
 सात अप्रैल, 1869 तात्या टोपे जी को अंग्रेजो द्वारा गिरफ्तार कर शिवपुरी लाया गया. उन्हें सिपरी गांव लाया गया और दस दिनों के पश्चात ही 18 अप्रैल को उन्हें फांसी दे दी गई।
 
प्रतिभा रानडे ने अपनी किताब में लिखा है कि जिस पत्थर पर तात्या टोपे जी को फांसी दी गई उस पर दुष्ट अंग्रेजों ने लिखवाया, “यहां 18 अप्रैल, 1859 को कुख्यात तात्या टोपे को फांसी दी गई।
 
 वीर पराक्रमी तात्या टोपे जी की पुण्य तिथि पर उन्हें भाव पूर्ण श्रध्दांजलि

Tatya Tope ( तात्याटोपे )

Birth- 16 February 1814
 Death- 18 April 1859 
 
The revolt of 1857 started from Meerut on 10 May. Tatya Tope was born in a village named Yewla near Nasik in Maharashtra. The real name of Tatya Tope was Ramchandra Pandurang Tope.
 
Yevla in Maharashtra was his ancestral village. His father Pandurang was a literate person who had complete knowledge of Vedas and Upanishads. Tatya Tope was a prominent commander of India’s first freedom struggle.
 
His role in the great revolt of 1857 was the most important, inspiring and unmatched.
 
Tatya Tope ji also worked for some time in the Artillery Regiment of the Bengal Army of the East India Company. The name Tope was added to his name because of his job in the Artillery.
 
People also believe that another important reason for this is that once Bajirao gifted a cap to Tatya ji Tatya ji always wore that cap, that is why people started adding Tope to his name.
 
Tatya Tope fought and won against the British troops at Gandhibagh in Pune, Maharashtra. He participated in the Indian freedom struggle and fought against the British in 1857 in Pimpri taluka of Pune.
 
His valour, courage, and love for freedom made him a popular leader. 
 
 Tatya Tope died on 18 April 1859 in a temple in Pune under British Emperor William Luton. He sacrificed everything for freedom. Tatya Tope is given a place in Indian history as a brave man, whose sacrifice was very important for the freedom struggle. 
 
The British couldn’t capture Tatya Tope alive. The British chased him thousands of times for miles but Tatya had mastered the guerilla warfare tactics. But the deceit of his people led to the betrayal of Narwar’s king Man Singh and due to this the British captured Tatya Tope alive while he was sleeping.
 
He was court-martialed and sentenced to death.
 
 On April 7, 1869, Tatya Tope was arrested by the British and brought to Shivpuri. He was brought to Sipri village and ten days later, on April 18, he was hanged. Pratibha Ranade has written in her book that the evil British got written on the stone on which Tatya Tope was hanged,
 
“Here the infamous Tatya Tope was hanged on April 18, 1859.
 
 A heartfelt tribute to the brave Tatya Tope on his death anniversary

6 thoughts on “तात्याटोपे जी : जीवन परिचय

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