ताशकंद एक समझौता या धोखा –

21
ताशकंद

ताशकंद एक समझौता या धोखा –

लाल बहादुर शास्त्री की मौत का कारण एक विवादित मुद्दा है। 1966 में, वह ताशकंद, उस समय की सोवियत यूनियन (अब उजबेकिस्तान) में एक सम्मेलन के दौरान अचानक निधन हो गया था। उनकी मौत के कुछ समय बाद ही,
 
कई अनुसंधानों ने उनकी मृत्यु के पीछे के कारणों पर सवाल उठाए, और कुछ लोग मानते हैं कि उनकी मृत्यु में अद्वितीयता हो सकती है। कुछ लोग समझते हैं कि वे हार्ट अटैक की शिकार हो गए थे, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि उन्हें खाने में ज़हर देकर मारा गया था।

 

ताशकंद समझौता 10 जनवरी 1966 को हुआ था और यह भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक ऐतिहासिक समझौता था।

इस समझौते के माध्यम से, दोनों देशों ने जनरल आयुब खान, जो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, और भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के बीच सीमा समस्याओं का समाधान किया।

इस समझौते के अनुसार, दोनों देशों ने युद्ध के बाद कश्मीर की लड़ाई पर वार्ता की, और उन्होंने सीमा संबंधित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति जताई, जिसमें विजयपुरा और रंची के प्रांतों का समाधान शामिल था।

इसके अलावा, दोनों देशों ने एक-दूसरे के नागरिकों के संरक्षण के लिए एक संयुक्त कमेटी का गठन किया।

क्या था विवाद ( ताशकंद )

अप्रैल 1965 में, पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत को करते हुए, कश्मीरी स्थानीय लोगों के वेश में अपनी विशेष बल इकाई भेजी जिसका उद्देश्य स्थानीय आबादी (कश्मीर के लोगों)

द्वारा भारत सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काकर कश्मीर पर कब्जा करना था। स्थानीय लोगों द्वारा भारतीय सेना को समय पर सूचित करने के कारण ऑपरेशन विफल हो गया। इसके कारण अगस्त 1965 में चौतरफा युद्ध हुआ।

यह उस वर्ष सितंबर तक जारी रहा, जिससे शीत युद्ध -युग की दो प्रमुख महाशक्तियों- संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के शामिल होने का खतरा पैदा हो गया।

लाल बहादुर शास्त्री जी के परिवार की प्रतिक्रिया

लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने कहा था, कि उनके पिता को ताशकंद शहर से 20 किलोमीटर दूर एक होटल में रखा गया। उनके कमरे में न तो फोन था, न हीं कोई बेल,
 
न कोई शख्स मदद के लिए उन्होंने कहा कि शास्त्रीजी हमेशा अपने साथ एक डायरी रखते थे, लेकिन ताशकंद से उनकी डायरी वापस नहीं आई। जिस वजह से उनकी मौत को लेकर संदेह होता है।
 
अनिल शास्त्री के मुताबिक पिता के शरीर पर नीले निशान साफ बताते थे कि उनकी मौत अप्राकृतिक थी।गृह मंत्रालय ने लाल बहादुर शास्त्री जी की आकस्मिक मौत का मामला दिल्ली पुलिस को और नैशनल आर्काइव्स को सौंपा था।
 
शास्त्री जी के बेटे ने इस कदम को बेतुका करार दिया था। उन्होंने कहा था कि कैसे पीएम रहते हुए किसी की मौत के मामले की जांच जिला स्तर की पुलिस को सौंपी जा सकती है। बल्कि जांच उच्च अधिकारियों को करनी चाहिए थी।
 
क्या किसी देश के प्रधानमंत्री की संदिगध अवस्था में मौत युद्ध को आहवाहन नहीं देती है? 
 
क्या भारत सरकार ने उस समय सवाल किए थे?
 
समझौते के मुताबिक़ भारत सरकार को युद्ध में विजयी शहर इलाक़ा वापस पाकिस्तान को देने थे लेकिन लाल बहादुर शास्त्री जी इस बात के विरोध में थे लेकिन फिर अचानक लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो जाती है और समझौते पर उनके हस्ताक्षर भी हो जाते है।
पूरा भारत और स्वयं लाल बहादुर शास्त्री जी कभी नहीं चाहते थे कि जीती हुई ज़मीन वापस दी जाए लेकिन राजनीतिक् षड्यंत्रों की वजह से भारत को अपना प्रधानमंत्री खोना पड़ा। 
 
युद्ध के समय देश के प्रधानमंत्री की मृत्यु का एक नये युद्ध ना आहवाहन नहीं करती है?
 
एक के बाद एक गवाह जो वहाँ मौजूद थे लेकिन गवाही देने से पहले एक्सीडेंट में मौत आख़िर क्यों? 
 
शास्त्री जी के मौत के दौरान कई लोग वहां मौजूद थे। जिनकी गवाही इस रहस्य से पर्दा उठाने में कामयाब हो सकती थी।
 
इसमें पहना नाम डॉक्टर आरएन चुग का माना जाता है कि वह नारायण कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे, तभी एक ट्रक ने उन्हे कुचल दिया और इस एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गयी थी।
दूसरा नाम था शास्त्री जी के नौकर रामनाथ का। अंतिम समय में वह उनके साथ था। डॉ चुग की तरह वह भी गवाही देने के लिए अपने घर से निकला ही था कि उसे सामने से आ रही तेज रफ्तार गाड़ी ने उड़ा दिया,
 
इस एक्सीडेंट में वह बुरी तरह घायल हो गया उसका पैर काटना पड़ा था। उसके होश में आने का इंतजार किया जा रहा था। तभी डॉ ने बताया कि वह अपनी याददाश्त हमेशा के लिए खो चुका है, कुछ महीनों बाद उसकी म्रत्यू हो गयी।
देखा जाए तो मौत से सबसे ज़्यादा फ़ायदा इंदिरा गांधी को मिला लेकिन क्या इंदिरा उस समय इतनी प्रभावशाली थी कि विदेश में अपने ही प्रधानमंत्री को मरवा दे वो भी युद्ध की स्थिति में?
 
दूसरा फ़ायदा रुस को क्यूकी रुस की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया था  लाल बहादुर शास्त्री ने शायद यह बात उनको चुभी।
हालांकि इसी कडी मे कुछ वक्त बाद सीआईए के निदेशक रॉबर्ट क्रॉले के साथ एक साक्षात्कार ने नया खुलासा कर दिया यह चौकाने वाला था,
 
इस साक्षात्कार में क्रॉवे ने पत्रकार ग्रेगरी डगलस को बताया कि सीआईए ने जनवरी 1966 में शास्त्री और डॉ होमी भाभा को मारा था।
 
शास्त्री जी की मृत्यु के 13 दिन बाद ही हमने अग्रणी परमाणु वैज्ञानिक होमी भाभा को खो दिया जो साफ़ साफ़ षड्यंत्रों की ओर इशारा करता है। 
 
इस समझौते से भारत को नुक़सान कैसे हुआ और क्यों शास्त्री जी की मौत पर सवाल उठाए जाते है?
 
इस युद्ध में दोनों देशों को जीती हुई ज़मीन वापस देनी थी, युद्ध बंधिओ को वापस देश को लौटाने थे लेकिन क्या ये दोनों तरफ़ से हुआ? 
 
भारत ने हस्ताक्षर किए लेकिन पाकिस्तान ने वॉर इफ क्लॉज़ पर हस्ताक्षर नहीं किए। जितना लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में सभी जानते है वो कभी भी पहले हस्ताक्षर करने के लिए राज़ी नहीं होंगे।
 
लेकिन इत्तिफ़ाक़ देखिए लाल बहादुर शास्त्री जी के हस्ताक्षर भी हुए और पाकिस्तान ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। 
 

21 thoughts on “ताशकंद एक समझौता या धोखा –

  1. What i do not realize is in fact how you are no longer actually much more wellfavored than you might be right now Youre very intelligent You recognize thus considerably in relation to this topic made me in my view believe it from numerous numerous angles Its like men and women are not fascinated until it is one thing to do with Lady gaga Your own stuffs excellent All the time handle it up

  2. bts89
    Hi there! I’m at work surfing around your blog from my new apple iphone!
    Just wanted to say I love reading through your blog and look forward to all your posts!
    Carry on the great work!

  3. kapten69
    Just desire to say your article is as surprising.
    The clearness to your post is just cool and that i can suppose you’re a professional on this subject.
    Fine with your permission allow me to take hold
    of your RSS feed to stay up to date with drawing close post.
    Thank you one million and please carry on the rewarding work.

  4. beton888 beton888
    beton888
    A motivating discussion is worth comment. I do think that you need
    to write more about this subject matter, it might not be a taboo matter but generally people do not speak about these subjects.
    To the next! Best wishes!!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *