भगवान श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण जी के बारे में संपूर्ण जानकारी
एक योद्धा , एक गौभक्त , चक्रधारी , मुरलीधर
श्री कृष्ण की शिक्षा के बारे में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के गुरु
सांदीपनी थे। जिनका आश्रम अवंतिका (उज्जैन) में है ।
इसके अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण के गुरु गर्ग ऋषि, घोर अंगिरस, नेमिनाथ, वेदव्यास आदि भी बताये जाते हैं I
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भांजे अभिमन्यु को गर्भ में शिक्षा दी थी I
श्री कृष्ण जी के अस्त्र शस्त्रों के नाम
देवकीनंदन भगवान श्रीकृष्ण के शंख का नाम पांचजन्य था, जिसका रंग गुलाबी था। योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के पास जो रथ था, उसका नाम जैत्र था I
भगवान श्री के रथ को चलाने वाले सारथी का नाम दारुक (बाहुक) था। श्री कृष्ण के रथ में जो घोड़े (अश्वों) थे ! उनके नाम प्रकार थे :- 1. शैव्य, 2. सुग्रीव, 3, मेघपुष्प और 4. बलाहक
योगेश्वर श्री कृष्ण की युद्ध कला के बारे में जानकारी
भगवान श्री कृष्ण की सेना नारायणी सेना के नाम से जानी जाती थी I
श्री कृष्ण ने 16 वर्ष की आयु में चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों के मलयुद्ध करके उनका वध किया था।
वासुदेव भगवान श्री कृष्ण जी ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था, परंतु इसमें तीन युद्ध सर्वाधिक भयंकर थे। जिनमे मुख्यत: 1. महाभारत, 2. जरासंध और कालयवन के विरुद्ध 3. नरकासुर के विरुद्ध किया गया युद्ध भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को अपनी हथेली के प्रहार से काट कर वध किया था।
श्री कृष्ण के जीवन का सबसे भयंकर द्वंद्व युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था ! इस युद्ध में श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र और अर्जुन ने पाशुपतास्त्र निकाल लिए थे !
ये दोनों शस्त्र सबसे विनाशक शस्त्र मने जाते हैं ! युद्ध के भयंकर परिणाम को देखते हुये देवताओं के हस्तक्षेप करने पर दोनों शांत हुए ! और युद्ध विराम के बाद सुलह हुई ! उज्जैन के संदीपनी आश्रम में मात्र कुछ महीनों में ही भगवान श्री कृष्ण ने अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी कर ली थी। संदीपनी आश्रम में उन्होंने 16 विद्याये और 64 कलाओं के बारे में सीखा।
वासुदेव भगवान श्री कृष्ण का श्रीमद्भगवत गीता उपदेश
सबसे पहले श्रीमद्भगवत गीता जी का ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण सूर्य को दिया था I उसके बाद महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश दिया था I जो कालांतर बाद के श्रीमद्भगवत गीता नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में कर्म को प्रधान बताया I आएये जानते है
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में क्या कहा
श्रीमद्भगवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में ज्ञान योग, बुद्धि योग, कर्म योग, भक्ति योग आदि का उपदेश दिया था !
श्रीमद्भगवत गीता में श्रीकृष्ण जी ने धेर्य, संतोष, शांति, मोक्ष, और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे में उपदेश दिया !* *⚘️तुम केवल एक आत्मा हो, तुम अपने आत्मीय स्वजन और बंधु बांधों के मोह का त्याग कर दो I तुम प्रेम से मुझ में अपना मन लगाकर कर्म करते हुये पृथ्वी पर निर्भय होकर विचरण करो !* *⚘️इस संसार में जो कुछ मन से सोचा, वाणी से कहा, नेत्रों से देखा और श्रवण आदि इंद्रियों से अनुभव किया जाता है I वह सब नाशवान माया मात्र मिथ्या है !
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् II :- अर्थार्थ– जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अपने स्वरूप की रचना करता हूँ !
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ :- अर्थार्थ — साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्कर्मियों का विनाश करने के लिए, और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में मानव के रूप में अवतार लेता हूँ !
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ :- अर्थार्थ भविष्य की चिंता किए बिना जो कर्म आप कर रहे हो, उसे पूरी दृढ़ता से करते रहना चाहिए। फल की चिंता मत करो I आपके जैसे कर्म होंगे, वैसा फल आपको निश्चित मिलेगा ! भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता के अतिरिक्त अनुगीता, उद्धव गीता के रूप में भी गीता का ज्ञान दिया था
भगवान् श्री कृष्ण ने 2 नगरों की स्थापना की थी
द्वारिका (जिसका पहले नाम कुशावती था ) और दूसरी पांडव पुत्रों के द्वारा इंद्रप्रस्थ ( जिसका पहले नाम खांडवप्रस्थ) था !
वासुदेव भगवान श्री कृष्ण अपने अंतिम वर्षों को छोड़कर कभी भी 6 महीने से ज्यादा द्वारिका में नहीं रहे !
पौराणिक मान्यताओं अनुसार प्रभु श्री राम ने त्रेता युग में बाली को छुपकर तीर मारा था। और श्री राम ने द्वापरयुग में कृष्णावतार रूप मे उसी बाली को जरा नामक बहेलिया बनाया I और अपने लिए वैसी ही मृत्यु चुनी, जैसी प्रभु श्री राम ने बाली को दी थी !
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बाक़ी की जानकारी अगले आर्टिकल में होगी