28 नवम्बर/जन्म-दिवस
क्रान्तिकारी भाई हिरदाराम
भारत का चप्पा-चप्पा उन वीरों के स्मरण से अनुप्राणित है, जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर दिया।
उनमें से ही एक भाई हिरदाराम का जन्म 28 नवम्बर, 1885 को मण्डी (हिमाचल प्रदेश) में श्री गज्जन सिंह स्वर्णकार के घर में हुआ था।
उन दिनों कक्षा आठ से आगे शिक्षा की व्यवस्था मण्डी में नहीं थी। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि इन्हें बाहर भेज सकें। अतः पढ़ने की इच्छा होने के बावजूद इन्हें अपने पुश्तैनी काम में लगना पड़ा।
कुछ समय बाद सरला देवी से इनका विवाह हो गया। इनकी पढ़ाई के शौक को देखकर इनके पिता कुछ अखबार तथा पुस्तकें ले आते थे। उन्हीं से इनके मन में देश के लिए कुछ करने की भावना प्रबल हुई।
कुछ समय के लिए इनका रुझान अध्यात्म की ओर भी हुआ। 1913 में सेन फ्रान्सिस्को में लाला हरदयाल ने ‘गदर पार्टी’ की स्थापना की तथा हरदेव नामक युवक को कांगड़ा में काम के लिए भेजा।
इनका सम्पर्क हिरदाराम से हुआ और फिर मण्डी में भी गदर पार्टी की स्थापना हो गयी।
1915 में बंगाल के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस जब अमृतसर आये, तो उनसे बम बनाने का प्रशिक्षण लेने हिरदाराम भी गये थे। यह काम बहुत कठिन तथा खतरनाक था। इनके साथ परमानन्द और डाॅ. मथुरा सिंह को भी चुना गया था। ये तीनों जंगलों में बम बनाकर क्रान्तिकारियों तक पहुँचाते थे।
गदर पार्टी ने 21 फरवरी, 1915 का दिन गदर के लिए निश्चित किया था; पर इसकी सूचना अंग्रेजों को मिल गयी।
अतः इसे बदलकर 19 फरवरी कर दिया गया; पर तब तक हिरदाराम पुलिस की पकड़ में आ गये। उनके पास कई बम बरामद हुए। अतः उन्हें व उनके साथियों को लाहौर के केन्द्रीय कारागार में ठूँस दिया गया।
26 अप्रैल, 1915 को इनके विरुद्ध जेल में ही मुकदमा चलाया गया। तीन न्यायाधीशों के दल में दो अंग्रेज थे।
शासन ने इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध बैरिस्टर सी. वेवन पिटमैन को अपनी ओर से खड़ा किया; पर क्रान्तिकारियों की ओर से पैरवी करने वाला कोई नहीं था।
जिन 81 अभियुक्तों पर मुकदमा चला, उनमें से भाई हिरदाराम को फाँसी की सजा दी गयी। उनकी अल्पव्यस्क पत्नी सरलादेवी ने वायसराय हार्डिंग से अपील की। इस पर इनकी सजा घटाकर आजीवन कारावास कर दी गयी।
आजीवन कारावास के लिए इन्हें कालेपानी भेजा गया। वहाँ हथकड़ी-बेड़ी में कसकर इन्हें अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं। चक्की पीसना, बैल की तरह कोल्हू खींचना, हंटरों की मार, रस्सी कूटना और उसके बाद भी घटिया भोजन कालेपानी में सामान्य बात थी।
एक बार उन्होंने देखा कि हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़े एक क्रान्तिकारी को कई लोग कोड़ों से पीट रहे हैं।
हिरदाराम ने इसका विरोध किया। इस पर उन्हें 40 दिन तक लोहे के पिंजरे में बन्द कर दिया गया। बाद में पता लगा कि जिसे उसे दिन पीटा जा रहा था, वे वीर सावरकर थे।
काफी समय बीतने पर उन्हें मद्रास स्थानान्तरित कर दिया गया। कारावास पूरा कर जब वे वापस अपने घर मण्डी आये, तब तक उनका शरीर ढल चुका था।
21 अगस्त, 1965 को क्रान्तिवीर भाई हिरदाराम का देहान्त हुआ। उस समय वे अपने पुत्र रणजीत सिंह के साथ शिमला में रह रहे थे।
28th November/Birthday
Revolutionary Bhai Hirdaram (भाई हिरदाराम )
Every corner of India is animated by the memory of those heroes who dedicated their body, mind and wealth to attain independence.
One of them, brother Hirdaram, was born on 28 November 1885 in the house of Shri Gajjan Singh Goldsmith in Mandi (Himachal Pradesh).
In those days, there was no system of education beyond class eight in Mandi. The financial condition of his family was not such that they could send him out.
Therefore, despite having a desire to study, he had to engage in his ancestral work. After some time, he got married to Sarala Devi.
Seeing his fondness for studies, his father used to bring some newspapers and books.
It was through them that the feeling of doing something for the country became stronger in his mind. For some time he also got inclined towards spirituality.
In 1913, Lala Hardayal founded the ‘Gadar Party’ in San Francisco and sent a young man named Hardev to work in Kangra.
He came in contact with Hirdaram and then Gadar Party was established in Mandi also. When Bengal’s famous revolutionary Rash Behari Bose came to Amritsar in 1915,
he also went to Hirdaram to take training in bomb making. This work was very difficult and dangerous. Along with him Parmanand and Dr. Mathura Singh was also selected.
These three used to make bombs in the forests and deliver them to the revolutionaries.
The Ghadar Party had fixed February 21, 1915 as the day for the Ghadar; But the British got this information. So it was changed to 19 February; But by then Hirdaram was caught by the police.
Many bombs were recovered from them. Therefore, he and his companions were put in the Central Jail of Lahore.
On April 26, 1915, a trial was conducted against him in the jail itself. There were two Englishmen in the team of three judges. The government fielded the famous English barrister C.
Waven Pitman on its behalf; But there was no one to advocate on behalf of the revolutionaries. Of the 81 accused who were tried, Bhai Hirdaram was given death sentence.
His minor wife Saraladevi appealed to Viceroy Hardinge. On this his sentence was reduced to life imprisonment.
He was sent to Kalepani for life imprisonment. There they were subjected to inhuman torture by being tied in handcuffs.
Grinding at a mill, pulling a crusher like a bull, being beaten by hunters, stringing ropes and even then poor food was a common thing in Kalepani.
Once he saw that a revolutionary handcuffed and shackled was being beaten with whips by many people.
Hirdaram opposed this. On this he was locked in an iron cage for 40 days. Later it was found out that the person who was beating him every day was Veer Savarkar.
After a long time, he was transferred to Madras. By the time he returned to his home in Mandi after completing his imprisonment,
his body had become weak. Revolutionary brother Hirdaram died on August 21, 1965. At that time he was living in Shimla with his son Ranjit Singh.