मैतेई समुदाय – मणिपुर

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मणिपुर 

गैर-जनजातीय मैतेई (Meitei) समुदाय को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe- ST) का दर्जा देने की 10 वर्ष पुरानी अनुशंसा पर आगे की कार्रवाई करने के मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को दिए गए निर्देश के बाद मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। 

अनुसूचित जनजाति में मैतेई को शामिल करने के कथित कदम के विरुद्ध अखिल जनजातीय छात्र संगठन मणिपुर (All-Tribal Student Union Manipur- ATSUM) द्वारा ‘जनजाति एकजुटता रैली’ आयोजित किये जाने के बाद हिंसा बढ़ गई।

मणिपुर की जातीय संरचना

मणिपुर राज्य एक फुटबॉल स्टेडियम की तरह है जिसके मध्य में इंफाल घाटी खेल के मैदान का प्रतिनिधित्व करती है और आसपास की पहाड़ियाँ गैलरी हैं। घाटी—जिसमें मणिपुर का लगभग 10% भूभाग शामिल है, में गैर-जनजातीय मैतेई समुदाय का प्रभुत्व है, जो राज्य की 64% से अधिक आबादी का भी निर्माण करते हैं और राज्य के कुल 60 विधानसभा सदस्यों में से 40 प्रदान करते हैं।

राज्य के 90% भौगोलिक क्षेत्र का निर्माण करने वाली पहाड़ियों में 35% से अधिक दर्जा-प्राप्त जनजातियों का निवास है, लेकिन वे विधानसभा में केवल 20 विधायक ही भेजते हैं।

जबकि अधिकांश मैतेई हिंदू हैं और उनके बाद आबादी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी मुस्लिम समुदाय की है, 33 दर्जा-प्राप्त जनजातियाँ—जिन्हें मोटे तौर पर ‘कोई भी नगा जनजाति’ (Any Naga tribes) और ‘कोई भी कुकी जनजाति’ (Any Kuki tribes) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, मुख्यतः ईसाई हैं।

ST दर्जे की मांग के समर्थन में मैतेई समुदाय का क्या तर्क है?

मैतेई लोगों के लिये ST दर्जे की मांग वर्ष 2012 में मणिपुर अनुसूचित जनजाति मांग समिति (Scheduled Tribe Demand Committee of Manipur- STDCM) द्वारा शुरू की गई।

वर्ष 1949 में भारत संघ में राज्य के विलय से पहले मैतेई को जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। मैतेई समुदाय मानता है कि ST का दर्जा समुदाय को ‘संरक्षित’ करने और उनकी ‘पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति एवं की रक्षा’ के लिये आवश्यक है।

वर्ष 1972 में केंद्रशासित प्रदेश मणिपुर को भारत का 19वाँ राज्य बनाया गया।

मैतेई समुदाय का मानना है कि उन्हें बाहरी लोगों के विरुद्ध संवैधानिक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है, जहाँ राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से उन्हें तो प्रतिबंधित रखा गया है लेकिन वहाँ के जनजातीय लोग सिकुड़ती जा रही इंफाल घाटी में भूमि खरीद सकते हैं। मैतेई समुदाय यह आशंका रखता है कि ‘वृहत नगालिम’ (Greater Nagalim) का सृजन मणिपुर के भौगोलिक क्षेत्र को कम कर देगा। 

उनके अनुसार, मैतेई समुदाय धीरे-धीरे अपनी पैतृक भूमि में हाशिए पर पहुँचता जा रहा है।

वर्ष 1951 में उनकी आबादी मणिपुर की कुल आबादी का 59% थी, जो वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, घटकर 44% रह गई।

नगा और कुकी आंदोलनों ने भी मैतेई राष्ट्रवाद को हवा दी। 1970 के दशक में जनसांख्यिकीय परिवर्तन और पारंपरिक मैतेई क्षेत्रों के सिकुड़ने पर चिंताएँ उभरने लगीं।

वर्ष 2006-12 की अवधि में बाहरी लोगों को रोकने के लिये मणिपुर में इनर लाइन परमिट (ILP) की मांग उठी। म्यांमार के साथ मणिपुर की पारगम्य सीमा पर कुकी-ज़ोमी लोगों की मुक्त आवाजाही ने जनसांख्यिकीय परिवर्तन के भय को हवा दी।

मणिपुर की जनसंख्या की वृद्धि दर वर्ष 1941-51 की अवधि में 12.8% थी जो वर्ष 1951-61 के दौरान बढ़कर 35.04% और वर्ष 1961-71 में 37.56% हो गई जब परमिट प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

मणिपुर में सरकार सबसे बड़ी नियोक्ता है और अनुसूचित जनजातियों के लिये नौकरियों में आरक्षण एक तुलनात्मक लाभ का सृजन करता है।

अवसंरचना विकास (जैसे रेलवे का विस्तार जो मणिपुर में अवसरों के द्वार खोलेगा) ने असुरक्षा की भावना को और बढ़ा दिया है।

जनजातीय समूह मैतेई को ST दर्जा देने के विरुद्ध क्यों हैं?

मैतेई समुदाय जनसांख्यिकीय एवं राजनीतिक लाभ की स्थिति रखता है और वह अकादमिक रूप से भी अधिक उन्नत है।

मैतेई को ST का दर्जा मिलने से उनके लिये नौकरी के अवसरों की हानि होगी और उन्हें पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि प्राप्त करने तथा जनजातीय लोगों को वहाँ से बेदखल करने का अवसर मिलेगा।

मैतेई लोगों की भाषा (मैतेई या मणिपुरी) संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और उनमें से कई की SC, OBC या EWS दर्जे से जुड़े लाभों तक पहुँच है।

कुकी और नगा ध्यान दिलाते हैं कि जनजातीय क्षेत्र राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 90% हैं, लेकिन इसके बजट और विकास कार्यों का बड़ा अंश मैतेई बहुल इंफाल घाटी पर केंद्रित रहता है।

ST सूची में शामिल करने की प्रक्रिया

राज्य सरकारें जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिये अनुशंसा करती हैं।

राज्य सरकार की अनुशंसा के बाद जनजातीय कार्य मंत्रालय उसकी समीक्षा करता है और उन्हें गृह मंत्रालय के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल के अनुमोदन के लिये भेजता है।

अनुमोदन के बाद इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजा जाता है और फिर अंतिम निर्णय के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

एक बार जब मंत्रिमंडल इसे अंतिम रूप प्रदान कर देता है, तब वह संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन के लिये संसद में एक विधेयक पेश करता है।

संशोधन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कर दिए जाने के बाद राष्ट्रपति कार्यालय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत इस पर अंतिम निर्णय लेता है।

हाल की अशांति क्यों उत्पन्न हुई?

जबकि वन क्षेत्रों से जनजातीय लोगों की बेदखली और मैतेई के लिये ST दर्जे की मांग हाल के सबसे प्रमुख प्रेरक कारक रहे हैं, वस्तुतः पिछले एक दशक से विभिन्न मुद्दों को लेकर मैतेई समुदाय और जनजातीय समूहों के बीच विभाजन बढ़ा है।

परिसीमन प्रक्रिया में विद्यमान समस्याएँ: वर्ष 2020 में जब केंद्र ने राज्य में वर्ष 1973 के बाद से पहली परिसीमन प्रक्रिया शुरू की तो मैतेई समुदाय ने आरोप लगाया कि इसके लिये उपयोग किये गए जनगणना के आँकड़े जनसंख्या विभाजन को सटीक रूप से नहीं दर्शाते हैं।

दूसरी ओर जनजातीय समूहों (कुकी और नागा) का दावा है कि राज्य की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 40% हो गई है लेकिन विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम है।

पड़ोसी क्षेत्र से प्रवासियों की घुसपैठ: म्यांमार में फ़रवरी 2021 के सैन्य तख्तापलट के कारण भारत के पूर्वोत्तर में शरणार्थी संकट उत्पन्न हुआ। मैतेई नेताओं ने आरोप लगाया है कि चुराचांदपुर ज़िले में अचानक गाँवों की बाढ़ आ गई है।

नशीले पदार्थों की समस्याः कुछ जनजातीय समूह निहित स्वार्थों के करण नशीले पदार्थों के विरुद्ध सरकार के सघन अभियान को विफल करने का प्रयास कर रहे हैं।

अफीम के खेतों को नष्ट करने के साथ नशा विरोधी अभियान शुरू किया गया था। मणिपुर के कुकी-ज़ोमी समुदाय से संबंधित ‘अवैध आप्रवासी’ साफ़ की गई ज़मीनों पर नशीले पदार्थों की खेती कर रहे हैं।

हाल की अशांति: पहला हिंसक विरोध तब भड़क उठा जब एक कुकी ग्राम के निवासियों को वहाँ से बेदखल किया गया।

चुराचांदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र (चुराचांदपुर और नोनी ज़िलों में) के 38 गाँव ‘अवैध बस्ती’ हैं और इसके निवासी ‘अतिक्रमणकर्ता’ हैं जिन्होंने अफीम की खेती और नशीली दवाओं के कारोबार के लिये आरक्षित एवं संरक्षित वनों तथा वन्यजीव अभयारण्यों का अतिक्रमण किया है।

कुकी समूहों ने दावा किया है कि सर्वेक्षण और निष्कासन अनुच्छेद 371C का उल्लंघन है, क्योंकि कुकी पहाड़ी क्षेत्र के निवासी हैं।

अनुच्छेद 371C मणिपुर विधानसभा की एक समिति के निर्माण का प्रावधान करता है जिसमें राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से चुने गए सदस्य शामिल होंगे और उस समिति के उपयुक्त कार्यकरण की ज़िम्मेदारी राज्यपाल की होगी।

राज्य स्तर पर मणिपुर विधानसभा (पहाड़ी क्षेत्र समिति) आदेश, 1972 के तहत गठित पहाड़ी क्षेत्र समिति (Hill Area Committee) मौजूद है। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सभी विधायक पहाड़ी क्षेत्र समिति के सदस्य होते हैं।

राज्य सरकार दो कुकी चरमपंथी समूहों के साथ हस्ताक्षरित अभियान निलंबन समझौते से बाहर निकल गई है क्योंकि वे प्रदर्शनकारियों को उकसाने से संलग्न पाए गए हैं।

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