राखालदास बनर्जी

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राखालदास बनर्जी

राखालदास बनर्जी का जीवन परिचय, शिक्षा और इनके द्वारा लिखित कृतियाँ, लेख

इतिहास में आज का दिन 
आज का दिन इतिहास में 
 
जन्म- 12 अप्रैल, 1885
मृत्यु- 23 मई, 1930

जन्म

 भारतीय पुरातत्वज्ञ और प्राचीन इतिहासकार राखालदास बनर्जी का जन्म 12 अप्रैल, 1885 को बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुआ था। 

शिक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात उन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इतिहास में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
 
पढ़ाई के दौरान वे हरप्रसाद शास्त्री, बांग्ला लेखक रामेंद्रसुंदर त्रिपाठी व बंगाल सर्किल के पुरातत्व अधीक्षक डॉ. ब्लॉख के संपर्क में आए तथा इनकी संगत में आकर राखालदास बनर्जी की रुचि इतिहास
 
और पुरातत्वविज्ञान में पैदा हुई।कॉलेज के समय से ही वे अन्वेषणों व उत्खननों में नौकरी करने लगे। 
 
इतिहास से लगाव को देखते हुए प्रांतीय संग्रहालय और लखनऊ के सूचीपत्र तैयार करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
 
इसे करते-करते उन्होंने इतिहास पर अच्छा अध्ययन कर डाला और इतिहास पर लेख-आलेख का कार्य शुरू कर दिए।वर्ष 1910 में उन्होंने परास्नातक (मास्टर डिग्री) की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
 
इसके बाद उन्हें प्रमोट करके उत्खनन सहायक (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के पद पर नियुक्त कर दिया गया। वर्ष 1917 में राखालदास बनर्जी को पूना (अब पुणे) में पुरातत्व सर्वेक्षण के
 
पश्चिमी मंडल के अधीक्षक के तौर नियुक्त किया गया। 

राखालदास बनर्जी द्वारा किए गए कार्य

कालांतर में उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात, सिंध (अब पंजाब), राजस्थान और मध्यप्रदेश की रियासतों का भ्रमण किया जिसके दौरान राखलदास बनर्जी ने अनेक काम किए।
 
उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण आज भी ‘एनुअल रिपोर्ट्स ऑफ़ द आर्किपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया’ में उपलब्ध है।
 
मध्यप्रदेश के भूमरा में उन्होंने खुदाई करवाई तथा प्राचीन गुप्तयुगीन मंदिर और मध्यकालीन हैहय-कलचुरी स्मारकों की खोज की। 

वर्ष 1922 में राखालदास बनर्जी एक बौद्ध स्तूप पर शोध कर रह थे जिसकी खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यता की खोज की।  
 
वर्ष 1980 में मोहनजोदड़ो को विश्व विरासत स्थल (संख्या 138) का नाम दिया गया था। 
 
राखालदास बनर्जी का वर्ष 1924 में स्थानांतरण पुरातत्त्व सर्वेक्षण के पूर्वी मंडल, कलकत्ता में हो गया, जहाँ वे लगभग दो वर्ष तक रहे।
 
इस छोटी-सी अवधि में उन्होंने पहाड़पुर के प्राचीन मंदिर का उल्लेखनीय उत्खनन करवाया।

वर्ष 1926 में कुछ प्रशासकीय कारणों से बनर्जी को सरकारी सेवा से अवकाश ग्रहण करना पड़ा। 
 
 वे ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ में प्राचीन भारतीय इतिहास के ‘मनींद्र नंदी प्राध्यापक’ पद पर अधिष्ठित हुए और मृत्यु पर्यंत इसी पद पर बने रहे।
इनके द्वारा लिखित कुछ महत्वपूर्ण कृतियाँ
“हिस्ट्री ऑफ़ ऑरिसा” इनकी मृत्यु के बाद ही छपी यह इनके अंतिम दिनों की ही कृति है। 
 
बँगला में इनके द्वारा रचित अनेक कृतियाँ है 
 
पाषाणेर कथा (पत्थर की कथा ) ,धर्मपाल, करुणा, मयूख, शशांक, मयूर,व्याख आदि उपन्यास इनकी प्रतिभा को दर्शाते है। 
 
इनके द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रंथ – ध्रुव, करुणा, प्राचीन मुद्रा, शिव टेम्पल ऑफ़ भूमरा, पक्षान्तर, व्युतिक्रम, अनुक्रम, द ऐज ऑफ़ इम्पीरियल गुप्तास 
 
मृत्यु 
इनकी मृत्यु 23 मई, 1930 को हुई
Biography of Rakhaldas Banerjee, education and works written by him, articles
This day in history 
This day in history 
 
 Birth- 12 April, 1885 
 Death- 23 May, 1930 

Birth

 Indian archaeologist and ancient historian Rakhaldas Banerjee was born on 12 April, 1885 in Murshidabad, Bengal. 

Education

After his initial education, he passed his M.A. examination in History from Presidency College, Calcutta. 
 
During his studies, he came in contact with Har Prasad Shastri,
 

Bengali writer Ramendra Sundar Tripathi and Archaeological Superintendent of Bengal Circle 

Dr. Bloch and in their company,
 
Rakhaldas Banerjee developed an interest in history and archaeology. From the time of college itself, he started working in explorations and excavations.
 
 Given his interest in history, he was given the responsibility of preparing the catalogue of the Provincial Museum and Lucknow. While doing this,
 
he studied history well and started writing articles on history. In the year 1910, he passed the Master’s degree examination.
 
After this, he was promoted and appointed to the post of Excavation Assistant (Archaeological Survey of India).
 
In the year 1917, Rakhaldas Banerjee was appointed as the Superintendent of the Western Division of the Archaeological Survey in Poona (now Pune). 

Works done by Rakhaldas Banerjee

Later, he visited the princely states of Maharashtra, Gujarat, Sindh (now Punjab), Rajasthan and Madhya Pradesh, during which Rakhaldas Banerjee did many works.
 
The details of his important works are still available in the ‘Annual Reports of the Archaeological Survey of India’. 
 
 He conducted excavations in Bhumara of Madhya Pradesh and discovered ancient Gupta-era temples and medieval Haihay-Kalchuri monuments. In the year 1922,
 
Rakhaldas Banerjee was doing research on a Buddhist stupa, during the excavation of which he discovered the ancient civilization of Mohenjodaro. In 1980,
 
Mohenjodaro was named a World Heritage Site (No. 138). In 1924, Rakhaldas Banerjee was transferred to the Eastern Circle of Archaeological Survey, Calcutta, where he stayed for about two years.
 
In this short period, he got the remarkable excavation of the ancient temple of Paharpur done. In 1926, 

Banerjee had to retire from government service due to some administrative reasons.
 
He was appointed as the ‘Manindra Nandi Professor’ of Ancient Indian History in ‘Banaras Hindu University’ and remained on this post till his death. 

Some important works written by him

 “History of Orissa” was published only after his death, it is the work of his last days. He has written many works in Bengali. Pashaner Katha (Story of Stone), Dharmapal, Karuna, Mayukh,
 
Shashank, Mayur, Vyakh etc. novels show his talent. 
 
Important books written by him – Dhruva, Karuna, Ancient Mudra, Shiva Temple of Bhumara,
 
Pakshaantar, Vyutikram, Anukrama, The Age of Imperial Guptas 
 
 Death 
He died on May 23, 1930

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