लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी
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1 अगस्त
०१ अगस्त : पुण्यतिथि – ब्रिटिश राज के समय ‘स्वराज’ के सर्वप्रथम उद्घोषक लोकमान्य बालगंगाधर तिलक
_”लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, अभिवक्ता और एक स्वतन्त्रता सेनानी, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रथम लोकप्रिय नेता, जिन्हें भयाक्रान्त अंग्रेज सरकार के अधिकारी “भारतीय अशान्ति के पिता” कहने लगे थे। कर्मयोगी तिलकजी को उनके नेतृत्व-कौशल के कारण “लोकमान्य(लोगों द्वारा स्वीकृत/उनके नायक के रूप में)” की आदरणीय संज्ञा भी प्राप्त हुई। आइए उनकी पुण्यतिथि पर उनके त्यागमयी कर्मयोगी जीवन को स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि दें”_
आरम्भिक जीवन व शिक्षा :
केशव गंगाधर तिलक(मूल नाम) का जन्म २३ जुलाई १८५६ को वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी में एक मराठी हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका पैतृक गाँव चिखली था। उनके पिता, गंगाधर तिलक एक स्कूल शिक्षक और संस्कृत के विद्वान थे, जिनकी मृत्यु तब हो गयी जब तिलक मात्र सोलह वर्ष के थे। १८७१ में तिलक का विवाह तापीबाई (सत्यभामाबाई) से हुआ। तिलकजी ने १८७७ में पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में प्रथम श्रेणी में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने एलएलबी पाठ्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने एमए पाठ्यक्रम को बीच में ही छोड़ दिया और१८७९ में उन्होंने सरकारी लॉ कॉलेज से अपनी एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। स्नातक होने के बाद तिलक ने पुणे के एक निजी स्कूल में गणित पढ़ाना आरम्भ किया। बाद में, नए स्कूल में कुछ सहयोगियों के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण, वह छोड़कर पत्रकारिता में आ गए। तिलक ने सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लिया। तिलकजी कहते थे कि, _”धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। वास्तविक धर्म की भावना केवल अपने परिवार के लिए काम करने के स्थान देश को अपना परिवार बनाने में है। इससे श्रेष्ठ मानवता की सेवा करना है और उससे भी श्रेष्ठ भगवान की सेवा करना है।”_
कर्मयोगी तिलक का क्रान्तिकारी जीवन :
उन्होंने सर्वप्रथम ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की माँग उठाई। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा- *”स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा)* बहुत प्रसिद्ध हुआ। और इसने परतन्त्रता से त्रस्त समाज में नई ऊर्जा का सञ्चार किया भारत में नए क्रान्तिकारियों की एक पूरी नई पीढ़ी को जन्म दिया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई समान विचारधारा के राष्ट्रभक्त नेताओं से एक निकटतम सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष और वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै आदि थे। ये समाज को अहिंसा के नाम पर कायर बनाते व स्वतन्त्रता प्राप्ति की गति को अत्यन्त धीमा बनाते गांधी व गांधीवादियों के विचार के विरोधी थे और अधर्म/क्रूरता न सहने के सनातन के सिद्धान्तों पर चल हर सम्भव प्रयत्न से स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने का मत रखते थे।
तिलक जी ने जनजागृति का कार्यक्रम पूर्ण करने हेतु *महाराष्ट्र में गणेशोत्सव व छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य के संघर्ष की स्मृति दिलाते शिवाजी महोत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारम्भ किया। इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा।* नागरी प्रचारिणी सभा के वार्षिक सम्मेलन में भाषण देते हुए उन्होंने पूरे भारत के लिए समान लिपि के रूप में देवनागरी का पक्ष लिया। *तिलक अंग्रेजी शिक्षा विदेशी भाषा के घोर आलोचक थे* इन्होंने भारतीय शिक्षा स्तर सुधारने हेतु *दक्कन शिक्षा सोसायटी* की स्थापना की
राजनीति के धुरन्धर तिलक का स्वराज स्थापना हेतु संघर्ष :
लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से १८९० में जुड़े। हालांकि, कांग्रेस की मध्य अभिवृत्ति, खासकर जो स्वराज्य हेतु लड़ाई के प्रति थी, वे उसके विरुद्ध थे। वे अपने समय के सबसे प्रख्यात आमूल परिवर्तनवादियों में से एक थे।
१९०७ में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। १९०८ में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया।
_तिलक जी द ओरिओन, द आर्कटिक होम ऑफ द वेदाजश्रीमद्भगवद्गीता रहस्य (माण्डले जेल में), हिन्दू जीवन दर्शन, नीतियाँ व धर्म, वेदों का काल और वेदांग ज्योतिष, टिळक पंचांग पद्धति आदि अनेक पुस्तकों के लेखक भी थे उनकी कृतियों में सनातन धर्म व इसके जीवन दर्शन का प्रभाव देखा जा सकता है।_
लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी में _मराठा_ व मराठी में _केसरी_ नाम से दो दैनिक समाचार पत्र आरम्भ किये। केसरी में छपने वाले उनके लेखों के कारण उन्हें कई बार जेल भेजा गया। उन्होंने एक बार _केसरी_ में _देश का दुर्भाग्य_ नामक शीर्षक से लेख लिखा, जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया। इस पर ब्रिटिश सरकार ने उनको भारतीय दण्ड संहिता की धारा १२४-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में २७ जुलाई, १८९७ को गिरफ्तार कर ६ वर्ष के कठोर कारावास के अन्तर्गत माण्डले (बर्मा) कारावास में बन्द कर दिया।
माण्डले में कारावास के समय लोकमान्य तिलक ने कुछ पुस्तकों की माँग की, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी, जिसमें राजनैतिक गतिविधियाँ हों। *लोकमान्य तिलक ने कारावास में श्रीमद्भगवतगीता पर उनकी टीका के रूप में एक पुस्तक भी लिखी जो (श्रीमद्भगवत)’गीता रहस्य’ नाम से प्रसिद्ध हुई और कर्मयोग के मार्ग पर निकलते क्रान्तिकारियों की पथप्रदर्शक।* कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, उनको इस बात का बहुत पश्चात्ताप था कि वे अपनी मृतक पत्नी के अन्तिम दर्शन भी नहीं कर सकते।
माण्डले जेल से छूटने के बाद का जीवन व देहावसान
जेल से छूटकर भी तिलक अपने कर्तव्यपथ पर लगे रहे, अप्रैल, १९१६ में तिलक जी ने एनी बेसेंट के समकालीन होम रूल लीग की स्थापना की। इस *आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था।* इसमें चार या पाँच लोगों की टुकड़ियाँ बनाई जाती थीं, जो पूरे भारत में बड़े-बड़े राजनेताओं और अभिवक्ताओं से मिलकर होम रूल लीग का आशय/सिद्धान्त समझाया करते थे। होम रूल आन्दोलन के समय तिलक जी को बहुत प्रसिद्धि मिली, जिस कारण उन्हें _“लोकमान्य”_ की उपाधि प्राप्त हुई, १ अगस्त,१९२० ई. को बम्बई में माँ भारती के इस कर्मयोगी वीर पुत्र ने अपना देह त्याग दिया।
क्रान्ति के अग्रदूत, क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत, स्वराज के सन्देशवाहक लोकमान्य तिलक जी की पुण्यतिथि पर ‘उनके राष्ट्र को समर्पित कर्मयोगी जीवन को हम सदैव स्मरण रखेंगे उनके मार्ग को अपनाएँगे’ इस संकल्प के साथ उनको शत्-शत् नमन