शंकराचार्यों ने अपनी प्रतिष्ठा को स्वयं क्यों दाग लगा लिया

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शंकराचार्यों

शंकराचार्यों 

ने अपनी प्रतिष्ठा को स्वयं दाग लगा लिया। लोगों को सोचने हेतु प्रतिबद्ध कर दिया एसे शंकराचार्य हिन्दू समाज के किस काम के?

 कभी कभी जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जिनका उपयोग व्यक्ति को समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए करना चाहिए और यह अवसर शंकराचार्यों के लिए भी भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से आया

 परंतु दुर्भाग्य से मुख्यतः 2 शंकराचार्यों ने लगता है कांग्रेस की “लंकिनी सेना” में शामिल होकर यह अवसर गंवा दिया।

 पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती (80 वर्षीय) और द्वारिका ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने जिस तरह राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विषवमन किया है 

उससे लगता है ये लोग मोदी के प्रति अपने दिलों में “नफरत” संजोए बैठे हैं।

 आज लोग सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि शंकराचार्यों का हिन्दू समाज के लिए क्या औचित्य है और उनका समाज के लिए कुछ योगदान है भी।

 आज प्रश्न खड़ा हो रहा है कि शंकराचार्यों ने आखिर हिन्दू समाज के लिए किया ही क्या है। ये लोग उस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बना रहे हैं जो सदा संत समाज के सामने नतमस्तक रहा है,

 जिसने देश के सभी तीर्थ स्थलों का पुनरुथान किया है। सही मायने में नरेंद्र मोदी तो आप सभी शंकराचार्यों से भी बड़ा “शंकराचार्य” है लेकिन आप लोग उसे ही नीचा दिखाना चाहते हो।

 पिछले 35 वर्ष ने जो व्यक्ति श्री राम मंदिर के लिए अपने लोगों और सहयोगी दलों के साथ संघर्ष करता रहा और जिस हिन्दू समाज को 500 वर्ष से मंदिर बनने की प्रतीक्षा थी, आज जब वह सपना साकार हो रहा है तो शंकराचार्य अपनी ढपली बजाते हुए निकल पड़े।

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले करीब 100 वर्ष से हिन्दू समाज को संगठित करने के प्रयास में लगा है और कांग्रेस ने इसी RSS को ख़त्म करने के न जाने कितने प्रयास किए हैं। 

शंकराचार्यों

आज शंकराचार्य बताएं उन्होंने हिन्दू समाज के लिए क्या योगदान किया। पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर में विधर्मी घुसने का प्रयास कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट तक से मदद मिल रही है उन्हें लेकिन हमने कभी निश्चलानंद सरस्वती को विद्रोह करते नहीं देखा।

 नवंबर, 2004 में जयललिता के कांची शंकराचार्य को दीवाली की रात को गिरफ्तार किया था। क्या किसी शंकराचार्य ने विरोध किया था। 2020 में पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या कर दी गई थी, क्या कोई शंकराचार्य बोले थे।

 ईसाई धर्मान्तरण को रोकने वाले आसाराम बापू को जेल में डाल दिया गया मगर शंकराचार्य खामोश रहे। 

और दूर क्यों जाएं, कल ही बंगाल में संतो के साथ TMC के गुंडों ने दुर्व्यवहार किया, उन्हें नग्न करके पीटा गया, क्या किसी शंकराचार्य की जुबान से एक शब्द भी निकला।

 लेकिन श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए शंकराचार्यों की गज भर लंबी जुबान चल पड़ी। शंकराचार्यों के आगे तो लोग झुकते हैं 

लेकिन थुलथुला स्वरूपानंद सरस्वती ईसाई पादरी के चरण छू कर उससे आशीर्वाद लेता था और उसका चेला अविमुक्तेश्वरानंद एक मजार पर माथा रगड़ रहा है, ऐसी एक फोटो सोशल मीडिया पर चल रही है।

याद कीजिए जब हनुमान जी भवन समेत सुषेण वैद्य को उठा कर ला रहे थे तब सुषेण ने पूछा था मुझे कहां ले जा रहे हो, हनुमान जी ने कहा, 

भगवान राम की सेवा से आपके उद्धार का समय आ गया है। लेकिन शंकराचार्यों ने “राम काज” में अड़ंगा डाल कर अपने उद्धार के मार्ग स्वयं ही बंद कर लिए।

कुछ लोग कह रहे हैं शंकराचार्यों के विरोध में कुछ मत कहो लेकिन जो कुछ उनके लिए कहा जा रहा है उसके लिए जिम्मेदार वे खुद ही हैं।

 जय श्रीराम

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