श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का इतिहास
भारत राष्ट्र में किस किस परिस्तिथि से गुजरे है हमारे श्री राम लल्ला
अपने ही जन्म स्थान के लिये क्यों करना पड़ा इतने दिन संघर्ष ?
भारत जैसे हिंदू बहुल देश में ही श्री राम का विरोध क्यों ?
किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व और अस्मिता, स्वत्व और स्वाभिमान उस देश के श्रद्धा व आस्था केन्द्रों, महापुरुषों के स्मृतिस्थलों तथा सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन पर निर्भर करता है।
यह इतिहास का एक कड़वा सच है कि बर्बर विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारे हजारों श्रद्धा, पुण्य और प्रेरणा केन्द्रों को ध्वस्त कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को आहत करने का दुस्साहस किया था।
उन्होंने हिन्दुस्थान में हजारों मंदिरों को तोड़ा और फिर अपने वर्चस्व का दंभ दिखाने के लिये उन्हीं मंदिरों के स्थान पर, उन्हीं मंदिरों के मलवे से मस्जिदें खड़ी कर दीं। देश के कोने कोने में ऐसे अनगिनत स्थान हैं।
क्या श्रीराम जन्मभूमि के बाद काशी , मथुरा के लिये भी देश के युवाओं को आगे आना चाहिए ?
काशी विश्वनाथ मन्दिर वाराणसी, श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या तथा गुजरात का सोमनाथ का मंदिर भारत की राष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रवाहधारा के मुख्य स्त्रोत रहे हैं।
अतः उनके ध्वंस का दंश हिन्दू समाज को हमेशा सालता रहा और इसीलिये उनकी पुनर्स्थापना एवं पुनर्प्रतिष्ठा की मांग और प्रयास निरंतर जारी रहे। विशेष रूप से श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिये तो अब तक हुए 76 संघर्षों में साढ़े तीन लाख से अधिक लोगों ने अपना बलिदान दिया।
जिहादी मुग़लिया बाबर का आक्रमण
बाबर के सेनापति मीर बाकी ने श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर उसके बहुत से प्रतीक चिन्हों, स्तंभों, मूर्तियों आदि को क्षतिग्रस्त करके उनका मलवे के रूप में प्रयोग करते हुए उसी स्थान पर एक मस्जिदनुमा ढ़ांचे का निर्माण कराया।
यदि ऐसा है तो इस प्रश्न को मंदिर मस्जिद विवाद अथवा हिन्दू मुस्लिम समस्या की चौखट से बाहर निकालकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के नाते गुलामी के प्रतीक चिन्हों को मिटाने और राष्ट्र के स्वत्व व स्वाभिमान जगाने तथा अस्मिता और पहचान को प्रकट करने वाले स्मारक की पुनर्स्थापना के रूप में देखा जाना चाहिये।
ऐसा होना सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देशों व समाजों में होता आया है, और यह स्वाभाविक भी है।
श्री राम- एक राष्ट्र पुरुष
भारत के लिये राम केवल पूजा के देव नहीं हैं। वे राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्रीय गौरव, भारतभक्ति और मर्यादा के मानदंडों के अनुसार जीवन व्यवहार करने वाले राष्ट्रपुरुष हैं।
ऐसी स्थिति में अपमान के कलंक को धोने, गुलामी के चिन्हों को हटाने, सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति पाने, आस्था श्रद्धा व मानबिन्दुओं की रक्षा करने, भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने, राष्ट्र की चेतना को जगाने और राष्ट्रीय पहचान को प्रकट करने के प्रतीक के रूप में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनाया जाना अत्यंत स्वाभाविक है।
1. राम देश की आस्था के प्रतीक। इतिहास के धीरोदात्त नायक। लोकजीवन में शील और मर्यादा को स्थापित कर बने पुरुषोत्तम। भारत के राष्ट्रपुरुष राम। राम राज्य, अर्थात शील का अनुगामी राज्य। लोककल्याण के लिये कृतसंकल्प।
भारत के इतिहास में शासन विधान का सर्वोच्च मापदंड। इसीलिये देश के संविधान की प्रथम प्रति पर पुष्पक विमान में विराजमान माता जानकी और श्री लक्ष्मण सहित अयोध्यानरेश श्री राम का रेखाचित्र अंकित किया गया।
2. आक्रमण – मुग़लिया बाबर द्वारा श्री रस्म मंदिर को धावस्त कर बाबरी गुबुंद का बनाना
1526 ई. में फरगाना के क्रूर शासक बाबर ने भारत पर आक्रमण किया। रास्ते भर में सैकड़ों नगरों को लूटता, हजारों गांवों को जलाता और लाखों लोगों की हत्या करता हुआ 1528 ई. में वह अयोध्या पहुंचा। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने उसके आदेश पर अयोध्या पर आक्रमण किया।
इतिहासकार कनिंघम के अनुसार 15 दिनों के घमासान युद्ध में 1 लाख 74 हजार हिन्दुओं के वीरगति प्राप्त करने के बाद ही मीर बाकी मंदिर को तोप के गोलों से गिराने में सफल हो सका। उसने रामजन्मभूमि मंदिर के मलवे से उस स्थान पर दरवेश मूसा आशिकान के निर्देश पर मस्जिद जैसा एक ढ़ांचा खड़ा कर दिया।
3. संघर्ष – श्री राम जी के लिए उनके भक्तों द्वारा उन्हें तंबू से एक भव्य मंदिर में विराजने के लिए किए गए प्रयास
76 युद्ध ,बाबर , हुमाऊँ, अकबर , औरंगज़ेब, सआदत अली ,नसीरुद्धीन हैदर इन सभी जिहादिओ ने श्री राम का अस्तित्व ख़त्म करने के लिए अनेकों बार प्रयास किया ।
अयोध्या सहित समूचे भारत के हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र रामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का ध्वंस भक्तों के लिये असहनीय वेदना का कारण बन गया। इसने रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिये संघर्ष की एक विरामहीन श्रंखला को जन्म दिया।
1528 से 1949 तक की कालावधि में जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिये 76 युद्ध हुए जिनमें लाखों रामभक्तों ने बलिदान दिया। इनमें बाबर के काल में 4 बार, हुमायूं के काल में 10 बार, अकबर के काल में 20 बार ,औरंगजेब के काल में 30 बार,
अवध के नवाब सआदत अली के काल में 5 बार और नवाब नासिरुद्दीन हैदर के काल में 3 बार संघर्ष हुआ।
4. रामलला का प्राकट्य
श्री राम द्वारा किए गए चमत्कार या एक भक्त के द्वारा स्पेन भगवान को महसूस करना
22 दिसम्बर 1949 की रात को एक चमत्कार घटित हुआ। रामजन्मभूमि पर सुरक्षा के लिये तैनात सिपाही ने बताया कि अचानक एक दिव्य प्रकाश से उसकी आंखें चौंधिया गयी और जब उसे भान हुआ तो उसने देखा कि बाल रूप में श्री राम उस भवन के भीतर विराजमान हैं और सैकड़ों लोग श्रद्धाभाव से उनके दर्शन कर रहे हैं।
ढ़ांचे के बाहर स्थित राम चबूतरे पर अखण्ड कीर्तन प्रारंभ हो गया जो 6 दिसम्बर 1992 तक निरंतर चलता रहा। आक्रोषित कारसेवकों द्वारा विवादित ढ़ांचा ढ़हा दिये जाने के बाद उस स्थान को सरकार द्वारा कब्जे में ले लिया गया। इस कारण कीर्तन का स्थान बदल दिया गया किन्तु वह आज तक अखण्ड रूप से जारी है।
5. रामलला ताले में
रामलला के प्राकट्य की घटना पर मुस्लिम समाज की ओर से विरोध की संभावना को देखते हुए 29 दिसम्बर 1949 को तत्कालीन जिलाधिकारी श्री कृष्ण कुमार नैयर ने उस क्षेत्र को विवादित घोषित कर निषेधाज्ञा लागू कर दी।ढ़ांचे के मुख्य द्वार को लोहे की सरियों से बंद कर ताला डाल दिया गया।
एक छोटे द्वार से पूजा अर्चना और भोग आदि के लिये केवल चार पुजारियों और एक भंडारी को प्रवेश की अनुमति दी गयी तथा फैजाबाद नगरपालिका अध्यक्ष श्री के के राम वर्मा को रिसीवर नियुक्त कर दिया गया।
किसी भी प्रकार का संघर्ष टालने के लिये उस स्थान से 500 गज की परिधि में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया।
6. हिन्दू सम्मेलन
देश के सोए हिन्दू को जगाने के लिए हिंदू महासभाए
1983 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हिन्दू जागरण मंच के तत्वावधान में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिये पधारे उ.प्र. सरकार के पूर्व मंत्री श्री दाऊदयाल खन्ना, जो मुरादाबाद से पांच बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विधायक रहे, ने श्री राम जन्मभूमि अयोध्या,
श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा तथा वाराणसी स्थिति काशी विश्वनाथ मंदिर पर बनी मस्जिदों को हिन्दू स्वाभिमान के लिये चुनौती बताते हुए उनकी मुक्ति का प्रयास किये जाने की मार्मिक अपील की। उपस्थित हिन्दू समाज ही नहीं अपितु आयोजकों को भी इस तथ्य की जानकारी नही थी।
श्री खन्ना की अपील का गहरा असर हुआ और सम्मेलन में ही तीनों मन्दिरों की मुक्ति का प्रस्ताव पहली बार पारित हुआ।
7. प्रथम धर्म संसद
अशोक सिंहल जी जिन्होंने श्री राम मंदिर के संघर्ष को एक नई दिशा दी
उक्त जानकारी के आधार पर विश्व हिन्दू परिषद का एक प्रतिनिधि मण्डल श्री अशोक सिंहल के नेतृत्व में तीनों स्थानों के तथ्यान्वेषण के लिये गया। मुजफ्फरनगर में पारित प्रस्तावों पर देश के शीर्षस्थ संतों महंतों से परामर्श कर अप्रेल 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया
जिसे धर्म संसद नाम दिया गया। यहां पुनः उक्त तीनों प्रस्ताव पारित किये गये।धर्म संसद में ही श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया।
समिति के तत्वावधान में जन्मभूमि पर लगे ताले को खुलवाने की मांग को लेकर बिहार के सीतामढ़ी से श्रीराम जानकी रथयात्रा प्रारंभ करने तथा देश भर में जनजागरण करने का भी निर्णय किया गया।
8. ताला खुला
प्रधानमंत्री जी की हत्या और आर्थिक हिंसा की शुरुआत
हिन्दू की एकता के आगे कांग्रेस सरकार को ताला खोलना पड़ा
श्री राम जानकी रथों के माध्यम से व्यापक जन जागरण हुआ। किन्तु वे रथ दिल्ली पहुंच पाते, इससे पूर्व ही प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी। इसके साथ ही राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में सिख बन्धुओं के नृशंस नरसंहार का सिलसिला शुरू हो गया।
श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने इन परिस्थितियों में अपने आंदोलन को एक वर्ष के लिये रोक दिया। अक्तूबर 1985 में कर्नाटक के उडुपि में द्वितीय धर्म संसद का आयोजन किया गया जहां सरकार को जन्मभूमि पर लगा ताला खोलने के लिये चेतावनी दी गयी।
फैजाबाद के जिला न्यायाधीश श्री के एम पाण्डेय ने 1 फरवरी 1986 को ताला खोलने का आदेश दे दिया। ज्ञातव्य है कि इस समय जहां केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे वहीं उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह थे।
9. अब सवाल ये था की कैसा हो श्री राम का मंदिर ?
अब प्रश्न मंदिर के निर्माण का था। इसके लिये आवश्यक था मंदिर का प्रारूप। सोमनाथ मंदिर का प्रारूप बनाने वाले श्री सोमपुरा के पौत्र तथा मंदिर शिल्प के प्रख्यात विशेषज्ञ श्री चन्द्रकान्त सोमपुरा को श्री रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर का प्रारूप तैयार करने का काम सौंपा गया।
श्री सोमपुरा ने 270 फीट लम्बे, 135 फीट चौड़े और 125 फीट ऊंचे दो तल वाले भव्य मंदिर का प्रारूप तैयार किया।
10. श्री रामशिला पूजन
श्री रामशीला का प्रथम बार पूजन
जनवरी 1989 में प्रयाग में कुम्भ के अवसर आयोजित तृतीय धर्म संसद में एक लाख से अधिक संतों और रामभक्तों के बीच पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में 9-10 नवम्बर को श्री रामजन्मभूमि पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गयी।
प्रथम दिन 30 सितम्बर 1989 को देश भर में रामशिलाओं के पूजन की योजना बनायी गयी। इस दिन लगभग 2 लाख 75 हजार गांवों में रामशिलाओं का पूजन कर अयोध्या भेजा गया। विदेशों में निवास कर रहे भारतीयों ने भी मन्दिर निर्माण के लिये रामशिलायें अयोध्या भेजीं
घोषित कार्यक्रम के अनुसार 9 नवम्बर 1989 को प्रातः निर्धारित समय पर पू. महंत अवैद्यनाथ, पू. वामदेव जी तथा महंत रामचन्द्रदास परमहंस के नेतृत्व में भूमि उत्खनन कार्य हुआ। शंखध्वनि और मंत्रोच्चार के बीच शिलान्यास सम्पन्न हुआ।
बिहार के दलित समाज के रामभक्त श्री कामेश्वर चौपाल ने राम मंदिर की पहली शिला रखी। शिलान्यास से पूर्व ही उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने घोषणा कर दी थी कि शिलान्यास स्थल विवादित भूमि नहीं है।
किन्तु 11 नवंबर को जब 7 हजार से अधिक सन्त तथा रामभक्त निर्माण हेतु कारसेवा के लिये आगे बढ़े तो उन्हें जिलाधिकारी की आज्ञा से रोक दिया गया। इस समय राज्य के मुख्यमंत्री श्री नारायणदत्त तिवारी थे।
11-श्री राम लल्ला के ऊपर हिंदू मुस्लिम राजनीति
केन्द्र और राज्य सरकारें जहां अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के कीर्तिमान बना रही थीं वहीं हिन्दू समाज की रामजन्मभूमि के प्रति आस्था का भी मखौल बनाया जा रहा था। इससे उत्पन्न रोष की बाढ़ में दोनों ही सरकारें बह गयीं।
नवंबर 1989 में उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ साथ हुए जिनमें कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी।नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से भेंट कर राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के प्रतिनिधियों ने सारे ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक प्रमाण उनके समक्ष रखे।
प्रधानमंत्री द्वारा शीघ्र ही निर्णय का आश्वासन दिया गया। फरवरी माह में उन्होंने पुनः चार महीने का समय मांगा जो जून में समाप्त हो गया।
12-प्रथम कारसेवा
पहली बार रामभक्तों द्वारा कारसेवा की चेतावनी
सरकार द्वारा फिर भी कोई सकारात्मक उत्तर न मिलने पर 01 अगस्त 1990 को संतों ने वृंदावन में मंदिर निर्माण में आने वाली चुनौतियों से संघर्ष हेतु तन मन धन अर्पण करने का संकल्प किया। अगस्त मास में देश भर में श्री राम कारसेवा समितियों का गठन किया गया।
15 अगस्त को घंटे घड़ियाल और शंख बजा कर चेतावनी दिवस मनाया गया।सन्तों ने ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की अध्यक्षता में श्री राम कारसेवा समिति का गठन किया
तथा 30 अक्तूबर 1990 को देवोत्थान एकादशी के दिन मंदिर निर्माण के लिये कारसेवा प्रारंभ करने की घोषणा कर दी। समिति का संयोजक विहिप के महामंत्री श्री अशोक सिंहल को बनाया गया।
13-रामज्योति
घर घर तक , भारत के बच्चे बच्चे के मन में श्री राम ke प्रति प्रेम भावना और उनके हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए युवाओं में एक ज्वालामुखी का निर्माण शुरू हुआ
मंदिर निर्माण का संकल्प घर घर तक पहुंचाने के लिये रामज्योति को माध्यम बनाया गया। 01 सितंबर 1990 को अयोध्या में पूर्ण विधि विधान से मंत्रोच्चार के बीच अरणि मंथन द्वारा अग्नि का आह्वान किया गया। इस अग्नि से ही 18 अक्तूबर को दीपावली के दीप प्रज्ज्वलित करने का संदेश संतों ने दिया।
400 बड़ी और सैकड़ों छोटी-छोटी यात्राओं के माध्यम से देश के लाखों गावों तक यह ज्योति पहुंची, साथ ही मंदिर निर्माण का संकल्प भी।
14-परिंदा भी पर नहीं मार सकता
सत्ता के घमंड में चूर और मुस्लिमों को खुश करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने की बड़ी बड़ी बातें
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने घोषित किया कि वे 30 अक्तूबर को अयोध्या में कारसेवा नहीं होने देंगे। अयोध्या की ओर जाने वाली सभी सड़कें बंद कर दी गयीं और सभी रेलगाड़ियां रद्द कर दी गयीं।
श्री रामजन्मभूमि को पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने घेर लिया और अयोध्या को छावनी में बदल दिया गया। मुख्यमंत्री ने अहंकारपूर्वक घोषणा की कि उनकी इजाजत के बिना अयोध्या में कारसेवक तो क्या, परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा।
कारसेवकों को रोकने के लिये उत्तर प्रदेश की पुलिस और अर्धसैनिक बलों के अतिरिक्त केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस, रेलवे सुरक्षा बल तथा केन्द्रीय रिजर्व पुलिस के 1 लाख 80 हजार सशस्त्र जवान भी केन्द्र से मंगा कर तैनात किये गये थे।
उत्तर प्रदेश से मिलने वाली मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमाओं पर सड़कों में 10-10 फीट चौड़ी खाइयां खोद दी गयीं थीं। इटावा में चंबल नदी के पुल पर दस फुट ऊंची और तीन फीट चौड़ी कंक्रीट की दीवार ही खड़ी कर दी गयी थी। अनेक स्थानों पर लोहे की रेलिंग लगा कर उनमें करंट प्रवाहित कर दिया गया था।
इतनी जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था के बाद दुनियां भर से आये पत्रकारों को भी यह विश्वास हो गया था कि कारसेवा असंभव है। 29 अक्तूबर को अज्ञात स्थान से जब श्री अशोक सिंहल का बयान जारी हुआ, “पूर्व घोषणा के अनुसार 30 अक्तूबर को ठीक 12.30 बजे कारसेवा होगी”, तो सहसा कोई भी इस पर विश्वास न कर सका।
15-सत्ता का दर्प चूर हुआ
देवोत्थान एकादशी की भोर। अयोध्या नगरी में कर्फ्यू लागू था, सुरक्षा बलों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिये गये थे।नगर की सड़कों पर सशस्त्र जवानों के अतिरिक्त कोई नजर नहीं आता। सच में, परिन्दा पर न मार सके, ऐसी ही स्थिति थी। प्रातः नौ बजे।
अचानक मणिरामदास छावनी के द्वार खुले और पूज्य वामदेव जी और महंत नृत्यगोपाल दास जी बाहर निकले। ठीक इसी समय वाल्मीकि मंदिर का कपाट खोल कर विहिप के महामंत्री श्री अशोक सिंहल प्रकट हुए। उनके साथ थे उ.प्र. पुलिस के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक श्री श्रीशचन्द्र दीक्षित।
उन्हें देख कर सभी चौंक गये। एक सप्ताह से आन्दोलन के इन नेताओं की तलाश में पुलिस ने अयोध्या का चप्पा चप्पा छान मारा था लेकिन उनकी हवा भी न पा सकी थी आश्चर्यचकित पत्रकार भी हुए थे। वे सोच रहे थे कि यह लोग अकेले पहुंचने में सफल भी हो गये तो इतनी सुरक्षा व्यवस्था के सामने क्या कर सकेंगे।
लेकिन अभी तो रोमांच का क्षण आना बाकी था।
इन नेताओं ने जयश्री राम का उदघोष कर जैसे ही हनुमान गढ़ी की ओर कदम बढ़ाये, घरों के दरवाजे खुल लगे और हर घर से कारसेवक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की टोलियां निकलने लगीं। देखते ही देखते भगवा पटके सर से बांधे हजारों लोगों का काफिला बढ़ चला।
सबसे आगे संत, फिर महिलायें और बच्चे, सबसे अंत में पुरुष। निहत्थे, निर्भीक कारसेवक रामनाम का संकीर्तन करते श्री राम जन्मस्थान की ओर आगे बढ़ रहे थे। प्रशासन हतप्रभ था। परिंदा भी पर न मार सके, ऐसी सुरक्षा का दावा करने वालों के होश उड़ गये।
हनुमान गढ़ी के पास पहुंचते ही बौखलाये प्रशासन ने निहत्थे कारसेवकों पर लाठी बरसाना प्रारंभ कर दिया। श्री अशोक सिंहल के सिर पर लाठी का प्रहार हुआ, रक्त की धार बह चली। उनके मुख से निकले जय श्री राम के घोष ने कारसेवकों के पौरुष को जगा दिया।
64 वर्षीय श्रीश चन्द्र दीक्षित ढ़ांचे के बाहर बनी आठ फीट ऊंची दीवार और उस पर लगी कंटीले तारों की बाड़ पार कर कब और कैसे रामलला के सामने जा पहुंचे, वे भी नहीं समझ सके।उनके साथ ही सैकड़ों कारसेवक भी प्रांगण के अंदर थे। देखते ही देखते वे सभी बन्दरों की भांति ढ़ांचे के गुम्बद पर चढ़ गये।
कोलकाता के रामकुमार और शरद कोठारी ने बीच में स्थित मुख्य गुम्बद पर हिन्दू राष्ट्र का प्रतीक भगवा ध्वज फहरा दिया। फैजाबाद के एक नौजवान और एक साधु महाराज ने शेष दोनों गुम्बदों पर भी ध्वज लगा दिया। यह दोनों लोग ही गुम्बद से फिसल कर नीचे गिरे और रामकाज में बलिदान हो गये।
उस रात अयोध्या सहित साकेत में अभूतपूर्व दीवाली मनायी गयी।यह समाचार सुनते ही कि विवादित ढ़ांचे पर कारसेवकों का कब्जा हो गया है, सुरक्षा के अहंकारपूर्ण दावे करने वाले मुख्यमंत्री मुलायम सिंह स्तब्ध रह गये।
दूसरी ओर बलिदानी कारसेवकों के शोक तथा उनके शवों के अंतिम संस्कार के लिये 31 अक्तूबर और 01 नवम्बर को कारसेवा बन्द रही। 02 नवम्बर को रामदर्शन कर कारसेवकों के वापस जाने की घोषणा की गयी।
17. खून की होली
अभी दो दिन पहले ही अयोध्या ने दीवाली मनायी थी। कौन जानता था कि महाकाल की इच्छा होली की है, वह भी खून की होली। आज कारसेवक रामलला के दर्शन कर अपने अपने घरों को लौटने के लिये तैयार थे।
प्रातः 11 बजे दिगम्बरी अखाड़े से परमहंस रामचन्द्र दास, मणिराम छावनी से महंत नृत्यगोपाल दास और सरयू के तट से बजरंग दल के संयोजक श्री विनय कटियार तथा श्रंगारहाट से सुश्री उमा भारती के नेतृत्व में कारसेवकों के जत्थे राम जन्म भूमि की ओर बढ़े।
अपमान की आग में जल रहे मुख्यमंत्री ने प्रतिशोध लेने की ठान ली थी। विनय कटियार और उमा भारती के नेतृत्व में चल रहे निहत्थे कारसेवकों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया।
दिगम्बरी अखाड़े की ओर से परमहंस रामचन्द्र दास के नेतृत्व में आ रहे काफिले पर पीछे से अश्रुगैस के गोले फेंके गये और कारसेवक कुछ समझ पाते इससे पहले ही बिना किसी चेतावनी के गोलियों की वर्षा होने लगी।
कारसेवकों के शरीर जयश्री राम के उच्चारण के साथ कुछ क्षण तड़पते और फिर शांत हो जाते।30 अक्तूबर को मुख्य गुंबद पर भगवा फहराने वाले शरद कोठारी को भीड़ में से खोज कर गोली मारी गयी।
उसका छोटा भाई रामकुमार कोठारी जब उसे बचाने के लिये आगे बढ़ा तो उसे भी गोलियों से भून दिया गया। अपने माता पिता के यह दो ही पुत्र थे। दोनों रामकाज में समर्पित हो गये। मां की गोद सूनी हो गयी।
18. अस्थिकलश
बलिदानी कारसेवकों के अस्थिकलशों को देश भर में ले जाया गया। स्थान स्थान पर उनका भावपूर्ण स्मरण कर नागरिकों ने उन्हें श्रद्धा सुमन चढ़ाये। 1991 की मकर संक्रांति को माघमेला के अवसर पर उनकी अस्थियां प्रयागराज संगम में विसर्जित कर दी गयी।
कारसेवकों के इस बलिदान ने मन्दिर निर्माण के संकल्प को और दृढ़ कर दिया।
19. संतों की सिंहगर्जना
2-3 अप्रेल 1991 को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चतुर्थ धर्मसंसद सम्पन्न हुई। 04 अप्रेल को दिल्ली के वोट क्लब पर ऐतिहासिक रैली हुई जिसमें देश भर से पच्चीस लाख से भी अधिक रामभक्त एकत्र हुए।
इस रैली में संतों ने सिंह गर्जना की कि मंदिर वहीं बनेगा। सरकार अपनी भूमिका स्वयं तय करें। उन्हें इस जनज्वार के आगे झुकना होगा ।
रैली अभी समाप्त भी नहीं हुई थी कि सूचना मिली कि उत्तर प्रदेश में श्री मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। केन्द्र की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार इससे पूर्व 17 सितम्बर को ही विश्वास मत में पराजित हो चुकी थी।
कारसेवकों ने सरकारी अत्याचार के विरुद्ध नारा दिया था, “दिल्ली की गद्दी डुबो सके, सरयू में इतना पानी है”, वह नारा सच साबित हुआ।
20. धरती से निकले मंदिर के प्रमाण
इससे पूर्व सरकार ने तीर्थयात्रियों हेतु सुविधाएं विकसित करने के लिये स्वयं भी 2.77 एकड़ भूमि अधिगृहीत की। जून 1991 में जब सरकार की भूमि पर समतलीकरण का कार्य प्रारंभ हुआ तो दक्षिण पूर्वी कोने से अनेक पत्थर प्राप्त हुए जिनमें शिव पार्वती की खंडित मूर्ति, सूर्य के समान अर्धकमल,
मन्दिर के शिखर का आमलक सहित उत्कृष्ट नक्काशी वाले पत्थर व मूर्तियां थी। यह सभी प्रस्तर खण्ड पुरातात्विक महत्व के थे और मन्दिर की ऐतिहासिकता के स्वयं सिद्ध प्रमाण थे।
21. फिर फहराया भगवा
31 अक्तूबर 1991 को एक बार पुनः कारसेवक अयोध्या में जुटे। समिति ने यद्यपि प्रतीकात्मक कारसेवा का ही निश्चय किया था किन्तु कुछ उत्साही कारसेवक एक बार पुनः गुम्बद पर जा चढ़े और भगवा लहरा दिया।
गुम्बदों को कुछ नुकसान भी पहुंचा किन्तु प्रदेश सरकार ने उसकी मरम्मत करा दी। बाद में ढ़ांचे की रक्षा के लिये इसके चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया।
22. प्रधानमंत्री से भेंट
आंदोलन के नेता स्वामी वामदेव, परमहंस रामचन्द्र दास, महंत अवैद्य नाथ, युगपुरुष परमानंद, स्वामी चिन्मयानंद आदि ने प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव से भेंट कर राम मंदिर निर्माण में आने वाली बाधाओं को दूर करने का आग्रह किया।
23. सर्वदेव अनुष्ठान व नींव ढ़लाई
09 जुलाई 1992 से 60 दिवसीय सर्वदेव अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। जन्मभूमि के ठीक सामने शिलान्यास स्थल से भावी मंदिर की नींव के चबूतरे की ढ़लाई भी प्रारंभ हुई। 15 दिनों तक इसके लिये कारसेवा चली और नींव ढ़लाई का काम होता रहा।
शांतिपूर्ण ढ़ंग से चल रही इस कारसेवा को रोकने के लिये धर्मनिरपेक्षतावादियों ने पूरे देश में कोहराम मचाया। लोकसभा में अभूतपूर्व हंगामा हुआ जिसके चलते एक सप्ताह तक लोकसभा की कार्यवाही ठप्प रही।
प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हाराव ने संतों से तीन माह का समय मांगा और निर्धारित समय सीमा में अयोध्या विवाद का सर्वमान्य हल निकालने का विश्वास दिलाया। संतों ने प्रधानमंत्री का आग्रह स्वीकार कर लिया तथा नींव ढ़लाई का काम बन्द कर दिया।जिस नीव की ढ़लाई की जा रही थी
वह 290 फीट लम्बी, 155 फीट चौड़ी और 2-2 फीट मोटी एक के ऊपर एक तीन परत ढ़लाई करके कुल छः फीट मोटी थी।
24. पादुका पूजन
नन्दी ग्राम में भरत जी ने 14 वर्ष तक वनवासी रूप में रह कर अयोध्या का शासन भगवान की पादुकाओं के माध्यम से चलाया था। इसी स्थान पर 26 सितम्बर 1992 को श्रीराम पादुकाओं का पूजन हुआ।
अक्तूबर मास में देश के गांव गांव में इन पादुकाओं के पूजन द्वारा जन जागरण हुआ। रामभक्तों ने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया।
25. द्वितीय कार सेवा
29-30 अक्तूबर 1992 को नयी दिल्ली में पंचम धर्मसंसद आहूत की गयी। संतों ने सरकार के रवैये पर रोष जताते हुये समाधान न होने पर गीता जयंती 06 दिसम्बर 1992 से अयोध्या में पुनः कारसेवा प्रारंभ करने की घोषणा की निर्धारित समय सीमा में सरकार विवाद का हल ढ़ूंढ़ने में विफल रही।
परिणामस्वरूप गीता जयंती की घोषित तिथि पर कारसेवा की घोषणा कर दी गयी। कई दिन पहले से ही पूरे देश से कारसेवक पहुंचने प्रारंभ हो गये थे न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए उन सभी को परिचय पत्र दिये जा रहे थे।
न्यायालय के निर्देशानुसार प्रचार माध्यमों द्वारा निरंतर उसके निर्देशों की उदघोषणा भी की जा रही थी।
26. न्यायिक प्रक्रिया
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार से कारसेवा के संबंध में आश्वासन मांगा गया। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने शपथ पत्र दाखिल कर न्यायालय को आश्वासन दिया कि अधिग्रहीत 2.77 एकड़ भूमि पर लम्बित विवाद का फैसला होने तक किसी निर्माण की अनुमति नहीं दी जायेगी,
क्षेत्र में निर्माण सामग्री और उससे संबंधित यंत्र नहीं आने दिये जायेंगे तथा धार्मिक गतिविधियों के तहत प्रतीकात्मक कारसेवा की जायेगी। इस आश्वासन के पश्चात उच्चतम न्यायालय ने सांकेतिक कारसेवा की अनुमति प्रदान कर दी।
अयोध्या में न्यायिक पर्यवेक्षक की नियुक्ति कर दी गयी जिसे कारसेवा के दौरान इसपर नजर रखनी थी कि शपथ पत्र में दिये गये आश्वासनों का उल्लंघन न हो।समिति को यह विश्वास था कि प्रयाग उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ का 2.77 एकड़ भूमि पर निर्माण संबंधी फैसला गीता जयंती से पूर्व आ जायेगा।
इस वाद की सुनवाई 4 नवंबर को ही पूरी हो चुकी थी और निर्णय प्रतीक्षित था।
किन्तु फिर भी न्यायालय ने कारसेवा से तीन दिन पूर्व अपना निर्णय 11 दिसम्बर तक के लिये सुरक्षित कर दिया।वस्तुतः यह भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास की अपनी भूमि थी जिसे मुलायम सिंह सरकार ने अधिग्रहीत कर लिया था।
न्यास ने न्यायालय से इस अधिग्रहण को अवैध घोषित करते हुए न्यास को भूमि वापस सौंपे जाने की प्रार्थना की थी। इसी भूमि पर कारसेवा प्रस्तावित थी।11 दिसंबर को सुनाये अपने फैसले में न्यायालय ने न्यास के दावे को उचित मानते हुए भूमि के अधिग्रहण की अधिसूचना को अवैध ठहरा दिया।
27. गीता जयंती (06 दिसम्बर 1992)
इस बीच अयोध्या में लगभग चार लाख कारसेवक पहुंच चुके थे। समिति के सामने समस्या थी कि इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित कारसेवकों को क्या समझाया जाय। फिर भी कारसेवकों को सम्बोधित करते हुए नेताओं ने ‘जोश में होश न खोने’,
‘संयम बरतने’, ‘अनुशासन में रहने’, ‘मर्यादा न भंग होने’, ‘साधु संतों के निर्देश का पालन करने’ आदि के निर्देश दिये। कारसेवा का स्वरूप पंक्तिबद्ध रूप से दोनों मुठ्ठियों में सरयू की रेत लाकर निर्माणस्थल पर डालने तक सीमित कर दिया।
गीता जयंती की ठंडी सुबह कारसेवक सरयू में स्नान कर निर्धारित समय पर रामकथा कुंज में जुटने लगे। लगभग 10 बजे औपचारिक कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। संतों तथा आंदोलन के नेताओं ने कारसेवकों को संबोधित करना शुरू किया।
इसी मध्य कुछ कारसेवक अधिग्रहीत भूमि, जिस पर कारसेवा प्रस्तावित थी, की ओर बढ़ गये। मंच संचालक ने कारसेवकों से प्रस्तावित कारसेवास्थल तुरंत खाली कर देने की अपील की। साथ ही व्यवस्था में लगे कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि जो कारसेवक परिसर खाली न कर रहे हों उन्हें उठा कर बाहर कर दिया जाय।
28. धैर्य टूट गया
कारसेवकों से बलपूर्वक कारसेवास्थल खाली कराने का प्रयास जैसे ही शुरू हुआ, उनके धैर्य का बांध टूट गया। स्वयंसेवकों को परे धकेल कर बैरीकेटिंग को लांघते हुए कारसेवकों का समूह अंदर घुस गया।यह देख कर अन्य कारसेवक भी उस ओर दौड़ पडे और सारे वातावरण में जयश्रीराम के नारे गूंजने लगे।
उनमें से कुछ कारसेवक विवादित ढ़ांचे तक भी जा पहुंचे थे।मंच पर उपस्थित नेताओं ने पहले मंच से ही स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। ढांचे की ओर बढ़ने वाले अधिकांश कारसेवक दक्षिण भारतीय हैं,
यह देख सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह (महासचिव) श्री हो वे शेषाद्रि ने कन्नड़, तमिल, तेलुगू और मलयालम में कारसेवकों से वापस आने की अपील की। इसका कोई असर न देख कर भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी और सुश्री उमा भारती ने इसका प्रयास किया।
यह प्रयास भी बेकार गया।अपने प्रयास निष्फल होते देख अनेक नेता मंच से उतर कर स्वयं ढ़ांचे तक गये और कारसेवकों को निकालने का प्रयास करने लगे। इनमें श्री अशोक सिंहल और श्री आडवाणी भी थे।
यद्यपि वे लोग कुछ मात्रा में कारसेवकों को बाहर भेजने में सफल हुए किन्तु उससे अधिक संख्या में लोग निरंतर ढ़ांचे की ओर बढ़ रहे थे। उस अफरा तफरी में कोई किसी को नहीं पहचान रहा था। स्थित नियंत्रण से परे हो चुकी थी। आंदोलन के नेता ही नहीं, सुरक्षा बल भी कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं थे।
29. विवादित ढ़ांचा ध्वस्त
कारसेवकों में उत्साह तो अपरिमित था किन्तु अपना मनोरथ पूरा करने के लिये उनके पास कोई औजार नहीं था। प्रारंभ में तो वे ढ़ांचे को केवल हाथों से ही पीट रहे थे और धक्का दे रहे थे। किन्तु शीघ्र ही कुछ नौजवानों ने सुरक्षा के लिये लगाये गये बैरीकेटिंग के पाइपों को निकाल लिया और उससे ढ़ांचे पर प्रहार करने लगे।
दोपहर 01.30 बजे ढ़ांचे की एक दीवार को कारसेवकों ने ढ़हा दिया।इससे उनमें नया जोश भर गया और वे और अधिक तीव्रता से प्रहार करने लगे। कारसेवकों का सैलाब वहां हर पल बढ़ रहा था।बड़ी संख्या में कारसेवक गुम्बदों पर भी चढ़ गये थे।
2.45 बजे वे पहला गुम्बद गिराने में सफल हो गये। इसने उनके जोश को दोगुना कर दिया। गुम्बद के साथ ही उस पर चढ़े बीसियों कारसेवक भी नीचे गिरे। जो कारसेवक उस गुम्बद को नीचे से गिराने की कोशिश कर रहे थे वे उसके नीचे ही दब गये।
वातावरण में गूंज रहे जोशीले नारों में आहों और कराहों के स्वर भी जुड़ गये। 4.30 बजे दूसरा गुम्बद भी धराशायी हो गया।लगभग 4.45 बजे अचानक तीव्र आवाज के साथ धूल का एक बादल उठा और आसमान में छा गया। कुछ पल के लिये लगा मानो सब कुछ ठहर गया।
धूल का गुबार कम होने पर देखा कि ढ़ांचे का तीसरा गुम्बद भी नीचे आ चुका था। विवादित ढ़ांचे का नामो निशान भी न बचा था। इतिहास का चक्र 464 वर्षों बाद अपनी परिक्रमा पूरी कर वहीं लौट आया था।
30. अस्थायी मंदिर का निर्माण कारसेवकों ने विवादित स्थल को समतल करने का काम प्रारंभ कर दिया। अब यह असली कारसेवा हो रही थी जिसके लिये कारसेवक आये थे। समतलीकरण का काम 6 दिसम्बर की सारी रात और 7 दिसम्बर के पूरे दिन चलता रहा।
समतल भूमि पर ईंट, मिट्टी और गारे से एक चबूतरे का निर्माण कर उस पर रामलला को स्थापित कर दिया गया और पूजा अर्चना प्रारंभ हो गयी। 8 दिसम्बर की भोर में केन्द्र सरकार के निर्देश पर वहां सुरक्षा बलों ने पहुंच कर सब कुछ अपने नियंत्रण में ले लिया। रामलला के नवनिर्मित मंदिर की पूजा अर्चना नियमित रूप से चलती रही।
31. सुरक्षा बलों की भूमिका आंदोलन का नेतृत्व जब कारसेवकों को विवादित ढ़ांचे ही नहीं, प्रस्तावित कारसेवा के स्थान से भी बाहर करने का प्रयत्न कर रहा था तो उसके पीछे दो उद्देश्य कार्य कर रहे थे। पहला, वे अपने कार्यक्रम को उसी प्रकार शांति पूर्ण ढ़ंग से पूरा करना चाहते थे और दूसरा,
न्यायालय में दिये शपथ पत्र का सम्मान बनाये रखने की उनकी मंशा थी। अभी तक का सारा आंदोलन संवैधानिक मर्यादा के भीतर रह कर ही चलाया गया था और वे उसे बनाये रखना चाहते थे।लेकिन कानून और व्यवस्था का प्रश्न उस समय प्रशासन को हल करना था
जिसने समय पर अपनी भूमिका ठीक तरह से नहीं निभायी। पुलिस सूत्रों के अनुसार जिला प्रशासन ने बाहर से आयी सीआरपीएफ और रैपिड एक्शन फोर्स से लगभग 02 बजे सहायता मांगी थी किन्तु उन्हें आदेश करने के लिये मजिस्ट्रेट स्तर का पदाधिकारी चाहिये था जो उन परिस्थितियों में उपलब्ध नहीं हो सका।
सायं 5.30 पर राज्य के मुख्यमंत्री ने अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए त्यागपत्र दे दिया। 8.30 बजे राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। इसके साथ ही सारी शक्तियां केन्द्र सरकार के हाथ में आ गयीं थी। इसके बावजूद वहां निर्माण कार्य चलता रहा।
केन्द्रीय सुरक्षा बल विवादित स्थल से केवल 15 किमी की दूरी पर फैजाबाद में थे। वे 08 दिसम्बर को प्रातः 3.50 बजे फैजाबाद से चले और 04.10 पर विवादित स्थल पर पहुंच गये। लेकिन केन्द्र द्वारा उन्हें वहां पहुंचने के लिये आदेश देने में 38 घंटे का समय लगा जो आश्चर्यचकित करता है।
32. अधिग्रहण 27 दिसम्बर 1992 को केन्द्र सरकार ने विवादित क्षेत्र और उसके आस पास की 67 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय से राय लेने का फैसला लिया। सर्वोच्च न्यायालय की राय मिलने के बाद 07 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये एक अध्यादेश से उक्त भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया।
33. दर्शन की अनुमति अयोध्या में विवादित क्षेत्र पर सुरक्षा बलों के अधिकार के बाद 08 दिसम्बर 1992 को नगर में कर्फ्यू लागू कर दिया गया। हरिशंकर जैन नाम के एक वकील ने उच्च न्यायालय में गुहार लगायी कि भगवान भूखे हैं अतः उनके राग,
भोग, पूजन की अनुमति दी जाय। 01 जनवरी 1993 को न्यायमूर्ति हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन पूजन की अनुमति प्रदान की।बाबरी ढ़ांचे के विध्वंस के बाद विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
यह प्रतिबंध न्यायालय में नहीं टिक सका और उसे हटाना पड़ा। कुछ ही समय पश्चात श्रीराम मंदिर के निर्माण को लक्ष्य कर गतिविधियां पुनः प्रारंभ हो गयीं जिनकी संक्षिप्त जानकारी निम्नवत है।
34 .6 दिसंबर 1992 वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में हुए सांप्रदायिक दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।संपत्ति पर कानूनी विवाद भारतीय सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा । सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2019 तक स्वामित्व विवाद मामलों की सुनवाई की।
35 .साल 2002 हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। गोधरा कांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
36. साल 2010 इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
37. साल 2011 सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
38. साल 2017 सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए।
39. 8 मार्च 2019 सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा।
40. अगस्त 2019
1 अगस्त कोमध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा। 6 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
41 .16 अक्टूबर 2019
अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
42 .9 नवंबर 2019
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश।निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया।
43. 25 मार्च 2020
तकरीबन 28 साल बाद रामलला टेंट से निकलर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट हुए।
44.
5 अगस्त 2020
राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम। पीएम नरेंद्र मोदी, आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और साधु-संतों समेत 175 लोगों आमंत्रित । अयोध्या पहुंचकर हनुमानगढ़ी में दर्शन के बाद पीएम मोदी ने किया दर्शन भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल हुए
45 .22 जनवरी 2022
500 साल का इंतज़ार खत्म । यशस्वी ,तपस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में होगी रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा ।
श्री राम लल्ला तो झांकी है काशी मथुरा बाक़ी है
श्री राम के बाद अब श्री कृष्ण और महादेव जी की पावन धारा जिहादी गुबंद से मुक्त करानी है ।
अब जय श्री कृष्ण और हर हर महादेव के नारों की उद्घोष संपूर्ण भारतवर्ष में गूंजेगी ।
जय श्रीराम
History of Shri Ram Janmabhoomi Temple
What situations has our Shri Ram Lalla gone through in the nation of India?
Why did I have to struggle for so long for my own birth place? Why is there opposition to Shri Ram only in a Hindu majority country like India?
The existence and identity, identity and self-respect of any nation depends on the preservation and promotion of the centers of faith and belief, memorial places of great men and cultural heritage of that country.
It is a bitter truth of history that barbaric foreign invaders had the audacity to hurt our national self-respect by destroying thousands of our centers of devotion, virtue and inspiration.
They demolished thousands of temples in India and then to show the arrogance of their supremacy, they built mosques in their place with the debris of those temples. There are countless such places in every corner of the country.
After Shri Ram Mandir, should the youth of the country come forward for Kashi and Mathura also?
Kashi Vishwanath Temple Varanasi, Shri Krishna Janmabhoomi Mathura, Shri Ram Janmabhoomi Ayodhya and Somnath Temple in Gujarat have been the main sources of the national cultural stream of India.
Therefore, the sting of their destruction always remained with the Hindu society and that is why the demand and efforts for their restoration and re-establishment continued continuously.
Especially for the liberation of Shri Ram’s birthplace, more than three and a half lakh people have sacrificed their lives in the 76 struggles fought so far.
Jihadi Mughalia Babar’s attack
Babar’s commander Mir Baqi demolished the temple built at the birthplace of Shri Ram, damaged many of its symbols, pillars, statues etc. and using them as debris, built a mosque-like structure at the same place.
If so, then this question should be taken out of the framework of the temple-mosque dispute or Hindu-Muslim problem and as an independent nation,
it should be considered as a way of eradicating the symbols of slavery and restoring the monument which awakens the nation’s self-respect and identity and reveals its identity.
Must be seen in. This has been happening in all independent and self-respecting countries and societies, and it is also natural.
Shri Ram- A National Man
For India, Ram is not just a god of worship. He is a national leader who conducts his life according to the norms of national identity, national pride, patriotism and dignity. In such a situation, it serves as a symbol of washing away the stigma of humiliation,
removing the signs of slavery, getting freedom from cultural slavery, protecting faith and values, inspiring future generations,
awakening the consciousness of the nation and revealing national identity. It is very natural to build a temple on Shri Ram’s birthplace.
1. Ram is the symbol of faith of the country. The valiant hero of history. Become the best man by establishing modesty and dignity in public life. India’s national leader Ram. Ram Rajya, i.e. the state following modesty. Determined for public welfare.
The highest standard of governance in the history of India. That is why the sketch of Ayodhya King Shri Ram along with Mata Janaki and Shri Lakshman seated in the Pushpak Viman was depicted on the first copy of the country’s Constitution.
2. Attack – Mughalia Babar destroyed Shri Rasm Temple and built Babri Gubund. In 1526 AD, the cruel ruler of Fargana, Babar attacked India. Looting hundreds of cities, burning thousands of villages and killing lakhs of people along the way,
he reached Ayodhya in 1528 AD. Babar’s commander Mir Baqi attacked Ayodhya on his orders. According to historian Cunningham, Mir was successful in demolishing the remaining temple with cannon balls only after 1 lakh 74 thousand Hindus were martyred in a fierce battle of 15 days.
He built a mosque-like structure at that place from the debris of the Ramjanmabhoomi temple on the instructions of Darvesh Musa Ashikan.
3. Struggle – Efforts made by his devotees for Shri Ram Ji to convert him from a tent to a grand temple 76 Wars, Babar, Humayun, Akbar, Aurangzeb, Saadat Ali, Nasiruddin Haider, all these Jihadis tried many times to end the existence of Shri Ram.
The demolition of the temple situated at Ramjanmabhoomi, the center of faith of Hindus across India including Ayodhya, became a cause of unbearable pain for the devotees. This gave rise to an uninterrupted series of struggles for the liberation of Ramjanmabhoomi.
In the period from 1528 to 1949, there were 76 wars to liberate the birthplace, in which lakhs of Ram devotees sacrificed their lives. In these, there was conflict 4 times during the reign of Babar, 10 times during the reign of Humayun,
20 times during the reign of Akbar, 30 times during the reign of Aurangzeb, 5 times during the reign of Nawab Saadat Ali of Awadh and 3 times during the reign of Nawab Nasiruddin Haider.
5. Ramlala in the lock Seeing the possibility of protest from the Muslim community on the incident of Ramlala’s appearance, on 29 December 1949, the then District Magistrate Shri Krishna Kumar Nayyar declared the area disputed and imposed prohibition order.
The main gate of the structure was closed with iron rods. The lock was put. Only four priests and one storekeeper were allowed to enter through a small gate for worship and offering food etc.
and Faizabad Municipality President Shri KK Ram Verma was appointed receiver. To avoid any kind of conflict, entry of Muslims was prohibited within a radius of 500 yards from that place. And in the conference itself, the proposal for the liberation of the three temples was passed for the first time.
6. Hindu Conference Hindu Mahasabha to awaken the sleeping Hindus of the country
In 1983, a huge Hindu conference was held under the auspices of Hindu Jagran Manch in Muzaffarnagar, Uttar Pradesh. Came to Uttar Pradesh to participate in this conference.
Former government minister Mr. Dawoodyal Khanna, who was a five-time Indian National Congress MLA from Moradabad, called for the liberation of the mosques built on Shri Ram Janmabhoomi Ayodhya,
Shri Krishna Janmabhoomi Mathura and Kashi Vishwanath Temple in Varanasi as a challenge to Hindu self-respect. Made a touching appeal to make efforts. Not only the Hindu community present but even the organizers were not aware of this fact.
Shri Khanna’s appeal had a deep impact and the resolution for the liberation of the three temples was passed for the first time in the conference itself.
7. First Parliament of Religions Ashok Singhal ji who gave a new direction to the struggle for Shri Ram Mandir On the basis of the above information, a delegation of Vishwa Hindu Parishad went to the three places for fact-finding under
the leadership of Shri Ashok Sinhal. After consulting the top saints and mahants of the country on the resolutions passed in Muzaffarnagar,
a national conference was organized in Vigyan Bhawan, Delhi in April 1984, which was named Dharma Sansad. Here again all the three resolutions were passed.
Shri Ram Janmabhoomi Mukti Yagya Committee was formed in the Dharma Sansad itself. Under the auspices of the committee, it was also decided to start
Shri Ram Janaki Rath Yatra from Sitamarhi in Bihar and create public awareness across the country with the demand of opening the locks on the birthplace.
8. Open the lock The assassination of the Prime Minister and the beginning of economic violence Congress government had to open the lock in front of Hindu unity There was widespread public awareness through the chariots of Shri Ram Janaki.
But before that chariot could reach Delhi, Prime Minister Mrs. Indira Gandhi was assassinated. With this, the process of brutal massacre of Sikh brothers started in many parts of the country including the capital Delhi.
Under these circumstances, Shri Ram Janmabhoomi Mukti Yagya Samiti stopped its movement for a year.
In October 1985, the Second Parliament of Religions was organized in Udupi, Karnataka, where the government was warned to open the lock on the Janmabhoomi. Faizabad District Judge Shri KM Pandey ordered opening of the lock on 1 February 1986.
It is known that at this time, there was a Congress government at the Center whose Prime Minister was Rajiv Gandhi, while the Chief Minister of the Congress government of Uttar Pradesh was Virbahadur Singh.
9. Now the question was, how should the temple of Shri Ram be? Now the question was about the construction of the temple. For this, the design of the temple was necessary.
Shri Chandrakant Sompura, the grandson of Shri Sompura, who made the draft of Somnath temple and a renowned expert in temple craft, was entrusted with the task of preparing the draft of the temple to be built at the birthplace of Shri Ram.
Sri Sompura designed a grand temple with two floors 270 feet long, 135 feet wide and 125 feet high.
10. Shri Ramshila worship Worship of Shri Ramsheela for the first time In the Third Dharma Sansad organized on the occasion of Kumbh in Prayag in January 1989,
the foundation stone of the temple was announced at Shri Ram Janmabhoomi on 9-10 November in the presence of revered Devraha Baba among more than one lakh saints and Ram devotees. On the first day, on 30 September 1989,
a plan was made to worship Ramshilas across the country. On this day, Ramshilas were worshiped in about 2 lakh 75 thousand villages and sent to Ayodhya. Indians living abroad also sent Ramshilas to Ayodhya for the construction of the temple.
According to the announced program, on November 9, 1989, at the scheduled time in the morning, Mahant Avaidyanath, Pt. Land excavation work was done under the leadership of Vamdev ji and Mahant Ramchandradas Paramhans.
The foundation stone laying ceremony was completed amidst blowing of conch shell and chanting of mantras. Ram devotee Shri Kameshwar Chaupal of Dalit community of Bihar laid the first stone of Ram temple.
Even before the foundation stone laying ceremony, the Congress government of Uttar Pradesh had announced that the foundation stone laying site was not a disputed land.
But on November 11, when more than 7 thousand saints and devotees of Ram came forward to do Kar Seva for the construction, they were stopped by the order of the District Magistrate. At this time the Chief Minister of the state was Shri Narayan Dutt Tiwari.
11-Hindu Muslim politics on Shri Ram Lalla While the central and state governments were making records of minority appeasement, the faith of the Hindu society towards Ramjanmabhoomi was also being made a mockery of.
Both the governments were swept away in the flood of anger generated by this. In November 1989, elections for Uttar Pradesh Assembly and Lok Sabha were held simultaneously in which Congress had to face defeat.
Representatives of Ram Janmabhoomi Mukti Yagya Samiti met the newly elected Prime Minister Shri Vishwanath Pratap Singh. All historical and archaeological evidence was placed before them.
The Prime Minister assured a decision soon. In the month of February he again asked for four months’ time which ended in June.
12-First Karseva For the first time, warning of car service by Ram devotees Still not getting any positive response from the government, on August 1, 1990, the saints resolved to offer their body,
mind and wealth to fight the challenges in the construction of the temple in Vrindavan. In the month of August, Shri Ram Karseva Committees were formed across the country. On 15 August, Warning Day was celebrated by blowing gongs and conch shells.
The saints formed Shri Ram Karseva Committee under the chairmanship of Shankaracharya Swami Vasudevanand Saraswati of Jyotirpeeth and announced to start Karseva for
the construction of the temple on 30 October 1990 on the day of Devotthan Ekadashi. Did it. VHP General Secretary Shri Ashok Singhal was made the coordinator of the committee.
13-Ramjyoti In every home, the children of India started building a feeling of love for Shri Ram and among the youth to fight for his rights. Ramjyoti was made the medium to take the resolution of temple construction to every home.
On September 01, 1990, Agni was invoked through Arani Manthan amid chanting of mantras with full rituals in Ayodhya. It is from this fire that the saints gave the message of lighting the lamps of Diwali on 18th October.
Through 400 big and hundreds of small yatras, this light reached lakhs of villages in the country, along with the resolve to build the temple.
14-Even a bird cannot kill The then Chief Minister, intoxicated with the pride of power and to please the Muslims, talked big. The then Chief Minister of Uttar Pradesh Mulayam Singh Yadav declared that he would not allow Kar Seva to be held in Ayodhya on October 30.
All roads leading to Ayodhya were closed and all trains were cancelled. Shri Ram Janmabhoomi was surrounded by police and paramilitary forces and Ayodhya was converted into a cantonment.
The Chief Minister arrogantly announced that without his permission, not only Karsevak but Parinda would not be killed in Ayodhya. To stop the Karsevaks, apart from the Uttar Pradesh police and paramilitary forces,
Central Industrial Security Force, Indo-Tibetan Border Police, Railway Protection Force were deployed. And 1 lakh 80 thousand armed personnel of Central Reserve Police were also called from the center and deployed.
10-10 feet wide trenches were dug in the roads on the borders of Madhya Pradesh and Rajasthan meeting Uttar Pradesh. Only a ten feet high and three feet wide concrete wall was erected on the Chambal river bridge in Etawah.
Iron railings were installed at many places and electric current was passed through them. After such tremendous security arrangements, even the journalists from all over the world were convinced that Karseva was impossible.
When the statement of Shri Ashok Singhal was issued from an unknown place on 29th October, “As per the earlier announcement, Kar Seva will be held on 30th October at exactly 12.30 pm”, suddenly no one could believe it.
15-The pillar of power was shattered Dawn of Devotthan Ekadashi. Curfew was in force in Ayodhya city, orders were given to the security forces to shoot at sight. Apart from armed soldiers, no one was visible on the streets of the city.
In fact, the situation was such that the bird could not be hit. At nine in the morning. Suddenly the doors of Maniramdas cantonment opened and respected Vamdev ji and Mahant Nritya Gopal Das ji came out.
At the same time, VHP General Secretary Shri Ashok Singhal appeared after opening the door of Valmiki temple. U.P. was with him. Former Inspector General of Police Shri Shreeshchandra Dixit.
Everyone was shocked to see him. For a week, the police had searched every nook and corner of Ayodhya in search of these leaders of the movement but could not find them. Even the journalists were surprised.
They were wondering that even if these people succeeded in reaching there alone, what would they be able to do in front of such a strong security system. But the exciting moment was yet to come.
As soon as these leaders chanted Jaishree Ram and stepped towards Hanuman Garhi, the doors of the houses started opening and groups of Karsevak men, women and children started coming out from every house. Within no time, the convoy of thousands of people wearing saffron headscarves started increasing.
Saints are at the forefront, then women and children, and men at the end. The unarmed, fearless Karsevaks were moving towards the birthplace of Shri Ram while chanting the name of Ram.
The administration was shocked. Even the birds could not kill, but those who claimed such security were shocked. As soon as they reached near Hanuman Garhi, the agitated administration started lathicharge on the unarmed kar sevaks.
Shri Ashok Singhal was hit with a stick on his head and blood flowed out. The cry of Jai Shri Ram that came from his mouth awakened the courage of the Kar Sevaks.
64 year old Shrish Chandra Dixit could not understand how and when he crossed the eight feet high wall outside the structure and the barbed wire fence and reached in front of Ram Lalla.
Along with him, hundreds of kar sevaks were also inside the courtyard. Within no time they all climbed the dome of the structure like monkeys. Ramkumar and Sharad Kothari of Kolkata hoisted the saffron flag, the symbol of the Hindu nation,
on the main dome located in the middle. A young man and a Sadhu Maharaj from Faizabad also put the flag on the remaining two domes.
Both of them slipped from the dome and fell down and were sacrificed in Ramkaj. That night, an unprecedented Diwali was celebrated in Saket along with Ayodhya.
On hearing the news that the kar sevaks had taken over the disputed structure, Chief Minister Mulayam Singh, who had made arrogant claims of security, was stunned.
On the other hand, Karseva remained closed on 31st October and 01st November for the mourning of the martyred Karsevaks and for the last rites of their dead bodies.
On 02 November, it was announced that the Kar Sevaks would return after having Ramdarshan.
17. Bloody Holi Ayodhya had celebrated Diwali just two days ago. Who knew that Mahakaal’s wish was for Holi, that too a Holi of blood. Today the Kar Sevaks were ready to return to their homes after having darshan of Ram Lalla.
At 11 am, groups of kar sevaks headed towards Ram Janmabhoomi under the leadership of Paramhans Ramchandra Das from Digambari Akhara, Mahant Nritya Gopal Das from Maniram Cantonment,
Bajrang Dal convenor Shri Vinay Katiyar from the banks of Saryu and Ms. Uma Bharti from Shrangarhat proceeded towards Ram Janmabhoomi. Fire of insult. The jealous Chief Minister was determined to take revenge.
There was a barbaric lathicharge on the unarmed Kar Sevaks led by Vinay Katiyar and Uma Bharti. Tear gas shells were thrown from behind on the convoy coming under the leadership of Paramhans Ramchandra Das from
Digambari Akhara and before the kar sevaks could understand anything, bullets started raining without any warning. The bodies of the kar sevaks started moving with the chanting of Jai Shri Ram.
There would be moments of agony and then there would be calm. On October 30, Sharad Kothari, who hoisted saffron on the main dome, was searched from the crowd and shot.
When his younger brother Ramkumar Kothari came forward to save him, he was also shot with bullets. These were the only two sons of his parents. Both of them dedicated themselves to Ram’s work. Mother’s lap became empty.
18. Bone urn The ashes of the martyred Kar Sevaks were taken across the country. Citizens paid homage to him by emotionally remembering him at various places.
On the occasion of Maghamela on Makar Sankranti of 1991, his ashes were immersed in Prayagraj Sangam. This sacrifice of the Kar Sevaks further strengthened the resolve to build the temple.
19. Lion roar of saints The Fourth Dharmasansad was held on 2-3 April 1991 at Talkatora Stadium in Delhi. On April 04, a historic rally took place at Vote Club in Delhi in which more than twenty-five lakh Ram devotees gathered from across the country.
In this rally the saints roared that the temple will be built there. The government should decide its own role. They will have to bow before this public tide.
The rally had not even ended when information was received that Shri Mulayam Singh had resigned from the post of Chief Minister of Uttar Pradesh.
The National Front government at the Center had earlier been defeated in the trust vote on September 17. The Karsevaks had raised the slogan against government atrocities, “Dilli ki Gaddi dubo soke, Saryu mein itna pani hai”, that slogan proved to be true.
20. Evidence of temple emerging from the earth Earlier, the government itself acquired 2.77 acres of land to develop facilities for pilgrims. In June 1991,
when the leveling work started on the government land, many stones were found from the south-eastern corner, among which were the broken idol of Shiva and Parvati,
half lotus like sun, the amalak of the peak of the temple and other beautifully carved stones and idols. All these stone fragments were of archaeological importance and were self-evident evidence of the historicity of the temple.
21. Saffron hoisted again On 31 October 1991, Karsevaks once again gathered in Ayodhya. Although the committee had decided to perform only symbolic kar seva,
some enthusiastic kar sevaks once again climbed the dome and waved saffron. There was some damage to the domes but the state government got it repaired. Later a wall was built around it to protect the structure.
22. Meeting with the Prime Minister Movement leaders Swami Vamdev, Paramhans Ramchandra Das, Mahant Avaidya Nath, Yugpurush Parmanand,
Swami Chinmayanand etc. met Prime Minister Narasimha Rao and requested him to remove the obstacles in the construction of Ram temple.
23. Sarvadev ritual and foundation laying The 60 day Sarvadev ritual started from 09 July 1992. The casting of the foundation platform of the future temple also started from the foundation stone laying site right in front of the birthplace.
For this, Kar Seva went on for 15 days and the foundation laying work continued. To stop this peaceful Kar Seva, secularists created an uproar in the entire country.
There was an unprecedented uproar in the Lok Sabha due to which the proceedings of the Lok Sabha came to a standstill for a week.
Prime Minister Shri Narasimha Rao asked for three months’ time from the saints and assured them of finding a universal solution to the Ayodhya dispute within the stipulated time.
The saints accepted the request of the Prime Minister and stopped the work of casting the foundation. The foundation which was being cast was 290 feet long, 155 feet wide and 2-2 feet thick by casting three layers one above the other, totaling six feet. Was thick.
24. Paduka Puja Bharat ji lived as a forest dweller in Nandi village for 14 years and ruled Ayodhya through the Padukas of God. Shri Ram Padukas was worshiped at this place on 26 September 1992.
In the month of October, people were awakened by worshiping these Padukas in every village of the country. Ram devotees took a pledge to build the temple.
25. Second Car Service The fifth Dharmasansad was convened in New Delhi on 29-30 October 1992. Expressing anger over the government’s attitude, the saints announced to restart Kar Seva in
Ayodhya from Geeta Jayanti 06 December 1992. If no solution was found, the government failed to find a solution to the dispute within the stipulated time. As a result, Kar Seva was announced on the declared date of Geeta Jayanti.
Karsevaks had started arriving from all over the country several days ago and, keeping in mind the court’s instructions, identity cards were being given to all of them. As per the instructions of the court,
its instructions were being continuously announced through the media.
26. Judicial process The Supreme Court sought assurance from the Uttar Pradesh government regarding car service.
Chief Minister Kalyan Singh filed an affidavit and assured the court that no construction permission will be allowed on the acquired 2.77 acre land till the pending dispute is decided,
construction material and related equipment will not be allowed in the area and no symbolic activities will be allowed as part of religious activities. Karseva will be done. After this assurance,
the Supreme Court gave permission for symbolic kar seva. A judicial observer was appointed in Ayodhya who had to keep an eye on the assurances given in the affidavit during Kar Seva that the assurances given in the affidavit were not violated.
The committee was confident that the decision of the Lucknow bench of Prayag High Court regarding construction on 2.77 acres of land was against Geeta. Will come before the birth anniversary.
The hearing of this case was completed on 4th November and the decision was awaited. But still the court reserved its decision till December 11, three days before the Kar Seva. Actually,
this land was the own land of Shri Ram Janmabhoomi Trust which was acquired by the Mulayam Singh government. The Trust had requested the court to declare this acquisition illegal and hand it back the land to the Trust.
Karseva was proposed on this land. In its decision given on December 11, the court considered the claim of the Trust as justified and declared the notification of acquisition of the land illegal.
27. Geeta Jayanti (06 December 1992) Meanwhile, about four lakh Karsevaks had reached Ayodhya. The problem before the committee was how to explain to such a large number of kar sevaks present.
Nevertheless, while addressing the Karsevaks, the leaders gave instructions to ‘not lose consciousness in enthusiasm’, ‘exercise restraint’, ‘remain in discipline’,
‘not to break the decorum’, ‘follow the instructions of saints’ etc. The form of Kar Seva was limited to bringing the sand of Saryu in both the fists in a row and pouring it on the construction site.
On the cold morning of Geeta Jayanti, the Kar Sevaks took bath in Saryu and started gathering at Ramkatha Kunj at the scheduled time. The formal program started at around 10 o’clock.
Saints and leaders of the movement started addressing the kar sevaks. Meanwhile, some Karsevaks moved towards the acquired land on which Karseva was proposed.
The stage operator appealed to the kar sevaks to immediately vacate the proposed kar seva site. Besides, instructions were given to the workers engaged in the system that those Kar Sevaks who are not vacating the premises should be picked up and thrown out.
28. Patience is lost As soon as the efforts to force the kar sevaks to vacate the kar seva site started, their patience broke. Pushing aside the volunteers, a group of Karsevaks crossed the barricading and entered inside.
Seeing this, other Karsevaks also ran towards it and slogans of Jai Shri Ram started echoing in the entire environment. Some of those kar sevaks had even reached the disputed structure.
The leaders present on the stage first tried to control the situation from the stage itself, in which they did not succeed. Seeing that most of the kar sevaks moving towards the structure were South Indian,
the first to come back was Sarkaryavah (General Secretary) of the Rashtriya Swayamsevak Sangh, Shri Ho Ve Seshadri, who appealed to the kar sevaks in Kannada, Tamil, Telugu and Malayalam to come back.
Seeing no effect of this, BJP President Shri LK Advani and Ms. Uma Bharti tried this. This effort also went in vain. Seeing their efforts failing, many leaders came down from the stage and went to the structure themselves and started trying to evict the kar sevaks.
Shri Ashok Singhal and Shri Advani were also among them. Although they were successful in sending some number of kar sevaks out, a larger number of people were continuously moving towards the structure. No one was recognizing anyone in that chaos.
The situation had gone beyond control. Not only the leaders of the movement, even the security forces were not in a position to do anything.
29. Disputed structure demolished There was immense enthusiasm among the kar sevaks but they had no tools to fulfill their wish. Initially they were just beating and pushing the structure with their hands.
But soon some youth took out the barricading pipes installed for security and started attacking the structure with them. At 01.30 pm, the kar sevaks demolished one wall of the structure.
This filled them with new enthusiasm and they started attacking with more intensity. The influx of Kar Sevaks was increasing every moment. A large number of Kar Sevaks had also climbed the domes.
At 2.45 they succeeded in demolishing the first dome. This doubled his enthusiasm. Along with the dome, twenty kar sevaks who had climbed on it also fell down. The kar sevaks who were trying to bring down that dome got buried under it.
The sounds of sighs and groans were also added to the enthusiastic slogans echoing in the atmosphere. At 4.30 the second dome also collapsed. At around 4.45 suddenly a cloud of dust rose with a loud noise and covered the sky.
For a few moments it seemed as if everything had stopped. When the dust subsided, it was seen that the third dome of the structure had also come down. Not even a trace was left of the disputed structure.
The wheel of history had returned to the same place after completing its revolution after 464 years.
30. Construction of a temporary temple: Karsevaks started the work of leveling the disputed site. Now this was the real Kar Seva taking place for which the Kar Sevaks had come.
The leveling work continued throughout the night of 6 December and the entire day of 7 December. A platform was constructed using bricks,
soil and mortar on the flat land, Ramlala was installed on it and the worship started. On the morning of 8 December, on the instructions of the Central Government, the security forces reached there and took everything under their control.
The worship of the newly constructed temple of Ramlala continued regularly.
31. Role of Security Forces When the leadership of the movement was trying to oust the Kar Sevaks not only from the disputed structure but also from the place of proposed Kar Seva, two objectives were working behind it.
Firstly, they wanted to complete their program in a peaceful manner and secondly, they intended to maintain the honor of the affidavit given in the court. The entire movement till now had been conducted within the constitutional limits and they wanted to maintain it.
But the question of law and order had to be solved by the administration at that time, which did not play its role properly at the time.
According to police sources, the district administration had sought help from CRPF and Rapid Action Force from outside at around 2 pm, but they needed a magistrate level officer to give orders, which was not available in those circumstances.
At 5.30 pm, the Chief Minister of the state Accepting his responsibility, he resigned. President’s rule was imposed in the state at 8.30 pm. With this, all the powers came into the hands of the central government.
Despite this, construction work continued there. Central security forces were in Faizabad, just 15 km from the disputed site. They left Faizabad at 3.50 am on 08 December and reached the disputed site at 04.10.
But it took 38 hours for the Center to order them to reach there, which is surprising.
32. Acquisition On December 27, 1992, the Central Government decided to acquire 67 acres of land in and around the disputed area and to seek opinion from the Supreme Court on this issue.
After receiving the opinion of the Supreme Court, the said land was acquired through an ordinance issued by the President on January 07.
33. Permission for darshan: After the security forces took control of the disputed area in Ayodhya, curfew was imposed in the city on 08 December 1992. A lawyer named Harishankar Jain appealed to the High Court that God is hungry,
hence permission should be given to perform his raga, bhog and worship. On January 01, 1993, Justice Harinath Tilhari granted permission for darshan and worship. After the demolition of the Babri structure,
Vishwa Hindu Parishad, Bajrang Dal and Rashtriya Swayamsevak Sangh were banned. This ban did not hold up in court and had to be removed. After some time, activities aimed at the construction of Shri Ram temple started again,
the brief information of which is as follows.
34 .6 December 1992 Lakhs of workers of VHP and Shiv Sena and other Hindu organizations demolished the disputed structure. More than 2 thousand people were killed in communal riots across the country.
The legal dispute over the property reached the Supreme Court of India. The Supreme Court heard ownership dispute cases until October 2019.
35. Year 2002, a train carrying Hindu activists was set on fire in Godhra, in which 58 people died. More than 2 thousand people were killed in the riots that broke out in Gujarat after the Godhra incident.
36. Year 2010, Allahabad High Court, in its decision, ordered to divide the disputed site into 3 equal parts between Sunni Waqf Board, Ram Lalla Virajman and Nirmohi Akhara.
37. Year 2011, Supreme Court stayed the decision of Allahabad High Court on Ayodhya dispute.
38. Year 2017 Supreme Court called for out of court settlement. Criminal conspiracy charges reinstated against top BJP leaders.
39. 8 March 2019 Supreme Court referred the case to arbitration. The panel was asked to conclude the proceedings within 8 weeks.
40. August 2019 The mediation panel submitted its report on 1 August. On 2 August 2019, the Supreme Court said that the arbitration panel had failed to resolve the case. On 6 August 2019, daily hearing of the Ayodhya case started in the Supreme Court.
41 .16 October 2019 Ayodhya case hearing completed. The Supreme Court reserved the decision.
42.9 November 2019 A bench of five judges of the Supreme Court ruled in favor of Ram Temple. The Hindu side got 2.77 acres of disputed land. Order to provide separate 5 acres of land for the mosque. Claims of Nirmohi Akhara and Sunni Waqf Board were rejected.
43. 25 March 2020 After almost 28 years, Ram Lalla shifted from a tent to a nickel fiber temple.
44. 5 August 2020 Bhoomi pujan program of Ram temple. 175 people including PM Narendra Modi, RSS Sarsanghchalak Mohan Bhagwat, UP CM Yogi Adityanath and sages and saints were invited.
After reaching Ayodhya and having darshan at Hanumangarhi, PM Modi took part in the Bhoomi Pujan program.
45 .22 January 2022 The wait of 500 years is over. Ramlala’s idol will be consecrated in the presence of the famous and ascetic Prime Minister Narendra Modi.
Shri Ram Lalla is just a tableau, Kashi and Mathura remain.
After Shri Ram, now the sacred stream of Shri Krishna and Mahadev Ji has to be freed from the clutches of Jihadi. Now the slogans of Jai Shri Krishna and Har Har Mahadev will echo throughout India.
Jai Shri Ram
सनातन धर्म में #कट्टर शब्द का प्रयोग ही निषेध है,
हमारा धर्म हमें पेड़ के पत्ते तोड़ने तक की आज्ञा नहीं देता,
ऐसे धर्म से हमारा संबंध है