सनातन धर्म में नारी का महत्त्व
नारी
लोगो में विभिन्न भ्रांतियाँ मौजूद है हिन्दू धर्म में नारी के विषय में
क्या ये भ्रांतियाँ सच्ची है ?
क्या इनका कोई अस्तित्त्व है ?
चलिए जानते है कि ईसाईयत ,मुस्लिम और हिंदू धर्म में नारी का क्या महत्व है ?
हिंदू मुस्लिम ईसाई लोगो के धर्म ग्रंथों में क्या लिखा है नारी के बारे में ?
आजकल चल रहे Women Empowerment के नाम पे औरते सड़कों पर नंगा नाच कर रही है और हिंदू धर्म को बुराइयों से घिरा हुआ बताती है उन्हें ये अवश्य पढ़ लेना चाहिए
वेद कुरान और बाइबिल में नारी का तुलनात्मक अध्ययन
सनातन धर्म को बदनाम करने के जिहादियों-ईसाई -वामपंथी के षड़यंत्र को विफल कर आप राष्ट्र,धर्म और स्वयं के अस्तित्व एवं बहन,बेटियों के सम्मान की रक्षा कर सके
वर्तमान समय में आज भी हमारे देश में स्त्रियों का अपमान हो रहा है, विभिन्न प्रकार के धार्मिक पुस्तक बनाएं जा रहे हैं, धर्म भी विभाजित कर दिए गए हैं जिसमें स्त्रियों को कलंकित किया जा रहा है जिसका प्रभाव हमारे साधारण भाइयों, जवान युवक पर पड़ रहा है। वो उन्हें सदैव नीच दृष्टि से देखते हैं, अश्लील बातें करते हैं, स्त्रियों का विरोध तक करते हैं। ये बहुत ही निन्दनीय है कि नारी जिससे समस्त संसार है उसे ही मनुष्य नीच निगाहों से देखते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है वेद की आज्ञा को न मानकर कुरान और बाइबिल आदि के बातों को मानना जबकि प्राचीन-वैदिक काल में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। उस समय स्त्रियां विदुषी हुआ करती थीं; गार्गी, मैत्रेयी, सुलभा, वयुना, धारिणी आदि इसके उदाहरण हैं। यहां सभी पुस्तकों से नारी के अस्तित्वों एवं अधिकारों का संक्षिप्त विवरण देता हूं फिरअन्तर समझ आएगा कि किस पुस्तक अथवा ग्रन्थ ने नारी के अस्तित्व को ऊंचा बनाये रखा है?
इस लेख में हम वेद, क़ुरान और बाइबिल में नारी विषय का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।
कुरान में स्त्रियों की दशा:
कुरान भी ऐसी ही पुस्तक हुई है कि जिसने स्त्रियों के अस्तित्व को मिटा दिया है। कुरान में कुंवारा रहना मना है बिना विवाह के कोई मनुष्य रह नहीं सकता। इसमें स्त्रियों को नीचा दिखलाने के सन्देश ही दिए गए हैं। देखिए:-
व करना फी बयूतिकुन्ना। -(सूरह 33 अहज़ाब, आयत 32)
और ठहरी रहो अपने घरों में।
यह वही आयत है जिसके आधार पर बुरखा प्रथा खड़ी की गई है।
(सूरह 24 नूर,आयत 31 देखे)इससे शारीरिक, मानसिक, नैतिक व आध्यात्मिक सब प्रकार की हानियां होती हैं और हो रही हैं।
फ़मा अस्तमतअतमाबिहि मिन्हुन्ना फ़आतूहुन्ना अजूरहुन्ना फ़री ज़तुन।
और जिनसे तुम फ़ायदा उठाओ उन्हें उनका निर्धारित किया गया महर दे दो।
सन्तान हो जाने पर किसी ने तलाक दे दिया तो? फ़रमाया है:-
बल बालिदातोयुरज़िअना औलादहुन्ना हौलैने कामिलीने, लिमन अरादा अन युतिम्मरज़ाअता व अललमौलूदे लहू रिज़ कहुन्न व कि सवतहुन्ना बिल मारुफ़े।
–(सूरह 2 बकर ,आयत 233)
और माँऐ दूध पिलायें अपनी सन्तानों को पूरे दो वर्ष। और यदि वह (बाप) दूध पिलाने की अवधि पूरा कराना चाहे। और बाप पर (ज़रूरी है) उनका खिलाना, पिलाना और कपड़े-लत्तों का (प्रबन्ध) रिवाज के अनुसार माँ का रिश्ता इतना ही है औलाद से, इससे बढ़कर उनकी वह क्या लगती है?
फिर बहु विवाह की आज्ञा है। कहा है:-
फ़न्किहु मताबालकुम मिनन्निसाए मसना व सलास वरूब आफ़इन ख़िफ्तुम इल्ला तअदिलू फ़वाहिदतन ओमामलकत ईमानुक़ुम। -(सूरह 4 निसा ,आयत 3)
फिर निकाह करो जो औरतें तुम्हें अच्छी लगें। दो, तीन या चार, परन्तु यदि तुम्हें भय हो कि तुम न्याय नहीं कर सकोगे (उस दशा में) फिर एक (ही) करो जो तुम्हारे दाहिने हाथ की सम्पत्ति है। यह अधिक अच्छा है ताकि तुम सच्चे रास्ते से न उल्टा करो।
मासिक धर्म के समय अपनी बीवी से दुरी बनाये रखो और एक बार वो नहाकर स्वच्छ हो जाए फिर?
औरत तुम्हारी खेती है जिस ओर से चाहो जोतो*(सूरह 2 बकर ,आयत 222-223)
अगर तुम्हारी बीवी तुम्हारी बात ना माने तो पहले उसे समझाओ, फिर उसके साथ सोना बंद करदो यदि फिर भी ना माने तो उसे मारो पर इतना ध्यान रहे की खून ना निकले(सूरह 4 निसा, आयत 34)
उपरोक्त प्रमाण द्वारा सिद्ध होता है कि इस्लाम केवल स्त्रीयों की रक्षा के नाम पर स्त्रीयों से व्यभिचार एवं उनका शोषण करना सिखाता है अतः कुरान पढ़कर भी नारी की रक्षा नहीं हो सकेगी।
बाइबिल में स्त्रियों का अस्तित्व:-
बाइबिल में भी स्त्रियों को कलंकित कर दिया गया है। ईसाई धर्म में स्त्रियों के साथ व्यभिचार करना ही सिखाया गया है। यहां बाइबिल से भी प्रमाण देख लें:-
बहिनों के साथ सम्बन्ध:
काइन (आदम का प्रथम पुत्र) ने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया। वह गर्भवती हुई और उसने हनोक को जन्म दिया।
–उत्पति 4:27
पिता पुत्री का सम्बन्ध:–
दोनों पुत्रियों ने उस रात अपने पिता को मदिरा पिलाई और बड़ी पुत्री जाकर उसके साथ लेट गई
उन्होंने उस रात भी अपने पिता को शराब पिलाई और छोटी पुत्री जाकर उसके साथ लेट गई
-उत्पति 19:33,35,36
ईसाई मत में बाप बेटी का विवाह जायज है। बाइबिल 1 कुरैन्थियो 7 में लिखा है:-
और यदि कोई यह समझे कि मैं अपनी उस-कुंवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल चली है, और प्रयोजन भी होए, तो जैसा चाहें वैसा करें, पाप नहीं, वे ब्याहे जायें”।।37।।
In English- “Let them marry“. अर्थात् “उन बाप बेटी का विवाह हो जाए या वे विवाह कर लें”
ऐसा छपा हुआ है। हर व्यक्ति स्वयं सोच सकता है कि जिस मत में ऐसी बात जायज़ मानी जाती हो, वह कैसा मजहब हो सकता है?
उपर्युक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि बाइबल ने भी स्त्रियों को कलंकित कर रखा है।
वेदों में देवियों का महत्त्व :-
वेद ही ईश्वरीय ज्ञान है, वेद भगवान् ही हमें स्त्रियों के प्रति आदर करने का आदेश देते हैं। वेद नारी को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण, गरिमामय स्थान प्रदान करते हैं। स्त्रियों के विषय में वेद से कुछ प्रमाण देखें:-
यास्तेऽ अग्ने सूर्य्ये रुचो दिवमातन्वन्ति रश्मिभि:।
ताभिर्नोऽ अद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि।। -यजु० 13/22
भावार्थ:- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे ब्रह्माण्ड में सूर्य की दीप्ति सब वस्तुओं को प्रकाशित कर रुचियुक्त करती हैं, वैसे ही विदुषी श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियां घर के सब कार्यों का प्रकाश करती हैं। जिस कुल में स्त्री और पुरुष आपस में प्रितियुक्त हों, वहां सब विषयों में कल्याण ही होता है।
एषा ते कुलपा राजन्तामु ते परि दद्मसि।
ज्योक्पितृष्वासाता आ शीष्र्ण: समोप्यात्।। -अथर्व० 1/14/3
भावार्थ:- विवाह का प्रमुख उद्देश्य वंश का उच्छेद न होने देना ही है, अतः गृहस्थ एक अत्यन्त पवित्र आश्रम है। मस्तिष्क को ज्ञान से अलंकृत करने के पश्चात् ही एक युवती इसमें प्रवेश कर सकती है।
फिर उसी सूक्त के अगले मन्त्र में कहा है:-
असितस्य ते ब्रह्मणा कश्यपस्य गयस्य च।अन्त: कोशमिव जामयोऽपि नह्यामि ते भगम्।।4।।
भावार्थ :- पति ‘असित, कश्यप व गय’ होता है तो पत्नी उसके लिए ‘अन्त: कोश’ के समान होती है। विशेष:- कुलवधू ‘भग व वर्च’ वाली हो।
(1) वर नियमित जीवनवाला व संयमी हो।
(2) वह विवाह का मूलोद्देश्य वंश-अविच्छेद ही समझे।
(3) अवैषयिक, तात्त्विक-दृष्टिवाले, प्राणसाधक पुरुष के लिए पत्नी ‘अन्तःकोश’-सी है।
(4) इस प्रकार के घरों में ही प्रेम और मेल बना रहता है।
निम्नलिखित प्रमाणों ने स्पष्ट कर दिया कि सभी पुस्तकों में सर्वश्रेष्ठ पुस्तक वेद
ही है क्योंकि इसमें सभी के प्रति आदर करना सिखाया है। इस लेख से आप अनुमान लगा सकते हैं कि निम्न में ईश्वरीय ज्ञान क्या है? जिसमें स्त्रियों को कलंकित किया गया हो या वह जिसमें स्त्रियों को देवी माना गया हो।
आजकल के नवीन पुस्तक पढ़कर, चलचित्र देखकर, पाश्चात्य सभ्यता को अपनाकर स्त्रियां भी वेद मार्ग से भटक गयी हैं, जिसका प्रभाव उनके पीढ़ियों पर भी पड़ रहा है। यही कारण है कि उन्हीं के पुत्र उन्हें बुढापे में अकेला छोड़ देते हैं। प्राचीन समय में स्त्रियां विदुषी हुआ करती थीं एवं अपने पुत्रों को श्रेष्ठ शिक्षा दिया करती थीं:-
शुद्धोसि! बुद्धोसि! निरन्जनोसि! संसारमाया परिवर्जितोसि।। अर्थात् माता अपने पुत्र से कहती हैं- “तू शुद्ध है! तू बुद्ध है! तू निरन्जन है! तू संसार की माया से सबसे अलग है।” यही कारण है कि पहले के समय में पुत्र अपने माता की सदैव सेवा किया करते थे।
वेदों की ओर लौटो