13 अप्रैल का ऐतिहासिक दिन

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13 अप्रैल

13 अप्रैल का ऐतिहासिक दिन

इतिहास में आज का दिन

आज का दिन इतिहास में

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था। बैसाखी वैसे तो पूरे भारत का एक प्रमुख त्योहार है परंतु विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल ( हिंदू नववर्ष ) की खुशियाँ मनाते हैं।
 
इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आस-पास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है और सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
 
अमृतसर में उस दिन मेले का आयोजन था जो सैकड़ों साल से लगता चला आ रहा था जिसमें उस दिन भी हज़ारों लोग दूर-दूर से श्री हरमिंदर साहिब गुरुद्वारे में गुरु जी के दर्शन करने और बैसाखी का त्यौहार मनाने अमृतसर पहुंचे थे,
 
गुरुद्वारे से 500 मीटर की दुरी में जलियांवाला बाग को देखने के लिए बहुत सारे बच्चे , महिलाएं, बूढ़े, इकट्ठे हुए थे और बड़ी ही खुशी के साथ बैसाखी का त्यौहार मना रहे थे ।
 

जालियाँवाला बाग भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना स्थल है। इस बाग का नाम प्रसिद्ध है इसलिए क्योंकि 13 अप्रैल 1919 को यहाँ पर ब्रिटिश सरकार की फायरिंग में कई लोगों की हत्या हो गई थी।

यह घटना जालियाँवाला बाग मास्साकर (Jallianwala Bagh Massacre) के नाम से प्रसिद्ध हुई।

जालियाँवाला बाग अमृतसर, पंजाब में स्थित है और यह एक छोटा सा बाग है, जिसमें सुरक्षा के लिए चारों ओर से दीवारें बनी हुई हैं।

यहां पर समाज के लोग रोलेक्ट एक्ट के विरोध में आये थे। इस हमले में बहुत से भारतीय नागरिकों की मौत हो गई और कई लोग घायल हुए।

यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की की ओर एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसने भारतीय लोगों के विरोध की भावना को मजबूत किया।

घटना में मृत्यु ( 13 अप्रैल )

जालियाँवाला बाग मास्साकर में बहुत से भारतीय नागरिकों की मौत हुई थी, लेकिन आधिकारिक संख्या अलग-अलग स्रोतों के अनुसार अलग है।

इस घटना में कुछ अनुमानित संख्याएँ बताई गई हैं, जो विभिन्न स्रोतों द्वारा प्रस्तुत की गई हैं –

कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, जालियाँवाला बाग में लगभग 379 से लेकर 1000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, और कई सैनिक और अन्य लोग घायल हुए थे।

इसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस घटना की निर्दयता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहाँ से बचने के किए वहाँ मौजूद बच्चे ,

बूढ़े वहाँ मौजूद एक कुएँ में कूद गये। लाशों का एक भयावह मंजर बन गया। 120 शव कुएँ से बरामद हुए। 

भारत की महान शख़्सियत का इसके बारे में विचार

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने नाइटहुड की उपाधि वापस दे दी थी।

गांधी जी को इस बात का थोड़ा देरी से होश आया और 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया।

मदन मोहन मालवीय जी के अनुसार मरने वालों की संख्या 1600 से अधिक थी। स्वामी श्रद्धानन्द के अनुसार मरने वाले 1500 से अधिक थे लेकिन सच आँकड़ा छिपाया गया था।

हालांकि, यह संख्या आधिकारिक रूप से नहीं थी, और इस घटना में कितनी मृत्यु हुई इसका विवाद भी रहा है। अधिकांश संख्याएँ गणना नहीं की गई थीं, और कुछ लोगों का अनुमान केवल अंदाज़ा है।

गोलीबारी का आदेश देने वाला अंग्रेज़ी जनरल

जालियाँवाला बाग मास्साकर के समय ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के अधिकारी जनरल रेजिनल्ड डायर (General Reginald Dyer) नामक अंग्रेजी सेनानायक थे, जिसने इस हमले का आदेश दिया था।

इसने बिना किसी पूर्व सूचना या चेतावनी के बाग में सभा को बंद करने का आदेश दिया था और फिर वहाँ पर फायरिंग करवाई जिससे बहुत से लोगों की मौत हो गई थी।

इस कठोर और निर्दयी कार्यवाही के कारण, इसे ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचार के प्रतीक के रूप में देखा गया था।

इसकी कठोरता की कई विवादित चरित्रवाणियों के लिए भारतीय आजादी संग्राम की आग में तेल डालने वाली हो गई थी।

जनरल डायर को ‘ब्लडी सन्डे’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका आयोजन 13 अप्रैल 1919 को हुआ था।इसने इस हमले के लिए किसी भी प्रकार की सजा नहीं भुगती।

जालियाँवाला बाग का बदला

जब जलियाँवाला बाग हत्याकांड हो रहा था तब वीर ऊधम सिंह जी वही मौजूद थे उन्हें भी गोली लगी थी और उसी समय मन में ठान लिया था कि वो इसका बदला लेंगे।

13 मार्च 1940 में उन्होंने लंदन जाकर ब्रिटिश लेफ़्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ दाह्यर को गोली से मार दिया इसी के परिणामस्वरूप इन्हें 31 जुलाई 1940 को फाँसी पे चढ़ा दिया गया था।

13th April This day in history
Historical day of 13th April This day in history This day in history 13th April 1919 was the day of Baisakhi.
 
Baisakhi is a major festival of the whole of India but especially the farmers of Punjab and Haryana celebrate the joy of New Year (Hindu New Year) after harvesting the winter Rabi crop.
 
On this day, 13th April 1699, the tenth and last Guru Govind Singh Ji established the Khalsa Panth.
 
That is why Baisakhi is the biggest festival of Punjab and the surrounding areas and Sikhs celebrate it as a collective birthday.
 
There was a fair organized in Amritsar that day which had been going on for hundreds of years, in which thousands of people had come from far and wide to visit Guru Ji in Shri Harmandir Sahib Gurudwara and to celebrate the festival of Baisakhi.
 
Many children, women, old people had gathered to see Jallianwala Bagh at a distance of 500 meters from the Gurudwara and were celebrating the festival of Baisakhi with great joy.
 
Jallianwala Bagh is an important event site in the history of India. The name of this garden is famous because on 13 April 1919, many people were killed here in the firing of the British government.
 
This incident became famous as Jallianwala Bagh Massacre. Jallianwala Bagh is located in Amritsar, Punjab and it is a small garden, which has walls built all around for security.
 
People of the society had come here to protest against the Rowlatt Act. Many Indian citizens died in this attack and many were injured.
 
This incident was a turning point in the Indian freedom struggle and strengthened the spirit of protest of the Indian people.
 
Deaths in the incident Many Indian citizens were killed in the Jallianwala Bagh massacre, but the official number differs according to different sources.
 
Here are some estimated numbers in this incident, which have been presented by various sources – According to some reports, about 379 to more than 1000 people were killed in Jallianwala Bagh,
 
and many soldiers and others were injured. This also included women and children. The cruelty of this incident can be gauged from the fact that to escape from there,
 
the children and old people present there jumped into a well present there. A horrific scene of dead bodies was created.
 
120 bodies were recovered from the well. Thoughts of great personalities of India about it Rabindranath Tagore ji returned the title of knighthood.
 
Gandhiji realized this a little late and started the non-cooperation movement in 1920. According to Madan Mohan Malviya ji, the number of people who died was more than 1600.
 
According to Swami Shraddhanand, the number of people who died was more than 1500 but the true figure was hidden. However, this number was not official,
 
and there has been a controversy about how many people died in this incident. Most of the numbers were not counted, and some people’s estimates are only guesswork.
 
The British General who ordered the firing At the time of the Jallianwala Bagh Massacre, the British commander named General Reginald Dyer,
 
who was the officer of the Punjab province of British India, ordered this attack. He ordered to stop the gathering in the garden without any prior information or warning and then fired there,
 
which killed many people. Due to this harsh and ruthless action, it was seen as a symbol of the atrocities of the British Empire.
 
Many controversial statements of its harshness became fuel to the fire of the Indian freedom struggle. General Dyer is also known as ‘Bloody Sunday’, which was organized on 13 April 1919.
 
He did not suffer any punishment for this attack. Revenge of Jallianwala Bagh When the Jallianwala Bagh massacre was taking place,
 
Veer Udham Singh ji was present there, he was also shot and at that time he decided in his mind that he would take revenge for it.
 
On 13 March 1940, he went to London and shot British Lieutenant Governor Michael O’Dhair, as a result of which he was hanged on 31 July 1940.
 

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