20 DECEMBER
पुण्यतिथि : महाराजा छत्रसाल
पुण्यतिथि — औरंगजेब को हरा बुन्देलखण्ड में हिन्दवी साम्राज्य स्थापित करने वाले मुगलों के काल धर्मरक्षक बुन्देलकेसरी महाराजा छत्रसाल*
_मात्र 22 वर्ष की आयु में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रेरणा से मात्र 30 सैनिकों (5 घुड़सवार 25 पैदल सैनिक) वाली छोटी सी सेना से अपने स्वराज्य अभियान का शंखनाद करते हुए मुगल शासक औरंगजेब व अन्य मुगलों से निरन्तर 52 युद्ध विजयी कर बुन्देलखण्ड में अपना हिन्दवी साम्राज्य स्थापित करने वाले धर्मरक्षक, महापराक्रमी योद्धा बुन्देलकेसरी महाराजा छत्रसाल जी की पुण्यतिथि पर जानें इस महायोद्धा के गौरवशाली जीवन को—
जन्म :-
झाँसी के आसपास उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की विशाल सीमाओं में फैली बुन्देलखण्ड की वीर भूमि में 3 जून, 1649 (ज्येष्ठ शुक्ल 3, विक्रम सम्वत् 1706) को चम्पतराय और रानी सारंधा के घर में छत्रसाल का जन्म हुआ था। चम्पतराय सदा अपने क्षेत्र से मुगलों को खदेड़ने के प्रयास में लगे रहते थे। अतः छत्रसाल पर भी बचपन से इसी प्रकार के संस्कार पड़ गये।
मन्दिर का रक्षण :-
जब छत्रसाल मात्र 12 वर्ष के थे, तो वह अपने मित्रों के साथ विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा के लिए जा रहे थे। मार्ग में कुछ मुस्लिम सैनिकों ने उनसे मन्दिर का मार्ग जानना चाहा। छत्रसाल ने पूछा कि क्या आप लोग भी देवी माँ की पूजा करने जा रहे हैं? उनमें से एक क्रूरता से हँसते हुए बोला, “नहीं, हम तो मन्दिर तोड़ने जा रहे हैं।” यह सुनते ही छत्रसाल ने अपनी तलवार उसके पेट में घोंप दी। उसके साथी भी कम नहीं थे। बात की बात में सबने उन दुष्टों को यमलोक पहुँचा दिया।
शत्रुओं की कार्यशैली का अध्ययन :-
बुन्देलखण्ड के अधिकांश राजा और जागीरदार मुगलों के दरबार में हाजिरी बजाते थे। वे अपनी कन्याएँ उनके हरम में देकर स्वयं को धन्य समझते थे। उनसे किसी प्रकार की आशा करना व्यर्थ था। एकमात्र छत्रपति शिवाजी ही मुगलों से टक्कर ले रहे थे। छत्रसाल को पता लगा कि औरंगजेब के आदेश पर मिर्जा राजा जयसिंह शिवाजी को पकड़ने जा रहे हैं, तो वे जयसिंह की सेना में भर्ती हो गये और मुगल सेना की कार्यशैली का अच्छा अध्ययन किया।
छत्रपति से भेंट व सैन्य वृद्धि:
जब छत्रपति शिवाजी आगरा जेल से निकलकर वापस रायगढ़ पहुँचे, तो छत्रसाल ने उनसे भेंट की। शिवाजी के आदेश पर फिर से बुन्देलखण्ड आकर उन्होंने अनेक जागीरदारों और जनजातियों के प्रमुखों से सम्पर्क बढ़ाया और अपनी सेना में वृद्धि की। अब उन्होंने मुगलों से अनेक किले और शस्त्रास्त्र छीन लिये। यह सुनकर बड़ी संख्या में नवयुवक उनके साथ आ गये। औरंगजेब को जब यह पता लगा, तो उसने रोहिल्ला खाँ और फिर तहव्वर खाँ को भेजा; पर हर बार उन्हें पराजय ही हाथ लगी। छत्रसाल के दो भाई रतनशाह और अंगद भी वापस अपने भाई के साथ आ गये। अब छत्रसाल ने दक्षिण की ओर से जाने वाले मुगलों के खजाने को लूटना आरम्भ किया। इस धन से उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि की। एक बार छत्रसाल शिकार के लिए जंगल में घूम रहे थे, तो उनकी स्वामी प्राणनाथ से भेंट हुई। स्वामी जी के मार्गदर्शन में छत्रसाल की गतिविधियाँ और बढ़ गयीं। विजयादशमी पर स्वामी जी ने छत्रसाल का राजतिलक कर उन्हें ‘राजाधिराज’ की उपाधि दी।
मराठा सहायता :-
एक बार मुगलों की शह पर हिरदेशाह, जगतपाल और मोहम्मद खाँ बंगश ने बुन्देलखण्ड पर तीन ओर से आक्रमण कर दिया। वीर छत्रसाल की आयु उस समय 80 वर्ष की थी। उन्हें छत्रपति शिवाजी का वचन याद आया कि संकट के समय में हम तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे। इसे याद कर छत्रसाल ने मराठा सरदार बाजीराव पेशवा को सन्देश भेजा। सन्देश मिलते ही बाजीराव ने तुरन्त ही वहाँ पहुँचकर मुगल सेना को खदेड़ दिया। इस प्रकार छत्रसाल ने जीवन भर मुगलों को चैन नहीं लेने दिया।
छत्रसाल स्मरण :-
जिन महाकवि भूषण ने छत्रपति शिवाजी की स्तुति में ‘शिवा बावनी’ लिखी, उन्होंने ही ‘छत्रसाल दशक’ के आठ छन्दों में छत्रसाल की वीरता और शौर्य का वर्णन किया है। आज भी बुन्देलखण्ड के घर-घर में लोग अन्य देवी-देवताओं के साथ छत्रसाल को याद करते हैं:-
छत्रसाल महाबली, करियों भली-भली।।
छत्रसाल दशक :
कवि भूषण ने महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में ‘छत्रसाल दशक’ की रचना की थी। प्रस्तुत कविता उसी का अंश है। इन पंक्तियों में युद्धरत छत्रसाल की तलवार और बरछी के पराक्रम का वर्णन किया है।
_निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी, फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों।
_*लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी, रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों।
_लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली, कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों।
_प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि, कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल कों।
_*भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी –सी, खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के।
_बखतर पाखरन बीच धँसि जाति मीन,पैरि पार जात परवाह ज्यों जलन के।_
_रैयाराव चम्पति के छत्रसाल महाराज,भूषन सकै करि बखान को बलन के।_
पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर, तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।