आत्मबोध
दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय :
वेद में ‘परमात्मा हमारी किससे रक्षा करें?’ यह वर्णन
त्वं नो अग्ने महोभिः पाहि विश्वस्या अरातेः। उत द्विषो मर्त्यस्य*
( सामवेद – मन्त्र संख्या : ६ (6) )
मन्त्रार्थ—
हे (अग्ने) सबके नायक तेजःस्वरूप परमात्मन्! (त्वम्) जगदीश्वर आप (महोभिः) अपने तेजों से (विश्वस्याः) सब (अ-रातेः) अदान-भावना और शत्रुता से, (उत) और (मर्त्यस्य) मनुष्य के (द्विषः) द्वेष से (नः) हमारी (पाहि) रक्षा कीजिए।
इस मन्त्र की श्लेष द्वारा राजा तथा विद्वान् के पक्ष में भी अर्थ-योजना करनी चाहिए ।
व्याख्या –
अदानवृत्ति से ग्रस्त मनुष्य अपने पेट की ही पूर्ति करने वाला होकर सदा स्वार्थ ही के लिए यत्न करता है। उससे कभी सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती। दान और परोपकार की तथा मैत्री की भावना से ही पारस्परिक सहयोग द्वारा लक्ष्यपूर्ति हो सकती है। अतः हे जगदीश्वर! हे राजन्! और हे विद्वन्! आप अपने तेजों से, अपने क्षत्रियत्व के प्रतापों से और अपने विद्या-प्रतापों से सम्पूर्ण अदान-भावना तथा शत्रुता से हमारी रक्षा कीजिए और जो मनुष्य हमसे द्वेष करता है तथा द्वेषबुद्धि से हमारी प्रगति में विघ्न उत्पन्न करता है, उसके द्वेष से भी हमारी रक्षा कीजिए, जिससे सूत्र में मणियों के समान परस्पर सामञ्जस्य(समरसता/एकता) में पिरोये रहते हुए हम उन्नत होवें।