परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में जानिए भगवान परशुराम से जुड़ी संपूर्ण जानकारी
भगवान परशुराम हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण देवता हैं। वे छठे अवतार माने जाते हैं। परशुराम का अर्थ है “परशु” यानी कुल्हाड़ी और “राम” यानी रामचंद्र जी का अर्थात् वे ऐसे व्यक्ति हैं
जो कुल्हाड़ी लेकर रामचंद्र जी के नाम पर असुरों का संहार करते हैं। उन्हें अवतार अंग्रेज़ी में ‘The Warrior Saint’ कहा जाता है।
परशुराम का जन्म जमदग्नि ऋषि और रेणुका देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका परिचय उनकी शक्ति, धैर्य, और धर्म के प्रति समर्पण के लिए होता है।
भगवान परशुराम का अनेक पुराणों में उल्लेख किया गया है, जहां उन्हें धनुर्धारी, उदात्त तपस्वी, और भक्तिमान व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
उन्होंने कई युद्ध किए और असुरों को संहारा। उन्हें कारण और संघर्ष का प्रतीक माना जाता है, और उनके प्रेम और बल के प्रति आदर और सम्मान है।
महर्षि भृगु के प्रपौत्र, वैदिक ॠषि ॠचीक के पौत्र, जमदग्नि के पुत्र, महाभारतकाल के वीर योद्धाओं भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले गुरु, शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ॠषि परशुराम का जीवन संघर्षों से भरा रहा है।
परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे।
उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया।
जब इस बात का परशुराम को पता चला तो क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई।
पौराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान परशुराम ने अपने पिता के कहने से अपनी माता का वध कर दिया था
और इस बात से खुश होकर उनके पिता ने भगवान परशुराम से वर माँगने को कहाँ तब परशुराम जी ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने का वर माँगा और साथ में अपने भाइयों को भी जीवित करवाया।
भगवान परशुराम ने अपनी माता का वध क्यों किया?
पौराणो में ऐसा उल्लेख मिलता है कि परशुराम की माता धर्म पथ से विचलित हो गई थी ऐसा करते हुए परशुराम जी के पिता ने उन्हें देख लिया था
इसी बात से क्रोधित होकर उनके पिता ने पहले अपने बाक़ी पुत्रों से माता का वध करने के लिए बोला लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया
इससे क्रोधित होकर उनके पिता ने उनका वध कर दिया था लेकिन परशुराम ने अपने पिता की बात मानी और माता का वध कर दिया था इससे खुश होकर उनके पिता जमदग्नी ने उनसे वर लेने के लिए बोला।
भगवान परशुराम को प्राप्त अस्त्र शस्त्र और विद्याएँ
जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और भगवान शिव द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वे परशुराम जी कहलाये।
आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ।
तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया।
शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो
भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे।
उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” भी लिखा।
इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।” वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। ‘
उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था।
अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।
भगवान परशुराम कल्कि अवतार के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे।
रामायण काल में भगवान राम के द्वारा शिव धनुष तोड़ने पर इन्होंने भगवान राम को युद्ध की लिए ललकारा लेकिन राम जी की सच्चाई जानकर नतमस्तक हो गये।
महाभारत काल में इन्होंने अपने शिष्य भीष्म से युद्ध किया।
कर्ण और द्रोणाचार्य को भी शिक्षा दी।
मार्शल आर्ट में योगदान
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है।
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