भारत में आपातकाल (25 जून 1975) Emergency
25 जून 1975 को भारत में आपातकाल (Emergency) की घोषणा की गई थी, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद घटना है। आपातकाल की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा की गई थी, और यह 21 महीने तक चला, जो 21 मार्च 1977 को समाप्त हुआ। आपातकाल की घोषणा के पीछे कई कारण और घटनाएं थीं,
जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
आपातकाल की पृष्ठभूमि राजनीतिक अस्थिरता और विरोध
1970 के दशक की शुरुआत में भारत में आर्थिक समस्याएँ, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और खाद्य संकट जैसी चुनौतियाँ थीं। 1974-75 के दौरान विभिन्न छात्र और श्रमिक आंदोलनों के कारण देश भर में अस्थिरता और अशांति बढ़ रही थी। इनमें गुजरात और बिहार में छात्र आंदोलनों ने विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया था।
जयप्रकाश नारायण का आंदोलन
समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने भ्रष्टाचार और कांग्रेस सरकार के खिलाफ ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था। उनका आंदोलन व्यापक समर्थन प्राप्त कर रहा था, जिससे सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया और उन पर छह साल तक किसी भी निर्वाचित पद को धारण करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस निर्णय ने इंदिरा गांधी की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया और उनके खिलाफ विपक्षी दलों का आंदोलन और तेज हो गया।
आपातकाल की घोषणा
घोषणा का कारण
मार्च 1975 का यह वही समय था जब इंदिरा गांधी का विरोध करने के लिए जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में दिल्ली में साढे सात लाख लोग जुटे थे सारे हिंदुस्तान में कांग्रेस और इंदिरा गांधी के प्रति भीषण आक्रोश था इंदिरा गांधी के विरुद्ध राज नारायण ने एक चुनाव याचिका दायर की थी 12 जून 1975 को वह ऐतिहासिक दिन भी आया जब प्रयागराज उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में इंदिरा गांधी के चुनाव को अयोग्य करार देते हुए उसे रद्द कर दिया। इस निर्णय के 13वें दिन न्यायालय के निर्णय को पलटने की नियत से इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया और प्रजातंत्र का सबसे बड़ा “काला दिन” देश को देखना पड़ा।
25 जून 1975 को राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की। आधिकारिक तौर पर यह घोषणा देश में “आंतरिक अशांति” के कारण की गई थी।
प्रभाव
आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई, और सरकार के विरोधियों को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया। विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।
संवैधानिक संशोधन
इसके बाद शुरू हुआ संविधान में ऐसे संशोधनों का दौर जिन्होंने भारतीय गणतंत्र की आत्मा पर ही कुठारा घात किया।न्याय पालिका को निर्बल करने की प्रयास
आपातकाल लगाने के एक माह के अन्दर 22 जुलाई 1975 को विपक्ष को जेल में डाल कर 38 वें संविधान संशोधन के द्वारा न्यायपालिका से आपातकाल की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार छीन लिया गया और अगले दो माह में 39 वां संविधान संशोधन लाया गया। यह संशोधन इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद को बनाए रखने के लिए किया गया था। इसके तहत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित विवादों की जाँच करने का न्याय पालिका का अधिकार छीन लिया गया निश्चित ही यह संशोधन प्रयागराज उच्च न्यायालय के उस निर्णय का प्रतिक्रिया था।
42 वें संशोधन के सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक था
मौलिक अधिकारों की तुलना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता देना इस प्रावधान के कारण किसी भी व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों तक से वंचित किया जा सकता था आपातकाल के पूर्व 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए संविधान में संशोधन करने के पैमाने तय कर दिए थे परन्तु इंदिरा गांधी को न्याय पालिका की यह दखल मंजूर नहीं थी अतः 42 वें संविधान संशोधन में यह प्रावधान रखा गया कि विधायिका द्वारा किए गए संविधान-संशोधनों को किसी भी आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता को भी न्याय पालिका के क्षेत्र से बाहर रखा गया किसी विवाद की स्थिति में उनकी सदस्यता पर निर्णय लेने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को दे दिया गया और संसद का कार्यकाल भी पांच वर्ष से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया।
आपातकाल का अंत चुनाव की घोषणा
1977 की शुरुआत में इंदिरा गांधी ने अचानक चुनाव कराने की घोषणा की। यह चुनाव मार्च 1977 में हुआ। जनता पार्टी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की, और इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र और संविधान पर गहरा प्रभाव डाला। इस अवधि के दौरान हुई घटनाओं और सरकार की कठोर नीतियों की व्यापक आलोचना हुई। यह घटना भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक स्वतंत्रताओं के महत्व को और स्पष्ट किया।
सारांश
25 जून 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप की गई थी। यह घटना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद समय है, जिसने देश की राजनीतिक दिशा और संवैधानिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला।
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