आत्मबोध : सामवेद

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दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में ‘परमात्मा ने ही सृष्टि के आदि में वेदविज्ञान का प्रवचन किया था’ यह उल्लेख।

*इममू षु त्वमस्माकꣳ सनिं गायत्रं नव्याꣳसम् । अग्ने देवेषु प्र वोचः ॥*

(सामवेद – मन्त्र 28)

मन्त्रार्थ—

हे (अग्ने) अनन्तविद्यामय जगदीश्वर! (त्वम्) सब मङ्गलों को देनेवाले आप (इमम्) इस, (अस्माकम्) हम मनुष्यों के (सनिम्) बहुत बोधप्रद, (नव्यांसम्) नवीनतर (गायत्रम्) गायत्र्यादि छन्दों से युक्त चारों वेदों का (देवेषु) दिव्यगुणयुक्त विद्वान् ऋषियों के प्रति (सुप्रवोचः) सम्यक्तया सृष्टि के आदि में प्रवचन करते हो।

व्याख्या—

जगत्पिता, परम कारुणिक परमेश्वर मनुष्यों के कर्त्तव्यबोध के लिए सृष्टि के आदि में महर्षियों के हृदयों में चारों वेदों का उपदेश करता है, जिनका अध्ययन करके हम ज्ञानी बनते हैं। उसकी इस महती कृपा का कौन अभिनन्दन नहीं करेगा?

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