चंद्र शेखर आज़ाद
चंद्र शेखर आज़ाद
27 फ़रवरी
इतिहास में आज का दिन
अलीराजपुर रियासत में चंद्र शेखर आज़ाद के नाम से मशहूर चंद्रशेखर तिवारी का जन्म 23 जुलाई, 1906 को भाभरा की बस्ती में हुआ था।
चंद्रशेखर 15 वर्ष की आयु में दिसंबर, 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने पर उन्होंने अपना नाम ‘आज़ाद’ (द फ्री) तथा अपने पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ (स्वतंत्रता) और अपना निवास स्थान ‘जेल’ बताया था तथा इस घटना के उपरांत उन्हें चंद्रशेखर ‘आज़ाद’ के नाम से जाना जाने लगा।
गाँधीजी द्वारा वर्ष 1922 में असहयोग आंदोलन के निलंबन के बाद आज़ाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Republican Association- HRA) में शामिल हो गए।
HRA भारत का एक क्रांतिकारी संगठन था, जिसकी स्थापना वर्ष 1924 में पूर्वी बंगाल में शचींद्र नाथ सान्याल, नरेंद्र मोहन सेन और प्रतुल गांगुली ने अनुशीलन समिति की शाखा के रूप में की थी तथा भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी इत्यादि भी इसके सदस्य बने।
क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए अधिकांश धन संग्रह सरकारी संपत्ति की लूट के माध्यम से किया जाता था। उसी के अनुरूप वर्ष 1925 में HRA द्वारा काकोरी (लखनऊ) के पास काकोरी ट्रेन डकैती (काकोरी ट्रेन एक्शन) की गई थी।
चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और मनमथनाथ गुप्ता ने इस योजना को अंजाम दिया था।
कालांतर में HRA ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) के रूप में पुनर्गठित किया गया था।
इसकी स्थापना 1928 में नई दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला में चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक उल्ला खान, भगत सिंह, सुखदेव थापर और जोगेश चंद्र चटर्जी ने की थी।
HSRA ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए वर्ष 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश पुलिसकर्मी जे.पी. सॉन्डर्स की हत्या की योजना बनाई।
आज़ाद ने 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब आज़ाद पार्क के रूप में जाना जाता है) में एक अन्य क्रांतिकारी के साथ बैठक की। पार्क में पहुँचते ही पुलिस ने उन्हें घेर लिया तथा इसके बाद हुई गोलाबारी के दौरान दो पुलिस अधिकारी घायल हो गए और कहा जाता है कि चंद्र शेखर आज़ाद ने अपने हथियार से आखिरी गोली खुद के सिर में मार ली थी।बताया जाता है कि आज़ाद जी जवाहरलाल नेहरू से मिलकर आए थे और पार्क के बारे में सिर्फ़ नेहरू को खबर थी