महान क्रांतिकारी – मास्टर सूर्य सेन दा
इतिहास में आज का दिन
महान क्रांतिकारी
मास्टर सूर्य सेन दा
“मौत मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनंत काल की ओर उड़ानें भर रहा है… ऐसे सुखद, ऐसे गहन, ऐसे गंभीर क्षण में, मैं तुम्हारा पीछे क्या छोड़ूँ? बस एक ही चीज़ है, वो है मेरा सपना, एक सुनहरा सपना- आज़ाद भारत का सपना…”
मास्टर सूर्य सेन दा का जन्म 22 मार्च, 1894 को चटगाँव के नोआपाड़ा में, रामनिरंजन सेन नामक एक शिक्षक के यहाँ हुआ था। चटगाँव (वर्तमान बांग्लादेश में) औपनिवेशिक काल में अविभाजित बंगाल का एक हिस्सा था।
अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए, सूर्य सेन मुर्शिदाबाद के बहरामपुर कॉलेज में गए। वर्तमान में यह संस्थान मुर्शिदाबाद के कासिम बाज़ार के ज़मींदार राजा कृष्णनाथ के नाम पर, कृष्णनाथ कॉलेज के रूप में प्रसिद्ध है।
वर्ष 1916 में राष्ट्रवाद की भावना से उत्साहित एवं कॉलेज में अपने शिक्षकों से प्रेरित होकर सेन ‘अनुशीलन समिति’ में शामिल हो गए।
‘अनुशीलन समिति’ बीसवीं सदी की शुरुआत में बना युवाओं का एक ऐसा संगठन था जिसका एकमात्र लक्ष्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालना था।
सेन असहयोग आंदोलन (1920-1922) में भी सक्रिय रूप से शामिल थे तथा 1920 के दशक के अंत में उन्हें ब्रिटिश-विरोधी गतिविधियों के कारण गिरफ़्तार कर लिया गया।
जेल से रिहा होने के बाद सूर्य सेन ने ‘द इंडियन रिवोल्यूशनरी आर्मी’ (भारतीय क्रांतिकारी सेना) का नेतृत्व किया।
आईआरए का मुख्य उद्देश्य अंग्रेज़ों के खिलाफ़ एक संगठित संघर्ष का नेतृत्व करना और उनकी सत्ता को चुनौती देना था। आईआरए की सबसे उल्लेखनीय कार्रवाइयों में से एक वर्ष 1930 की चटगाँव शस्त्रागार छापेमारी थी।
चटगाँव में एक शिक्षक के रूप में कार्यरत, सूर्य सेन ने छापेमारी के लिए वहाँ के युवकों को लामबंद और प्रशिक्षित करना शुरू किया।
18 अप्रैल, 1930 को सूर्य सेन, गणेश घोष, प्रीतिलता वाडेदार और अन्य व्यक्तियों के नेतृत्व में समूहों में विभाजित साठ से अधिक छात्रों ने चटगाँव के औपनिवेशिक प्रशासन और उसके पूरे तंत्र पर एक सुनियोजित हमले की शुरुआत की।
उनका उद्देश्य चटगाँव में सरकारी संचार प्रणाली को बाधित करना, पुलिस और सहायक बलों के शस्त्रागार पर छापा मारना और हथियार जुटाना था।
अंग्रेज़ों के खिलाफ़ एक सशस्त्र संघर्ष शुरू करने के लिए इन ज़ब्त किए गए हथियारों को क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के बीच वितरित किया जाना था।
जहाँ वे टेलीग्राफ़ और रेलवे लाइनों को बाधित करने और शस्त्रागार पर छापा मारने में सफल रहे, वहीं गोला-बारूद खोजने में उन्हे विफलता का सामना भी करना पड़ा।
उन्होंने चटगाँव को स्वतंत्र घोषित किया तथा वहाँ एक अस्थायी सरकार बनाने का दावा किया और युवाओं से उनके साथ जुड़ने का अनुरोध किया।
● अचानक हुए इस हमले के कारण, ब्रिटिश अधिकारी इस घटनाक्रम से हिल गए और कुछ समय के लिए पीछे भी हटे, परंतु कुछ ही समय में वे और अधिक सशक्त होकर वापस आए तथा कार्यकर्ताओं का बेरहमी से दमन किया।
● सूर्य सेन और उनके अधिकांश सहयोगी जलालाबाद की पहाड़ियों में छिप गए। वहाँ के गाँवों में सेन को लोगों का भारी समर्थन मिला।
● 16 फरवरी, 1933 को पकड़े जाने से पहले सूर्य सेन लगभग तीन साल तक अंग्रेज़ों से बचने में कामयाब रहे।
● 12 जनवरी, 1934 को सूर्य सेन तथा उनके सहयोगी तारकेश्वर दस्तीदार को फाँसी दे दी गई।