सुहासिनी गांगुली पुण्यतिथि

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suhasini ganguli

इतिहास में आज 

महान क्रांतिकारी वीरांगना 

सुहासिनी गांगुली

पुण्यतिथि 

⬧ भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फ़रवरी, 1909 में खुलना, बंगाल में हुआ था।

⬧ नाम के अनुरूप मुस्कुराती हुई लड़की, सुहासिनी अपने मधुर व्यवहार के कारण सभी की प्रिय थी। उन्होंने ढाका के ईडन स्कूल से मैट्रिकुलेशन और आईए की परीक्षा पास की और एक शिक्षिका के रूप में डेफ एंड डंब स्कूल, कलकत्ता में शामिल हुईं।

⬧ अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने कलकत्ता में एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में नौकरी करना शुरू किया, जहाँ पर वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आई।

⬧ उन दिनों बंगाल में ‘छात्री संघा’ नाम का एक महिला क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था, जिसकी कमान कमला दास गुप्ता के हाथों में थी। इसी संगठन से प्रीति लता वाडेकर और बीना दास जैसी वीरांगनाएँ जुड़ी हुई थी।

⬧ खुलना के क्रांतिकारी रसिक लाल दास और क्रांतिकारी हेमंत तरफदार के संपर्क में आने से सुहासिनी गांगुली क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ प्रेरित हुईं तथा युगांतर पार्टी से जुड़ गईं।

⬧ वर्ष 1930 के ‘चटगाँव शस्त्रागार कांड’ के उपरांत ‘छात्री संघा’ के साथ-साथ अन्य क्रांतिकारी साथियों समेत सुहासिनी गांगुली पर भी निगरानी बढ़ गई। इसके उपरांत वे चंद्रनगर आ गईं एवं क्रांतिकारी शशिधर आचार्य की छद्म पत्नी के तौर पर रहने लगीं।

⬧ चंद्रनगर में रहते हुए सुहासिनी गांगुली ने क्रांतिकारियों को मदद करने में वही किरदार निभाया जैसा दुर्गा भाभी ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु समेत अन्य क्रांतिकारियों की मदद करने के लिए निभाया था। 

⬧ वर्ष 1930 में एक दिन पुलिस के साथ हुई आमने-सामने की मुठभेड़ में जीवन घोषाल शहीद हो गए तथा शशिधर आचार्य और सुहासिनी को गिरफ्तार करके, उन्हें हिजली डिटेंशन कैम्प में रखा गया। कालांतर में  यही हिजली डिटेंशन कैम्प खड़गपुर आईआईटी का कैम्पस बना।

⬧ वर्ष 1938 में रिहा होने के उपरांत उन्होंने कम्यूनिस्ट पार्टी को ज्वॉइन किया। 

⬧ हालाँकि वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा बहिष्कार किया गया, फिर भी उन्होंने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए क्रांतिकारियों की लगातार मदद की।

⬧ प्रसिद्ध क्रांतिकारी हेमंत तरफदार की सहायता के कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें पुनः वर्ष 1945 में रिहा किया गया।

⬧ अन्य तात्कालिक स्वतंत्रता सेनानियों के विपरीत उन्होंने राजनीति का त्याग करते हुए, आज़ादी के बाद अपना सारा जीवन सामाजिक, आध्यात्मिक कार्यों हेतु समर्पित कर दिया।

⬧ मार्च, 1965 में वे एक सड़क दुर्घटना की शिकार हो गईं एवं इलाज के दौरान चिकित्सीय लापरवाही से बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण 23 मार्च, 1965 को हो इनकी मृत्यु गई।

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