TAKSHAK : Immortal Sacrifice of a Hindu warrior
तक्षक एक अमर बलिदानी की वीरगाथा
जिहाद “का जवाब “जिहाद” से देने वाला पहला हिंदू योद्धा तक्षक
मोहम्मद बिन क़ासिम के साथ युद्ध में उनके पिता का देहांत
मुहम्मद बिन कासिम ने सन 712 में भारत पर आक्रमण किया। वह अत्यंत क्रूर और अत्याचारी था। उसने अपने आक्रमण में एक भी युवा को जीवित नहीं छोड़ा।
कासिम के इस नरसंहार को 8 वर्ष का बालक तक्षक चुपचाप देख रहा था। वही इस कथा का मुख्य पात्र है।
तक्षक के पिता सिन्धु नरेश राजा दाहिर के सैनिक थे।कासिम की सेना के साथ लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए थे।
युद्ध के बाद की दर्दनाक तस्वीरें
राजा दाहिर के मरने के बाद लूट मार करते हुए अरबी सेना तक्षक के गांव में पहुंची, तो गांव में हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से बाहर खींच-खींच कर सरे-आम इज्जत लूटी जाने लगी। भय के कारण तक्षक के घर में सब चिल्ला उठे। तक्षक की दो बहनें डर से कांपने लगीं।
तक्षक की मां सब परिस्थिति भांप चुकी थी। उसने कुछ पल अपने तीनों बच्चों की तरफ देखा। उन्हें गले लगा लियाऔर रो पड़ी।
अगले ही क्षण उन क्षत्राणी ने तलवार से दोनों बेटियों का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसकी मां ने तक्षक की ओर देखा और तलवार अपनी छाती में उतार ली।
यह सब घटना आठ वर्ष का अबोध बालक “तक्षक” देख रहा था। वह अबोध बालक अपने घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर खेतों की तरफ भागा और समय के साथ बड़ा होता गया।
नागभट्ट से मुलाक़ात
तक्षक भटकता हुआ कन्नौज के राजा “नागभट्ट” के पास पहुँचा। उस समय वह 25 वर्ष का हो चुका था। वह नागभट्ट की सेना में भर्ती हो गया।
अपनी बुद्धि बल के कारण वह कुछ ही समय में राजा का अंगरक्षक बन गया। तक्षक के चेहरे पर कभी न खुशी न दुःख दिखता था। उसकी आंखें हमेशा क्रोध से लाल रहतीं थीं। उसके पराक्रम के किस्से सेना में सुनाए जाते थे। तक्षक इतना बहादुर था कि तलवार के एक वार से हाथी का सिर धड़ से अलग कर देता था।
सिन्धु पर शासन कर रही अरब सेना कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुकी थी लेकिन हमेशा नागभट्ट की बहादुर सेना उन्हें युद्ध में हरा देती थी।और वे भाग जाते थे। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते हुए राजा नागभट्ट की सेना इन भागे हुए जेहादियों का पीछा नहीं करती थी।
इसी कारण वे पुनः सक्षम होकर बार बार कन्नौज पर आक्रमण करते रहते थे। एक बार फिर अरब के खलीफा के आदेश से सिन्धु की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण करने आयी
यह सूचना पता चली तो कन्नौज के राजा नागभट्ट ने अपने सेनापतियों की बैठक बुलाई। सबअपने अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। इतने में महाराजा का अंग रक्षक तक्षक खड़ा हुआ। उसने कहा महाराज हमें दुश्मन को उसी की भाषा में उत्तर देना होगा।
एक पल नागभट् ने तक्षक की ओर देखा, फिर कहा कि अपनी बात खुल कर कहो तक्षक क्या कहना चाहते हो।
तक्षक ने महाराजा नागभट्ट से कहा कि अरब सैनिक महा बरबर, क्रूर, अत्याचारी, जेहादी मानसिकता के लोग हैं। उनके साथ सनातन नियमों के अनुसार युद्ध करना अपनी प्रजा के साथ अन्याय होगा।उन्हें उन्हीं की भाषा में उत्तर देना होगा।महाराजा ने कहा किन्तु हम धर्म और मर्यादा को कैसे छोड़ सकते हैं “तक्षक”।तक्षक ने कहा कि मर्यादा और धर्म का पालन उनके साथ किया जाता है जो मर्यादा और धर्म का मर्म समझें। इन राक्षसों का धर्म हत्या और बलात्कार है। इनके साथ वैसा ही व्यवहार करके युद्ध जीता जा सकता है । राजा का मात्र एक ही धर्म होता है – प्रजा की रक्षा। राजन: आप देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें। मुहम्मद बिन कासिम ने युद्ध जीता, दाहिर को पराजित किया और उसके पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया।
यदि हम पराजित हुए तो हमारी स्त्रियों और बच्चों के साथ वे वैसा ही व्यवहार करेंगे।महाराज आप जानते ही हैं कि भारतीय नारियों को किस तरह खुले बाजार में राजा दाहिर के हारने के बाद बेचा गया। उनका एक वस्तु की तरह भोग किया गया। महाराजा ने देखा कि तक्षक की बात से सभा में उपस्थित सारे सेनापति सहमत हैं
महाराजा नागभट्ट गुप्त कक्ष की ओर तक्षक के साथ बढ़े और गुप्तचरों के साथ बैठक की।तक्षक के नेतृत्व में युद्ध लड़ने का फैसला हुआ।अगले ही दिन कन्नौज की सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चुका था। आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा। आधी रात बीत चुकी थी। अरब की सेना अपने शिविर में सो रही थी। अचानक ही तक्षक के नेतृत्व में एक चौथाई सेना अरब के सैनिकों पर टूट पड़ी। जब तक अरब सैनिक संभलते तब तक मूली गाजर की तरह हजारों अरबी सैनिकों को तक्षक की सेना मार चुकी थी। किसी हिंदू शासक से रात्री युद्ध की आशा अरब सैनिकों को न थी। सुबह से पहले ही अरबी सैनिकों की एक चौथाई सेना मारी जा चुकी थी। बाकी सेना भाग खड़ी हुई।जिस रास्ते से अरब की सेना भागी थी उधर राजा नागभट्ट अपनी बाकी सेना के साथ खड़े थे। सारे अरबी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। एक भी सैनिक नहीं बचा। युद्ध समाप्त होने के बाद राजा नागभट्ट वीर तक्षक को ढूंढने लगे।
वीर तक्षक वीरगति को प्राप्त हो चुका था। उसने अकेले हजारों जेहादियों को मौत की नींद सुला दिया था। राजा नागभट ने वीर तक्षक की भव्य प्रतिमा बनवायी। कन्नौज में आज भी उस बहादुर तक्षक की प्रतिमा विद्यमान है।
यह युद्ध सन् 733 में हुआ था। उसके बाद लगभग 300 वर्ष तक अरब से दूसरे किसी आक्रमणकारी को आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ
यह इतिहास की घटना है जो सत्य पर आधारित है
TAKSHAK
The Heroic Story of an Immortal Sacrifice Takshak
The first Hindu warrior to answer “Jihad” with “Jihad” His father died in the war with Mohammad Bin Qasim. Muhammad bin Qasim attacked India in 712. He was extremely cruel and tyrannical. He did not leave even a single youth alive in his attack. 8 year old boy Takshak was silently watching this massacre of Qasim. He is the main character of this story. Takshak’s father was a soldier of Sindhu king Raja Dahir. He was martyred while fighting with Qasim’s army. Painful pictures after the war After the death of King Dahir, when the Arab army reached the village of Takshak while looting, there was an uproar in the village. Women started being dragged out of their homes and their honor was publicly looted. Everyone in Takshak’s house screamed out of fear. Takshak’s two sisters started trembling with fear. Takshak’s mother had sensed the entire situation. He looked at his three children for a moment. She hugged him and cried. The very next moment that Kshatrani beheaded both the daughters with her sword. His mother looked towards Takshak and took the sword into her chest. An innocent eight year old boy named Takshak was watching all this incident. That innocent child ran out of the back door of his house towards the fields and grew bigger with time. meeting with nagbhatta Takshak, wandering, reached the king of Kannauj, Nagabhatta. At that time he was 25 years old. He joined Nagabhatta’s army. Due to his intellectual strength, he became the king’s bodyguard in no time. Neither happiness nor sadness was ever visible on Takshak’s face. His eyes were always red with anger. Stories of his bravery were told in the army. Takshak was so brave that he could decapitate the elephant with one blow of his sword. The Arab army ruling Sindhu had attacked Kannauj many times but always the brave army of Nagabhatta defeated them in the battle and they used to run away. Following the eternal rules of war, King Nagabhatta’s army did not pursue these fleeing jihadis. For this reason, he became capable again and kept attacking Kannauj again and again. Once again, on the orders of the Caliph of Arabia, the huge army of Sindhu came to attack Kannauj. When King Nagabhatta of Kannauj came to know of this information, he called a meeting of his generals. Everyone was expressing their views. Meanwhile, the Maharaja’s body guard Takshak stood up. He said, Maharaj, we will have to answer the enemy in his own language. Nagabhatta looked at Takshak for a moment, then said, “Tell me openly, Takshak, what do you want to say.” Takshak told Maharaja Nagbhatta that Arab soldiers are very barbaric, cruel, tyrannical, people with jihadi mentality. Fighting with them according to the eternal rules would be injustice to our people. They would have to answer in their own language. Maharaja said but how can we leave religion and decorum, Takshak. Takshak said that following decorum and religion. This is done with those who understand the essence of dignity and religion. The religion of these demons is murder and rape. The war can be won by treating them the same way. A king has only one duty – to protect his subjects. Rajan: You remember the battle of Deval and Multan. Muhammad bin Qasim won the war, defeated Dahir and after that he tortured his people. If we are defeated, they will treat our women and children in the same way. Maharaj, you know how Indian women were sold in the open market after the defeat of Raja Dahir. He was treated like a commodity. The Maharaja saw that all the generals present in the meeting agreed with Takshak’s words. Maharaja Nagabhatta proceeded towards the secret chamber with Takshak and held a meeting with the spies. It was decided to fight the war under the leadership of Takshak. The very next day both the armies had camped on the border of Kannauj. It was expected that the next morning would witness a fierce battle. Half the night had passed. The Arab army was sleeping in its camp. Suddenly a quarter of the army under the leadership of Takshak attacked the Arab soldiers. By the time the Arab soldiers regained control, Takshak’s army had killed thousands of Arab soldiers like radish and carrot. The Arab soldiers had no hope of a night fight with any Hindu ruler. Even before morning, a quarter of the Arab soldiers had been killed. The rest of the army ran away. King Nagabhatta was standing with the rest of his army on the same path through which the Arab army had fled. All the Arab soldiers were killed. Not a single soldier was left. After the war ended, King Nagabhatta started searching for the brave Takshak. Brave Takshak had attained martyrdom. He had single-handedly put thousands of Jihadis to death. King Nagabhata built a grand statue of brave Takshak. The statue of that brave Takshak still exists in Kannauj. This war took place in the year 733. After that, for about 300 years no other invader from Arabia had the courage to attack. This is an event in history that is based on truth