6 दिसंबर 1992 – बाबरी मस्जिद मुग़लिया धब्बे का विध्वंस
Path-Finder December 5, 2023 0गौरवान्वित करने वाला दिन ( बाबरी मस्जिद )
जब मुग़लिया धब्बे को मिटाया था
6 दिसंबर 1992 को सोलहवीं सदी में बनाई गई बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की एक भीड़ ने ढहा दिया. इस घटना के बाद देश भर में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा, कई राज्यों में हिंसा हुई और हज़ारों लोग इस हिंसा की बलि चढ़ गए।
सालों पहले आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी विध्वंस के विवादित ढांचे को गिराया गया था।
छह दिसंबर अयोध्या के इतिहास में एक ऐसी तारीख के रूप में में दर्ज हो गया है, जिसका अलग-अलग समुदायों पर अलग-अलग प्रभाव है।
इसकी वजह से लंबे समय तक अयोध्या को लेकर त रहा, मगर नौ नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैस ऐतिहासिक विवाद का पटाक्षेप कर दिया। तो चलिए जानते हैं कि आखिर 6 दिसंबर को अयोध्या की वह सुबह कैसी थी और उस दिन क्या-क्या हुआ
जब सपना सच कर दिया
आखिर 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में वह सब हो गया, जिसकी सबको आशंका थी। लेकिन कोई ऐसा होते देखना नहीं चाहता था। फिर भी ऐसा हुआ।
एक अतीत, एक इतिहास जिसे उस दिन का वर्तमान ‘इतिहास’ होते देख रहा था। उस घटना की कसक आज भी ताजा है। चारों तरफ धूल ही धूल थीयहां आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह मंजर किसी आंधी से भी नहीं था।
अपार जनसैलाब से यही भ्रम हो रहा था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि भीड़ हजारों में थी या लाखों मेंहां, एक बात जो उस पूरी भीड़ में थी, वह था-जोश और जुनूनइसमें रत्तीभर भी कमी नहीं थी।
क्या था पूरा महोल ? ( बाबरी मस्जिद )
ऐसा लग रहा था-जैसे वहां मौजूद हर व्यक्ति अपने आप में एक नेता था’जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो… जैसे गगनभेदी नारों के आगे आकाश की ऊंचाई भी कम पड़ती दिख रही थीयह सारा वाकया अयोध्या का था।
वही अयोध्या, जिसे राम की जन्म स्थली कहा जाता है। वही राम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम’ भी कहा जाता है।
वही श्री राम, जिन कभी किसी के साथ अन्याय नहीं हुआ। इसलिए ‘राम किसी भी शासक के लिए कसौटी माना जाता है।
यहां बात इन्हीं राम और उनकी अयोध्या की हो रही है। हां, तो नारे लग रहे थे इतिहास को बदलने वाली यह घटना अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को घटने जा रही थी।
इसका अंदाजा शायद बहुतों को नहीं रहा होगा। लेकिन कुछ बड़ा होने जा रहा है, ऐसा वहां के माहौल को देखकर समझा जा सकता था।
तभी वहां मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित के अंदर घुस गईदेखते ही देखते ढांचे के गुंबदों पर उनका कब्जा हो गयाहाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे।
जिसके हाथ में जो था, वही उस ढांचे को ध्वस्त करने का औजार बन गया। और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया।
कोर्ट ,सरकार सब जानते हुए भी ऐतिहासिक पल का हिस्सा बनते हुए देख रहे थे
यह सब होने में करीब दो घंटे लगे या कुछ ज्यादा केंद्र की नरसिंह राव सरकार, राज्य की कल्याण सिंह सरकार और सुप्रीम कोर्ट देखते रह गए।
यह सब तब हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर पाबंदी लगाई हुई थी। एक ऑब्जर्वर भी नियुक्त किया हुआ था
दिलचस्प बात यह थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि आदेशों का पूरा पालन होगा।
लेकिन भरोसे का वादा खरा नहा उतरा इस सारे घटनाक्रम की जांच के लिए बाद में ‘लिब्रहान आयोग’ का गठन किया गया।
इस दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए इसके बाद वे विवादित स्थल की ओर रवाना हुए।
आडवाणी जी और मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ उस जगह पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी।
वहां उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया। इसके बाद आडवाणी और जोशी ‘राम कथा कुंज’ की ओर चल दिए। यह उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था।
यहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था। यह जगह विवादित ढांचे के सामने थी। उल्लेखनीय बात है कि उस समय तेजी से उभरती भाजपा की युवा नेता उमा भारती भी वहां थीं।
वे सिर के बाल कटवाकर आई थीं, ताकि सुरक्षाबलों को चकमा दे सकें ऐसा बताया जाता है उस दिन का महोल ढांचा गिराए जाने के बाद बने रामलला के अस्थायी मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए सुरक्षाबलों की लंबी कतारें लगी ह थीं।
अपने उच्च अधिकारियों की चेतावनी का भी जवान कोई असर नहीं हो रहा था। यही नहीं, उस अस्थायी मंदिर के आसपास तैनात जवानों ने अपने जूते उतारे हुए थेजवानों की श्रद्धा से भरी आंखें और नंगे पांव वहां के हालात बयां कर रहे थे।
इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया। खबरें तो ऐसी भी थीं कि कल्याण सिंह बर्खास्तगी की सिफारिश से करीब तीन घंटे पहले ही इस्तीफा दे चुके थे…और इस तरह 6 दिसंबर को इस देश ने अपना स्वाभिमान वापस पाया था ।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने दावा किया था कि कुछ नहीं होगा। राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी भी आश्वस्त थे कि कुछ नहीं होने वाला।
यानी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल तीनों स्तरों पर सन्नाटा था। यह तो तब था जब विश्व हिंदू परिषद दिसंबर को बाबरी मस्जिद के पास कार सेवा का ऐलान चुकी थी।
देश भर से कारसेवक अयोध्या कूच कर रहे थे। तमाम इन्टेलिजेंस रिपोर्ट कुछ और कह रही थीं। तब केंद्र में गृह सचिव थे माधव गोडबोले। हालांकि केंद्र सरकार ने उनसे एक आकस्मिक प्लान तैयार करने को कहा था।
उन्होंने एक बड़ा प्लान तैयार भी किया था। लेकिन उस पर ठीक से कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरसिंह राव का तो मानना था कि ये रिपोर्ट इतनी गुप्त थी कि प्रधानमंत्री को ही देखने को नहीं मिली।
इस सिलसिले में गोडबोले का कहना है कि उन्होंने पूरा प्लान प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर कैबिनेट सचिव तक को सौंपा था।
यह प्लान 04 नवंबर को ही केबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के सचिव, प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार, गृह मंत्री और प्रधानमंत्री को सौंप दिया गया था।
उस प्लान में कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने तक की बात की जा रही थी । उस प्लान में कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने तक बात थी उसकी वजह यह थी
कि कारसेवा की तारीख घ हो गई थीदेश में अलग माहौल बनने लगा थाराज्य की पुलिस के बूते से बाहर बात थी।
उस हालात से निपटने के लिए भारी तादाद में अर्धसुरक्षा बलों की जरूरत थी प्लान के मुताबिक 207 कंपनियों की तैनाती का सुझाव था। बाबरी मस्जिद पर पूरा सुरक्षा घेरा बना लेने की बात थी।
सुरक्षा बलों की तो तैनाती देर सवेर होने लगी पर राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश नहीं हुई4 दिसंबर को बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने भी प्रधानमंत्री को फोन किया था।
आशंका जताई थी कि मस्जिद को नुक्सान पहुंचाया जा सकता है। सो, उसे बचाने के लिए गंभीर कोशिशें होनी चाहिए। कल्याण सिंह भांप रहे थे
कि केंद्र कुछ कर सकता है उन्होंने धमकी दे डाली थी कि अगर केंद्र सरकार ढांचे को अपने कब्जे में लेने की कोशिश करती है या राष्ट्रपति शासन लगाती है तो हम उसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकते।
कुछ दिन पहले ही राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी ने 01 दिसंबर को राष्ट्रपति को पत्र लिखा उसमें उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों के पालन का भरोसा दिलाया है। फिलहाल वहां हालात सामान्य हैं और शांति व्यवस्था बनी हुई है।