इस्लामी संक्रमण : हिन्दुओं का जन संहार

0
इस्लामी संक्रमण

इस्लामी संक्रमण : हिन्दुओं का जन संहार

जहां भी हुई इस्लामी संक्रमण  की बहुलता हुई वहां मानव प्रजाति को या तो प्राण त्यागना पड़ते हैं या मजहब अपनाना पड़ता है, यह इस संक्रमण का खरा सत्य है जिसे अनदेखा न करें हिंदुओं अन्यथा भविष्य में यह गांव-गांव गली गली होकर रहेगा क्योंकि संक्रमण प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है 

जिन हिन्दुओं को इस जन संहार के संदर्भ मे जानकारी नहीं कृपया अवश्य पढ़ें

जनवरी 1990 को कश्मीर के एक स्थानीय अखबार ‘आफ़ताब’ ने हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति प्रकाशित की थी. इसमें सभी हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने के लिये कहा गया था. इसके साथ ही एक और स्थानीय अखबार ‘अल-सफा’ में भी यही विज्ञप्ति प्रकाशित हुई थी. विदित हो कि हिज्बुल मुजाहिदीन का गठन जमात-ए-इस्लामी द्वारा जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी व जिहादी गतिविधियों को संचालित करने के मद्देनजर 1989 में हुआ था

जानकारी के लिए बता दें कि आतंकियों के फरमान से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने के बाद कश्मीर घाटी में हिंदुओं का अफरा-तफरी मच गई थी. सड़कों पर बंदूकधारी आतंकी और कट्टरपंथी क़त्ल-ए-आम करते और भारत-विरोधी नारे लगाते खुलेआम घूमते रहे. बता दें कि अमन और ख़ूबसूरती की मिसाल कश्मीर घाटी जल उठी थी. जगह-जगह धमाके हो रहे थे, मस्जिदों से अज़ान की जगह भड़काऊ भाषण गूंज रहे थे. दीवारें पोस्टरों से भर गयीं, सभी कश्मीरी हिन्दुओं को आदेश था कि वह इस्लाम का कड़ाई से पालन करें. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की सरकार इस भयावह स्थिति को नियन्त्रित करने में विफल रही थी

वहीं, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों को चिह्नित कर उस पर नोटिस चस्पा कर दिया गया. नोटिसों में लिखा था कि वे या तो 24 घंटे के भीतर कश्मीर छोड़ दें या फिर मरने के लिये तैयार रहें. आतंकियों ने कश्मीरी हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए मानवता की सारी हदें पार कर दीं. यहां तक कि अंग-विच्छेदन जैसे हृदयविदारक तरीके भी अपनाए गए. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह थी कि किसी को मारने के बाद ये आतंकी जश्न मनाते थे. कई शवों का समुचित दाह-संस्कार भी नहीं करने दिया गया

इस्लामी संक्रमण

बता दें कि 19 जनवरी की रात निराशा और अवसाद से जूझते लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का साहस टूट गया. उन्होंने अपनी जान बचाने के लिये अपने घर-बार तथा खेती-बाड़ी को छोड़ अपने जन्मस्थान से पलायन का निर्णय लिया. इस प्रकार करीब 3,50,000 कश्मीरी हिन्दू विस्थापित हो गई थी

 वहीं, इससे पहले जेकेएलएफ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता पंडित टीकालाल टपलू की श्रीनगर में 14 सितंबर 1989 को दिन-दहाड़े हत्या कर दी थी. श्रीनगर के न्यायाधीश एन.के. गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसके बाद लगभग 320 कश्मीरी हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गई. जिसमें महिला, पुरूष और बच्चे शामिल थे

विस्थापन के पांच साल बाद तक कश्मीरी हिंदुओं में से करीब 5500 लोग विभिन्न शिविरों तथा अन्य स्थानों पर काल का ग्रास बन गए. इनमें से करीब एक हजार से ज्यादा की मृत्यु ‘सनस्ट्रोक’ की वजह से हुई; क्योंकि कश्मीर की सर्द जलवायु के अभ्यस्त ये लोग देश में अन्य स्थानों पर पड़ने वाली भीषण गर्मी सहन नहीं कर सके. वहीं, कई अन्य दुर्घटनाओं तथा हृदयाघात का शिकार हुए थे

जानकारी के लिए बता दें कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई थी. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी थी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *