HISTORY OF GIRI-SUMAIL WAR

गिरि सुमेल युद्ध का इतिहास WAR

जब दस हजार राजपूतों ने शेरशाह सूरी को लोहे के चने चबवा दिए थे

 8000 राजपूत (रणबंका राठौड़) vs शेरशाह सूरी 80000 की सेन

 शेरशाह सूरी ने कहा कि “मुट्टी भर बाजरे (मारवाड़) की खातिर हिन्दुस्थान की सल्लनत खो बैठता” 

 1 घंटे के अंदर राजपूतों ने हरा दिया राजपूत मारवाड़ बचाने में सफल रहे हैं | जैता और कुंपा की वीरता की कहानी 

मारवाड़ की संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा के लिए कई युद्ध हुए, लेकिन उनमें गिरी सुमेल युद्ध आज भी शूरवीरों के अदम्य साहस के लिए जाना जाता है।

मुहणोत नैणसी ने बताया है कि शेरशाह सूरी ने इस युद्ध को जीतने के लिए छल कपट का सहारा लिया था। इसके लिए शेरशाह सूरी ने वीरमदेव को माध्यम बनाया।फरीद, जिसे शेर शाह सूरी के नाम से भी जाना जाता है, एक शक्तिशाली अफगान सरदार था।

गिरी-सुमेल युद्ध के कारण

वीरमदेव मेड़ता के शासक थे तथा वीरमदेव पहले मालदेव राठौड़ के ही सामंत हुआ करते थे परंतु मालदेव राठौड़ और वीरमदेव के मध्य दरियाजोश नाम के हाथी को लेकर विवाद होने की वजह से मालदेव राठौड़ ने वीरमदेव से मेड़ता और अजमेर का क्षेत्र छीन लिया था।

मालदेव कि वीरमदेव के साथ अनबन का फायदा शेरशाह ने उठाया। इस वजह से वीरमदेव सहायता के लिए शेरशाह सूरी से मिल गए थे।

 इसके आगे मुहणोत नैणसी कहते हैं कि शेरशाह सूरी के कहने पर वीरमदेव ने जैता और कुंपा को दो अलग अलग पत्रो के साथ 20-20 हजार रुपए की रकम पहुंचवायी।

वीरमदेव ने जैता को 20 हजार की रकम देकर उनसे तलवारे मंगवाई और कुंपा को 20 हजार देकर उनसे कंबल मंगवाए। 

इसके बाद शेरशाह ने अपने कुछ गुप्तचरो और पत्रों के माध्यम से यह बात प्रसारित करवा दी कि जैता और कुंपा को शेरशाह ने अपनी ओर मिला लिया है।

शक होने पर मालदेव राठौड़ ने जब जैता और कुंपा के कैंप की छानबीन करवाई तो वहां उन्हें 20 हजार की रकम मिली। इसके बाद मालदेव राठौड़ के मन में यह आशंका आ गई कि मेरे सेनानायक शेरशाह सूरी से मिल गए हैं। 

इस शंका से मालदेव राठौड़ ने इस युद्ध को लड़ने का मन त्याग दिया और युद्ध से पहले ही आधी सेना लेकर युद्ध भूमि से पलायन कर गए। गिरी सुमेल से मालदेव राठौड़ जोधपुर पहुंचे और वहां की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का काम शुरू कर दिया।

गिरी-सुमेल युद्ध में शेरशाह के पास 80 हजार सैनिकों की सेना थी और 40 तोपे थी तो दूसरी तरफ गिरी में डेरा डाले बैठे मालदेव के पास महज 15 हजार ही सैनिक थे उसमें से भी

 मालदेव आधे सैनिक जैता और कुंपा पर संदेह होने के कारण अपने साथ जोधपुर वापस ले गए थे। इस प्रकार जैता और कुंपा के साथ मात्र 7 से 8 हजार ही राजपूत योद्धा थे।

4 जनवरी 1544 ई. को मारवाड़ के शासक मालदेव ने युद्ध क्षेत्र छोड़ने का ऐलान कर दिया और सेना को वापस मारवाड़ लौटने का फरमान सुनाया गया। 

जब मालदेव ने जैता और कुंपा के कैंप की तलाशी ली थी उसके बाद जैता और कुंपा को यह पता चल गया था कि मालदेव राठौड़ को उन पर संदेह है।

इस बात से जैता और कुंपा को गहरा आघात पहुंचा अतः अपने स्वाभिमान, अपनी देशभक्ति, राज्य के प्रति अपने समर्पण और मातृभूमि की रक्षा के लिए जैता और कुंपा ने युद्ध क्षेत्र नहीं छोड़ने का ऐलान करते हुए युद्ध का शंखनाद कर दिया।

जैता व कुंपा कौन थे?

राव जैता और कुंपा मारवाड़ प्रांत में आसोप ठिकाने के सरदार थे। कुंपा रिश्ते में जैता का काका लगते थे। दोनों मालदेव की सेना में सेनापति थे।

 इन्होंने अजमेर के शासक विरमदेव को हराकर अजमेर, मेड़ता और डीडवाना के इलाके पर मारवाड़ का पंचरंगी झंडा लहराया था।

5 जनवरी 1544 की सुबह के समय सुमेर की धरती पर भीषण युद्ध हुआ शेरशाह सूरी को यकीन था कि उसका तोपखाना और 80 हजार सैनिक राजपूताना के 8 हजार सैनिकों को देखते ही देखते कुचल कर रख देंगे। 

युद्ध भूमि में अफगान तोपों का मुकाबला राजपूतों की तलवारों से था। राजपूताना के वीर तूफान बन कर शेरशाह की सेना को वैसे ही समाप्त कर रहे थे जैसे कोई जलजला बड़े जंगल को जलाकर राख कर देता है।

जैता और कुंपा की सेना ने शेरशाह की सेना में ऐसी तबाही मचाई कि एक वक्त ऐसा भी आया जब शेरशाह खुद अपने घोड़े की जीन कसकर युद्ध भूमि से भागने को तैयार हो गया था। 

इसी बीच शेरशाह सूरी का एक अन्य सेनापति जलाल खान अपनी सहायक सेना के साथ गिरी सुमेल युद्ध भूमि में पहुंच गया। इस प्रकार मुगलों की शक्ति और बढ़ गई।

इतनी अत्यधिक सेना होने के बाद भी शेरशाह को इस युद्ध में जीतने की बहुत कम आशा थी। इसी बीच उसके सेनापति खबास खान ने खबर दी कि जैता और कुंपा मारे गए हैं 

और उसकी सेना ने भयंकर नुकसान झेलकर आखिरकार जंग जीत ली है तब कहीं जाकर शेरशाह सूरी ने राहत की सांस ली।

गिरी सुमेल युद्ध समाप्ति पर शेर शाह ने कहा कि गिरी सुमेल के युद्ध को जीतने में शेरशाह सुरी को पसीने आ गए थे। 

युद्ध समाप्ति पर शेर शाह ने कहा कि ”बोल्यो सूरी बैन यूं, गिरी घाट घमसाण, मुठी खातर बाजरी, खो देतो हिंदवाण। यानी आज ‘एक मुट्‌ठी भर बाजरे के लिए मैं पूरी हिन्दुस्तान की बादशाहत को खो देता’।

वैसे य़ह भी भ्रम ही है कि पूरे हिन्दुस्थान पर शासन था

इतिहास के पन्नों में इसका तात्पर्य है कि मारवाड़ की भूमि पर बारिश में बाजरे की फसल ही पैदा होती है और इस भूमि की खातिर युद्ध में यदि सूरी हार जाता तो वह दिल्ली की सल्तनत भी खाे बैठता।

युद्ध का परिणाम

अगर मालदेव राठौड़ ने अपने सेनानायको जैता और कुंपा पर जरा सा भी विश्वास किया होता तो शेरशाह सूरी को बहुत ही आसानी से हराया जा सकता था और भारत का प्रतिनिधित्व भी मालदेव राठौड़ के द्वारा किया जा सकता था ।

 राजपूत मारवाड़ बचाने में सफल रहे हैं | इस प्रकार वीर सेना नायक जैता और कुंपा ने अदभुत वीरता दिखाकर वीरगति को प्राप्त किया।

 जय श्री राम

HISTORY OF GIRI-SUMAIL WAR

When ten thousand Rajputs made Shershah Suri chew iron gram Sen of 8000 Rajput (Ranbanka Rathore) vs Shershah Suri 80000 Sher Shah Suri said that 

“For the sake of a handful of millet (Marwar) I would have lost the kingdom of Hindustan.” 

 Rajputs defeated within 1 hour. Rajputs have been successful in saving Marwar. Story of bravery of Jaita and Kumpa 

 There were many wars to protect the culture and motherland of Marwar, but among them, the Giri Sumail war is still known for the indomitable courage of the knights. 

Muhanot Nainasi has told that Shershah Suri had resorted to deceit to win this war. For this, Sher Shah Suri made Veeramdev the medium. Farid, also known as Sher Shah Suri, was a powerful Afghan chieftain. 

 Due to Giri-Sumail war 

 Veeramdev was the ruler of Merta and earlier Veeramdev used to be a feudatory of Maldev Rathod, but due to the dispute between Maldev Rathod and Veeramdev regarding the elephant named Dariyajosh, 

Maldev Rathod snatched the area of Merta and Ajmer from Veeramdev. Shershah took advantage of Maldev’s rift with Veeramdev. Because of this, Veeramdev had approached Shershah Suri for help. 

Further, Muhannot Nainasi says that on the instructions of Shershah Suri, Veeramdev sent an amount of Rs 20-20 thousand along with two different letters to Jaita and Kumpa. ‘

Veeramdev ordered swords from Jaita by paying an amount of 20 thousand rupees and Kumpa ordered blankets from him by paying 20 thousand rupees. 

After this, Sher Shah spread the word through some of his spies and letters that Jaita and Kumpa had been brought to his side by Sher Shah. 

 When Maldev Rathod got suspicious, he got Jaita and Kumpa’s camp investigated and he found an amount of Rs 20 thousand there. 

After this, Maldev Rathod feared that his commander had met Shershah Suri. Due to this doubt, Maldev Rathod gave up his desire to fight this war and even before the war,

 he fled from the battlefield with half his army. Maldev Rathod reached Jodhpur from Giri Sumail and started the work of strengthening the security system there.

 In the Giri-Sumel war, Shershah had an army of 80 thousand soldiers and 40 cannons, while on the other hand, Maldev, who was camping in Giri, had only 15 thousand soldiers, 

out of which Maldev lost half of his soldiers due to suspicion on Jaita and Kumpa. Took them back to Jodhpur. 

Thus, there were only 7 to 8 thousand Rajput warriors along with Jaita and Kumpa. On January 4, 1544, the ruler of Marwar, Maldev, 

announced to leave the battlefield and the army was ordered to return to Marwar. After Maldev searched Jaita and Kumpa’s camp, Jaita and Kumpa came to know that Maldev Rathod was suspicious of them.

 Jaita and Kumpa were deeply hurt by this, hence in order to show their self-respect, patriotism, dedication towards the state and to protect the motherland, 

Jaita and Kumpa declared that they would not leave the battlefield and sounded the trumpet of war.  

Who were Jaita and Kumpa? 

 Rao Jaita and Kumpa were the chieftains of Asop Thikana in Marwar province. Kumpa seemed to be Jaita’s uncle by relationship. Both were generals in Maldev’s army.

 He defeated the ruler of Ajmer, Viramdev, and hoisted the five-coloured flag of Marwar in the areas of Ajmer, Merta and Didwana.

 On the morning of 5 January 1544, a fierce battle took place on the land of Sumer. Sher Shah Suri was sure that his artillery and 80 thousand soldiers would crush the 8 thousand soldiers of Rajputana in no time.

 On the battlefield, Afghan cannons competed with the swords of Rajputs. The warriors of Rajputana were destroying Sher Shah’s army like a storm, just like a flood burns a big forest to ashes. 

The army of Jaita and Kumpa caused such havoc in Sher Shah’s army that there came a time when Sher Shah himself was ready to run away from the battlefield by tightening the saddle of his horse. 

Meanwhile, Jalal Khan, another commander of Shershah Suri, reached the Giri Sumail battlefield with his supporting army. In this way the power of the Mughals increased further. 

Despite having such a huge army, Sher Shah had little hope of winning this war. Meanwhile, 

his commander Khabas Khan informed that Jaita and Kumpa had been killed and his army had finally won the battle after suffering terrible losses, then Sher Shah Suri heaved a sigh of relief. 

At the end of Giri Sumail battle, Sher Shah said that Sher Shah Suri had to sweat to win the battle of Giri Sumail. 

At the end of the war, Sher Shah said, “Soli ban yun, giri ghat ghamsaan, muthi khatar bajri, kho deto Hindwan.” That means today ‘I would have lost the empire of the whole of India for a handful of millet’. 

 By the way, this is also an illusion that there was rule over the entire Hindustan. In the pages of history, this means that only millet crop is grown 

in the rains on the land of Marwar and if Suri had lost in the war for this land, he would have lost the Sultanate of Delhi also. 

Result  of war 

 If Maldev Rathore had even a little bit of faith in his generals Jaita and Kumpa, Shershah Suri could have been defeated very easily and India could also have been represented by Maldev Rathod. 

Rajputs were successful in saving Marwar. In this way, the brave army leaders Jaita and Kumpa displayed amazing bravery and attained martyrdom. Jai Shri Ram


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