आत्मबोध
आत्मबोध क्या है ?
आत्मबोध कब होता है ?
दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा से योग–क्षेम की प्राप्ति वा आपत्तियों को दूर करने की प्रार्थना
शं नो देवीरभिष्टये शं नो भवन्तु पीतये ।
शं योरभि स्रवन्तु नः ॥
(सामवेद मन्त्र ३३)
मन्त्रार्थ—
(देवीः) भौतिक अग्नि की दिव्य ज्वालाओं के समान परमात्माग्नि की दिव्य शक्तियाँ (अभिष्टये) अभीष्ट की प्राप्ति के अर्थ (नः) हमारे लिए (शम्) कल्याणकारिणी हों, (पीतये) प्राप्त के रक्षार्थ (नः) हमारे लिए (शम्) कल्याणकारिणी (भवन्तु) हों। (नः) हमारे (शं योः) आगत कष्टों के शमनार्थ तथा अनागत कष्टों को दूर रखने के लिए (अभिस्रवन्तु) चारों ओर प्रवाहित होती रहें।
व्याख्या—
अभिष्टि और पीति शब्दों से क्रमशः योग और क्षेम का ग्रहण होता है। अप्राप्त की प्राप्ति को अभिष्टि या योग कहते हैं और प्राप्त की रक्षा को पीति या क्षेम। परमेश्वर की दिव्य शक्तियाँ हमें योग-क्षेम प्रदान करें। साथ ही जिन आपदाओं से ग्रस्त होकर हम पीड़ित होते हैं और जिन अनागत आपदाओं के भय से संत्रस्त होते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि वे हमें धर-दबोचें, वे सब आपत्तियाँ परमेश्वर की दिव्य शक्तियों के प्रभाव से और हमारे पुरुषार्थ से दूर हो जाएँ।