आत्मबोध

दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय :

 वेदानुसार सर्वरक्षक परमात्मा को आत्मसमर्पण करने वाले भक्त को शत्रु, छल से भी वश में नहीं कर पाते।

न तस्य मायया च न रिपुरीशीत मर्त्यः। यो अग्नये ददाश हव्यदातये॥

(सामवेद – मन्त्र संख्या : 104)

मन्त्रार्थ—

(मायया च न) छल से भी (तस्य) उस परमात्मोपासक को (मर्त्यः) मानव (रिपुः) शत्रु (न ईशीत) वश में नहीं कर सकता, (यः) जो उपासक (हव्यदातये) देय पराक्रम, विजय आदि को देनेवाले (अग्नये) परमेश्वर के लिए (ददाश) आत्मसमर्पण रूप हवि को देता है।

व्याख्या –

तरह-तरह के विघ्न-बाधा और संकटों से घिरे हुए इस जगत् में अनेक मानव शत्रु विद्वेषरूप विष से लिप्त होकर सज्जनों को ठगने, लूटने, जलाने व मारने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु जो लोग परमात्मा को आत्मसमर्पण करके उससे शत्रु-पराजय के लिए बल की याचना करते हैं, उन्हें वह पुरुषार्थ में नियुक्त करके विजय पाने में ऐसा समर्थ कर देता है कि बलवान् और बड़ी संख्यावाले शत्रु, माया से भी उन्हें वश में नहीं कर पाते।

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