August 17 Memory – Chhatrapati Shivaji
इतिहास में आज का दिन
आज का दिन इतिहास में
17 अगस्त/इतिहास-स्मृति
मिर्जा राजा जयसिंह के आग्रह पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने आगरा में औरंगजेब से मिलने का निश्चय कर लिया। उनकी योजना थी कि औरंगजेब का वध उसके दरबार में ही कर दें, जिससे सारे देश में फैला मुस्लिम आतंक मिट जाये। अतः अपने पुत्र सम्भाजी और 350 विश्वस्त सैनिकों के साथ वे आगरा चल दिये। पर औरंगजेब तो जन्मजात धूर्त था। उसने दरबार में छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान किया और पिता-पुत्र दोनों को पकड़कर जेल में डाल दिया। अब वह इन दोनों को यहीं समाप्त करने की योजना बनाने लगा। छत्रपति शिवाजी महाराज समझ गये कि अधिक दिन तक यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है। आगरा तक के मार्ग में उनके विश्वस्त लोग तथा समर्थ स्वामी रामदास द्वारा स्थापित अखाड़े विद्यमान थे। इसी आधार पर उन्होंने योजना बनायी।
कुछ ही दिन में यह सूचना फैल गयी कि छत्रपति शिवाजी महाराज बहुत बीमार हैं। उन्हें कोई ऐसा रोग हुआ है कि दिन-प्रतिदिन वजन कम हो रहा है। उनके साथ आये हुए वैद्य ही नहीं, आगरा नगर के वैद्य भी निराश हो गये हैं। औरंगजेब यह जानकर बहुत खुश हुआ। उसे लगा कि यह काँटा तो स्वयं ही निकला जा रहा है; पर उधर तो कुछ और तैयारियाँ हो रही थीं।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने खबर भिजवायी कि वे अन्त समय में कुछ दान-पुण्य करना चाहते हैं। औरंगजेब को भला क्या आपत्ति हो सकती थी ? हर दिन मिठाइयों से भरे 20-30 टोकरे शिवाजी के कमरे तक आते। छत्रपति शिवाजी उन्हें हाथ से स्पर्श कर देते। जाते समय जेल के द्वार पर एक-एक टोकरे की तलाशी होती और फिर उन्हें गरीबों में बँटवा दिया जाता।
कई दिन ऐसे ही बीत गये। 17 अगस्त, 1666 फरार होने की तिथि निश्चित की गयी थी। दो दिन पूर्व ही व्यवस्था के लिए कुछ खास साथी बाहर चले गये। वह दिन आया। आज दो टोकरों में छत्रपति शिवाजी महाराज और सम्भाजी बैठे। छत्रपति शिवाजी की हीरे की अँगूठी पहनकर हिरोजी फर्जन्द चादर ओढ़कर बिस्तर पर लेट गया। नाटक में कमी न रह जाये, इसलिए छत्रपति शिवाजी महाराज का अति विश्वस्त सेवक मदारी मेहतर उनके पाँव दबाने लगा। कहारों ने टोकरे उठाये और द्वार पर पहुँच गये।
इतने दिन से यह सब चलने के कारण पहरेदार लापरवाह हो गये थे। उन्होंने एक-दो टोकरों में झाँककर देखा, फिर सबको जाने दिया। मिठाई वाली टोकरियाँ गरीब बस्तियों में पहुँचा दी गयीं; पर शेष दोनों नगर के बाहर। वहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज के साथी घोड़े लेकर तैयार थे। रात में ही सब सुरक्षित मथुरा पहुँच गये।
काफी समय बीतने पर बिस्तर पर लम्बाई में तकिये लगाकर उस पर चादर ढक दी गयी। अब हिरोजी और मदारी भी दवा लाने बाहर निकल गये। रात भर जबरदस्त पहरा चलता रहा। सुबह जब यह भेद खुला, तो सबके होश उड़ गये। चारों ओर घुड़सवार दौड़ाये गये, पर अब तो छत्रपति निकाल चुके थे।
छत्रपति शिवाजी ने सम्भाजी को मथुरा में ही कृष्णाजी त्रिमल के पास छोड़ दिया और स्वयं साधु वेष में पुणे की ओर चल दिये। मार्ग में अनेक बार वे संकट में फँसे, पर कहीं धनबल और कहीं बुद्धिबल से वे बच निकले। 20 नवम्बर को एक साधु ने जीजा माता के चरणों में जब माथा टेका, तो माता की आँखें भर आयीं। वे छत्रपति शिवाजी महाराज ही थे।
कुछ समय बाद सम्भाजी को भी सकुशल बुलवा लिया गया।
August 17 / History-Memory
On the request of Mirza Raja Jaisingh, Chhatrapati Shivaji Maharaj decided to meet Aurangzeb in Agra. His plan was to kill Aurangzeb in his court itself, so that the Muslim terror spread across the country could be eradicated. So he left for Agra with his son Sambhaji and 350 trusted soldiers. But Aurangzeb was a born cunning. He insulted Chhatrapati Shivaji Maharaj in the court and caught both father and son and put them in jail. Now he started planning to end both of them here. Chhatrapati Shivaji Maharaj understood that staying here for a long time is not free from danger. On the way to Agra, there were his trusted people and akhadas established by Samarth Swami Ramdas. On this basis, he made a plan. Within a few days the information spread that Chhatrapati Shivaji Maharaj was very ill. He has got such a disease that he is losing weight day by day. Not only the doctors who had come with him, but also the doctors of Agra city were disappointed. Aurangzeb was very happy to know this. He felt that this thorn was coming out on its own; But on the other side some other preparations were being done. Chhatrapati Shivaji Maharaj sent the news that he wants to do some charity in his last days. What objection could Aurangzeb have? Every day 20-30 crates full of sweets used to reach Shivaji’s room. Chhatrapati Shivaji would have touched him with his hand. While leaving, every crate would be searched at the gate of the jail and then they would be distributed among the poor. Many days passed like this. August 17, 1666 was fixed as the date of absconding. Two days back, some special friends went out for arrangements. That day has come. Today Chhatrapati Shivaji Maharaj and Sambhaji sat in two baskets. Wearing the diamond ring of Chhatrapati Shivaji, Hiroji Farjand lay down on the bed covered with a sheet. Madari Mehtar, the most trusted servant of Chhatrapati Shivaji Maharaj, started pressing his feet so that there was no shortage in the play. The Kahars picked up the crates and reached the door. Due to all this going on for so many days, the guards had become careless. He peeped into one or two baskets, then let them all go. Baskets containing sweets were delivered to slums; But the remaining two are outside the city. There the companions of Chhatrapati Shivaji Maharaj were ready with horses. Everyone reached Mathura safely in the night itself. After a long time passed, a sheet was covered on the bed by placing pillows in its length. Now Hiroji and Madari also went out to bring medicine. Heavy vigil continued throughout the night. When this secret came to light in the morning, everyone was shocked. The horsemen were made to run around, but now Chhatrapati had been taken out. Chhatrapati Shivaji left Sambhaji with Krishnaji Trimal in Mathura and himself went towards Pune in the guise of a monk. Many times he got into trouble on the way, but somewhere he escaped with money power and somewhere with intelligence. On November 20, when a monk bowed down at the feet of his mother-in-law, the mother’s eyes were filled with tears. He was Chhatrapati Shivaji Maharaj only. After some time Sambhaji was also called safely.