*बसन्त पंचमी & बलिदान दिवस

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VEER BAALAK

बसन्त पंचमी

बलिदान दिवस— मात्र 14 वर्ष की आयु में इस्लाम कुबूल जान बचाने के स्थान पर स्वधर्म हेतु बलिदान देने वाले धर्मरक्षक बालक वीर हकीकत राय*

पंजाब के सियालकोट(वर्तमान पाकिस्तान) में सन् 1719 में जन्में वीर हकीकत राय वीर हकीकत राय अपने पिता भागमल के इकलौते पुत्र थे, श्री भाग मल व्यापारी थे पर उनकी इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिखकर बड़ा अधिकारी बने इसलिए उन्होंने हकीकत राय को एक मदरसे में फारसी सीखने भेजा। क्षेत्र में मुस्लिमों का शासन था, वहाँ के सहपाठी नफरती मुसलमान बच्चे, हिन्‍दू बालकों तथा हिन्‍दू देवी देवताओं को भद्दे–भद्दे अपशब्‍द कहते रहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद में पराजित कर देता।

एक दिन मदरसे से लौटते समय छात्र अनवर और रसीद ने कबड्डी खेलने का आमंत्रण दिया। हकीकत राय ने खेलने के प्रति अपनी अनिच्छा प्रकट की पर जब वे वे दोनों बार-बार आग्रह करने लगे तो हकीकत राय ने कहा– “भाई, माता भवानी की सौगंध आज मेरा खेलने का बिल्कुल भी मन नहीं है”। इस पर अनवर ने कहा- “अबे भवानी मां के बच्चे एक पत्थर के टुकड़े को मां कहते हुए तुझे शर्म आनी चाहिए, मैं तुम्हारी देवी को सड़क पर फेंक दूंगा जिससे रास्ता चलते लोग लातों से तुम्हारी मां भवानी की पूजा कर करेंगे”। 

माता भवानी के प्रति इन अपशब्दों को सुनकर हकीकत राय के स्वाभिमान को चोट पहुंची। तिलमिलाकर उसने कहा- “यदि यही बात मैं तुम्हारी पूज्य फातिमा बीवी के लिए कह दूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?”

अनवर ने क्रोध में भरकर कहा- “हम तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे”। 

मुस्लिम छात्रों ने हकीकत से मार पीट कर दी, बात बढ़ गई। पास पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए, मौलवी को बुलाया गया, मौलवी के आने पर उन्होंने मजहबी अंदाज में अल–तक्किया करते हुए उल्टा हकीकत की ही शिकायत कर दी। इन छोटे-छोटे जिहादियों ने मौलवी के यह कहकर कान भर दिए कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह सुनकर मौलवी भड़क उठा और बिना वास्तविकता जांचे मौलवी ने मुस्लिम बच्चों का ही पक्ष लेते हुए हकीकत राय से क्षमा मांगने के लिए कहा। इस पर हकीकत राय ने कहा- “मैंने कोई गुनाह नहीं किया तो मैं क्षमा क्यों मांगू?”

इस पर उन मुस्लिम लड़कों ने हकीकत राय को बांध लिया और काजी के पास ले गए पास ले गए। घटना का पूरा विवरण सुनकर काजी ने हकीकत राय से पूछा हकीकत राय से पूछा- “क्या तुमने रसूलजादी फातिमा बीवी को गाली दी?” 

हकीकत राय ने साफ-साफ सारा विवरण बताते हुए कहा कि उसने गाली नहीं दी। उस पर काजी भड़क गया।

 *बालक हकीकत के परिजनों द्वारा बार बार सही बात बताने के बाद भी मजहब के अंधे काजी ने एक न सुनी और शरिया के अनुसार दो निर्णय सुनाये एक था एक था सजा-ए-मौत या दूसरा था इस्लाम स्वीकार कर मुसलमान बन जान बचाना। माता पिता व सगे सम्‍बन्धियों ने अल्पायु हकीकत को प्राण बचाने के लिए मुसलमान बन जाने को कहा मगर धर्मवीर बालक अपने निश्‍चय पर अडिग रहा और बंसत पंचमी २० जनवरी सन 1734 को जल्‍लादों ने 14 वर्ष के निरीह बालक का सर कलम कर दिया।*

 वीर हकीकत राय अपने धर्म और अपने स्वाभिमान के लिए बलिदानी हो गया और जाते जाते हिन्दुओं को अपना सन्देश दे गया वीर हकीकत कि समाधि उनके बलिदान स्थल पर बनाई गई जिस पर भारत विभाजन से पूर्व तक हर वर्ष उनकी स्मृति में मेला लगता रहा।

*1947 के बाद यह भाग पाकिस्तान में चला गया परन्तु उसकी स्मृति को अमर कर उससे हिन्दू जाति को सन्देश देने के लिए डा. गोकुल चाँद नारंग ने उनका स्मारक यहाँ पर बनाने का आग्रह अपनी कविता के माध्यम से इस प्रकार से किया हैं—*

*हकीकत को फिर ले गए कत्लगाह में हजारों इकठ्ठे हुए लोग राह में*

*चले साथ उसके सभी कत्लगाह को हुयी सख्त तकलीफ शाही सिपाह को*

*किया कत्लगाह पर सिपाहियों ने डेरा हुआ सबकी आँखों के आगे अँधेरा*

*जो जल्लाद ने तेग अपनी उठाई हकीकत ने खुद अपनी गर्दन झुकाई*

*फिर एक वार जालिम ने ऐसा लगाया हकीकत के सर को जुदा कर गिराया*

*उठा शोर इस कदर आहो फुंगा का, के सदमे से फटा पर्दा आसमां का*

*मची सख्त लाहौर में फिर दुहाई, हकीकत की जय हिन्दुओं ने बुलाई*

*बड़े प्रेम और श्रद्धा से उसको उठाया, बड़ी शान से दाह उसका कराया*

*तो श्रद्दा से उसकी समाधी बनायी, वहां हर वर्ष उसकी बरसी मनाई*

*वहां मेला हर साल लगता रहा है, दिया उस समाधि में जलता रहा है*

*मगर मुल्क तकसीम जब से हुआ है, वहां पर बुरा हाल तबसे हुआ है*

*वहां राज यवनों का फिर आ गया है, अँधेरा नए सर से फिर छा गया है*

*अगर हिन्दुओं में है कुछ जान बाकी, बलिदानियों बुजुर्गों की पहचान बाकी*

*बलिदान हकीकत की मत भूल जाएँ, श्रद्धा से फूल उस पर अब भी चढ़ाएं*

*कोई यादगार उसकी यहाँ पर बनायें, वहां मेला हर साल फिर से लगायें*

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