Bipin Chandra Pal

इतिहास में आज का दिन

7 नवंबर

बिपिन चंद्र पाल  ( Bipin Chandra Pal )

जन्म तिथि 7 नवंबर, 1858 भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में ‘क्रान्तिकारी विचारों के जनक’ के रूप में आता है, जो अंग्रेज़ों की चूलें हिला देने वाली ‘लाल’ ‘बाल’ ‘पाल’ तिकड़ी का एक हिस्सा थे।

जन्म –

बंगाल में हबीबगंज जिले के पोइल गाँव (वर्तमान में बांग्लादेश) में 7 नवम्बर 1858 को जन्मे विपिन चन्द्र पाल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। 

वह शिक्षक और पत्रकार होने के साथ-साथ एक कुशल वक्ता और लेखक भी थे। इतिहासकार वी. सी. साहू के अनुसार विपिन चन्द्र कांग्रेस के क्रान्तिकारी देशभक्तों लाला लाजपत राय,

 बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल (लाल बाल पाल) की तिकड़ी का हिस्सा थे, जिन्होंने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में कठोर आंदोलन चलाया था।

जीवन परिचय –

‘वंदे मातरम्’ पत्रिका के संस्थापक रहे पाल एक बड़े समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने परिवार के विरोध के यद्यपि एक विधवा से शादी की। 

बाल गंगाधर तिलक की गिरफ़्तारी और 1907 में ब्रितानिया शाशन द्वारा चलाए गए दमन के समय पाल इंग्लैंण्ड गए। 

वह वहाँ क्रान्तिकारी विधार धारा वाले ‘इंडिया हाउस’ से जुड़ गए और ‘स्वराज पत्रिका’ की शुरुआत की। 

मदन लाल ढींगरा के द्वारा 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दिये जाने के कारण उनकी इस पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया और लंदन में उन्हें अत्यंत मानसिक तनाव से ग्रशित रहना पड़ा। 

इस घटना के बाद वह उग्र विचारधारा से अलग हो गए और स्वतंत्र देशों के संघ की परिकल्पना पेश की। 

पाल ने कई मौको पर महात्मा गांधी की आलोचना भी की। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पाल ने अध्यक्षीय भाषण में गांधीजी की आलोचना करते हुए कहा था- *”आप जादू चाहते हैं,

 लेकिन मैं तर्क में विश्वास करता हूँ। आप मंत्रम चाहते हैं, लेकिन मैं कोई ­ऋषि नहीं हूँ और मंत्रम नहीं दे सकता।”

आज का दिन इतिहास में 

विपिन चंद्र पाल जी का आज़ादी में योगदान 

आज़ादी में योगदान –

बिपिन चन्द्र पाल के सम्मान में जारी डाक टिकट वंदे मातरम् राजद्रोह मामले में भी अरबिंदो घोष के खिलाफ गवाही देने से इंकार करने के कारण वह छह महीने जेल में रहे। 

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में पाल की जन्मशती के मौक़े पर अपने सम्बोधन में उन्हें एक ऐसा महान् व्यक्तित्व क़रार दिया, 

जिसने धार्मिक और राजनीतिक मोर्चों पर उच्चस्तरीय भूमिका निभाई। पाल ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान विदेशी कपड़ों की होली जलाने और हड़ताल जैसे आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई।

निधन –

विपिनचन्द्र पाल 1922 में राजनीतिक जीवन से अलग हो गए और 20 मई, 1932 में अपने निधन तक राजनीति से अलग ही रहे।

Today’s day in history 

Bipin Chandra Pal 

Date of birth: November 7, 1858 

He comes in the history of India’s freedom struggle as the ‘father of revolutionary ideas’, who was a part of the ‘Lal’, ‘Bal’ and ‘Pal’ trio that shook the British.

 Birth – 

Vipin Chandra Pal, born on 7 November 1858 in Poil village of Habibganj district in Bengal (presently in Bangladesh), was rich in versatile talent.

 Apart from being a teacher and journalist, he was also a skilled speaker and writer. 

According to historian V.C. Sahu, Vipin Chandra was part of the trio of Congress revolutionary patriots Lala Lajpat Rai, 

Bal Gangadhar Tilak and Vipin Chandra Pal (Lal Bal Pal), who led a harsh movement against the partition of Bengal in 1905.

 Life Introduction –

 Pal, the founder of ‘Vande Mataram’ magazine, was also a great social reformer, who married a widow despite opposition from his family. 

Pal went to England during the arrest of Bal Gangadhar Tilak and the repression carried out by the British regime in 1907. 

There he joined the revolutionary ideology ‘India House’ and started ‘Swaraj Patrika’. Due to the murder of Curzon Wylie by Madan Lal Dhingra in 1909,

 the publication of his magazine stopped and he had to suffer from extreme mental stress in London. 

After this incident, he separated from the radical ideology and presented the concept of a union of independent countries. 

Pal also criticized Mahatma Gandhi on many occasions. In his presidential speech at the session of the Indian National Congress in 1921,

 Pal criticized Gandhiji and said – “You want magic, but I believe in logic. You want mantram, but I am no sage and no mantram. Can give.” 

 Today in History 

Vipin Chandra Pal’s contribution to independence Contribution to freedom –

 Postal stamp issued in honor of Bipin Chandra Pal He also spent six months in jail for refusing to testify against Aurobindo Ghosh in the Vande Mataram treason case. 

The country’s first Prime Minister, Pandit Jawaharlal Nehru, in his address on the occasion of Pal’s birth centenary in 1958, 

called him a great personality who played a high-level role on religious and political fronts. During the freedom struggle,

 Pal played an active role in movements like burning of foreign clothes and strikes. 

 Death –

 Bipin Chandra Pal separated from political life in 1922 and remained away from politics till his death on May 20, 1932.

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