औरंगजेब का बर्बर शासन
जब औरंगजेब ने मथुरा का श्रीनाथ जी मंदिर तोड़ना चाहा तो उनकी मूर्ति लेकर मंदिर के पंडित मेवाड़ नरेश महाराणा राज सिंह जी की शरण में आये थे जिन्होंने वचन दिया था की जब तक एक लाख मेवाड़ी राजपूतों का शीश ना कट जाये औरंगजेब श्री नाथ जी की मूर्ति ना तोड़ पाएगा और जो भव्य मंदिर मेवाड़ में श्री नाथ जी का महाराणा राज सिंह जी ने बनवाया था आज भी ना केवल राजस्थान अपितु पुरे भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरो में से एक है
जब औरंगजेब ने मेवाड़ पर आक्रमण कर मेवाड़ में कई मंदिर तोड़े तो राज सिंह के पुत्र भीम सिंह जी जो मेवाड़ी सेना की एक टुकड़ी का नैतृत्व कर रहे थे गुजरात में जा घुसे, 300 मस्जिद तोड़ दी थी’। “और शठे शाठ्यम समाचरेत्”(अर्थ:-दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिये/विदुर नीति जिसका समर्थन आचार्य चाणक्य और वीर सावरकर ने भी किया)की नीति का प्रदर्शन किया था इस घटना का वर्णन मेवाड़ के सबसे प्रमाणिक इतिहासिक ग्रंथ वीर विनोद में मिलता है
वीर दुर्गादास राठौड़ ने औरंगजेब की नाक में दम कर दिया था और महाराज अजीत सिंह को राजा बनाकर ही दम लिया। दुर्गादास राठौड़ का भोजन, जल और शयन सब अश्व के पार्श्व पर ही होता था।लोकगीत में ये गाया जाता है कि यदि दुर्गादास न होते तो सबकी सुन्नत हो जाती।वीर दुर्गादास राठौड़ भी शिवाजी के जैसे ही छापामार युद्ध की कला में विशेषज्ञ थे। अजीत सिंह जी के पिता जसवंत सिंह जी कों दिया वचन निभा बालक अजीत सिंह जी कों औरंगज़ेब से बचा मेवाड़नाथ राणा राज सिंह जी के पास ले गए और मेवाड़ मारवाड़ की संधि स्थापित की मध्यकाल का दुर्भाग्य बस इतना है कि हिन्दू संगठित होकर एक संघ के अंतर्गत नहीं लड़ सके क्यूंकि औरंगज़ेब ने मेवाड़नाथ राणा राज सिंह जी की हत्या करवा दी अन्यथा इस्लाम के विरुद्ध हिन्दुओं का जो संयुक्त मोर्चा बनाने की जो नीति महाराणा राज सिंह जी बना रहे थे उसमे छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, राजपूताने के तीनो शक्तिशाली राज्य आमेर,मारवाड़ और मेवाड़ होते फिर भी भिन्न भिन्न स्थानों पर स्थानीय रूप से प्रतिरोध करते रहे और औरंगज़ेब कों सभी ने कही ना कही हराया।
औरंगजेब के समय दक्षिण में शिवाजी, राजपूताने में मेवाड़नाथ महाराणा राज सिंह, मारवाड़ के राजा जसवंत एवं वीर दुर्गादास,आमेर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह,पश्चिम में सिख गुरु गोविंद सिंह और पूर्व में लचित बुरफुकन, बुंदेलखंड में राजा छत्रसाल आदि ने भरपूर प्रतिरोध किया और इनके प्रतिरोध का ही परिणाम था कि औरंगजेब के मरते ही मुगलवंश का पतन हो गया।
इतिहास साक्षी रहा है कि जब जब आततायी अत्यधिक बर्बर हुए हैं, हिन्दू अधिक संगठित होकर प्रतिरोध किया है। हिन्दू स्वतंत्र चेतना के लिए ही बना है। बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।इतने अल्प समय के अस्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है…. मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा
अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ….इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 150 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।
जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था। अब जरा विचार करें क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्षों तक राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ?