हरियाणा वॉर शहीदी दिवस राव तुलाराम
1857 की क्रांति का एक महान योद्धा
इतिहास में आज का दिन 23 सितंबर
हरियाणा शहीदी दिवस / हरियाणा वॉर शहीदी दिवस राव तुलाराम
महेंद्रगढ़ ज़िले की तहसील नारनौल के नसीबपुर के मैदान में हुई जंग में अंग्रेज जीत तो गये लेकिन राव तुलराम को नहीं पकड़ सके ,राव तुलाराम वो बहादुर राजा थे जिन्होंने अपने युद्ध कौशल से अंग्रेजों के छक्केछुड़ा दिये और ईरान से लेकर काबुल तक भारत की आज़ादी के लिए यात्रा की
इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट से जब नई दिल्ली की तरफ आओ तो राव तुला राम मार्ग से गुजरना पड़ता है। इस मार्ग पर कई हाइर एजुकेशन के इंस्टीट्यूट हैं। राव तुला राम के नाम पर दिल्ली में सिर्फ सड़क का नाम ही नहीं, फ्लाईओवर, अस्पताल, कॉलेज और कई इमारतें हैं। लेकिन कभी ख्याल किया है कि ये राव तुला राम हैं कौन? इस सवाल का जवाब जानने के लिए जब इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो हमें मिलता है एक ऐसा क्रांतिकारी हीरो, जिसने देश की आज़ादी के पहले संग्राम में अहम रोल अदा किया।
इतिहास में आज का दिन
२३ सितंबर
1857 की क्रांति का एक महान योद्ध
रियासत
राव तुला राम 1857 की क्रांति के वो योद्धा हैं, जिन्होंने अंग्रेजों से तकरीबन एक महीने तक लोहा लिया। और अंग्रेजों को अपने गढ़ में उलझाए रखा। राव तुला राम का जन्म रेवाड़ी के रामपुरा में हुआ था। तारीख थी 9 दिसंबर 1825, उस वक़्त रेवाड़ी को अहिरवाल का लंदन भी कहा जाता था, जहां पर राव तुला राम के पिता राव पूर्ण सिंह का राज था। उनकी रियासत आज के दक्षिण हरियाणा में फैली थी, जिसमें क़रीब 87 गांव थे।राव तुलाराम की शिक्षा तब शुरू हुई जब वे
पांच साल के थे। तभी से उन्हें शस्त्र चलाने और घुड़सवारी की शिक्षा भी दी जा रही थी। राव तुला राम महज 14 साल के थे, जब उनके पिता की मौत हुई। इस वजह से 14 साल में ही उन्हें सिंहासन संभालना पड़ा। लेकिन अंग्रेजों की नजर उस गद्दी पर थी। अंग्रेज़ों ने उनकी आधे से अधिक रियासत पर धीरे-धीरे कब्जा जमा लिया था। उनसे अपनी जागीर छुड़ाने के लिए राव तुला राम ने अपनी एक सेना तैयार करनी शुरू कर दी।
राव तुलाराम का राज कनीना, बवाल, फरुखनगर, गुड़गांव, फरीदाबाद, होडल और फिरोजपुर झिरका तक था। लेकिन तभी 1857 की क्रांति भड़क गई। जिसकी आग हरियाणा तक फ़ैल गई और दिल्ली से सटे अहिरवाल के इलाके में ये विद्रोह और भयानक रूप से भड़क गया। अहिरवाल का नेतृत्व राव तुलराम और उनके चचेरे भाई गोपाल देव ने संभाला। तब राव तुला राम को दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर का साथ मिला। मेरठ से दिल्ली तक विद्रोह भड़क चुका था। दूसरी तरफ हरियाणा में राव तुला राम ने अंग्रेजों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी। अंग्रेजों को इस बात इलहाम हो चुका था कि अगर दिल्ली पर कब्जा करना है तो पहले राव तुला राम पर कंट्रोल करना होगा।युद्ध की तैयारी
17 मई 1857 को राव तुलाराम चार से पाँच
सौ लोगों के साथ रेवाड़ी की तहसील पहुंचे और सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। अपना हेडक्वार्टर बनाने के लिए उन्होंने रामपुरा गांव को चुना। गोपाल देव उनके कमांडर इन चीफ बने। उन्होंने रेवाड़ी के लोगों से दान और कर्ज लेकर पांच हजार लोगों की सेना तैयार कर ली। रामपुरा के किले में गोला बारूद, तोप गाड़ियां और बंदूकें जमा की जाने लगीं।
दूसरी तरफ अंग्रेजी खेमे में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। ऐसे में 2 अक्टूबर 1857 को ब्रिगेडियर जनरल शोवर्स को राव तुलाराम को तहस-नहस करने के लिए भेजा गया। जनरल शोवर्स अपनी सेना और तोपखाने लेकर रेवाड़ी की तरफ बढ़ रहे थे। मगर घात लगाए बैठी राव तुला राम की सैनिक टुकड़ी ने 5 अक्टूबर 1857 को पटौदी में जनरल शोवर्स को घेर लिया। अंग्रेज राव तुला राम की तैयारी देखकर दंग रह गए।
हालात गंभीर हो चले थे, राव तुला राम को अंदाजा हो गया था कि दिल्ली के पतन के बाद जो हालात बन गए हैं, उनमें रामपुरा के मिट्टी के किले में ब्रिटिश सेना को रोक पाना मुमकिन नहीं। अंग्रेज उनकी सेना को बड़ी आसानी से खत्म कर देंगे। इसलिए शोवर्स पहुंचने से पहले उन्होंने किला छोड़ दिया। 6 अक्टूबर को अंग्रेज़ों ने रेवाड़ी का किला कब्जा लिया। जिसके बाद ब्रिगेडियर जनरल शोवर्स ने राव तुला राम के पास पैगाम भेजा कि अगर वो सरेंडर कर दें तो उनके साथ बेहतर सलूक किया जाएगा। लेकिन राव तुला राम ने ये ऑफर ठुकरा दिया। और आज़ादी की बात सामने रखी। इस बात से गुस्साए अंग्रेजों ने 10 नवम्बर 1857 को एक बड़ी सेना और भेज दी। इस बार जबरदस्त तोपखानों के साथ कर्नल जेरार्ड को कमान सौंपी गई।
कुछ दिन रेवाड़ी के रामपुरा में रुकने के बाद 16 नवंबर को जेरार्ड ने नारनौल की तरफ कूच किया। रास्ता रेतीला था। से ही अंग्रेजी सेना नसीबपुर के मैदान के पास पहुंची तो राव तुला राम ने देखा कि मौका सही है, तभी अपनी सेना को अंग्रेजों पर हमला करने को बोल दिया। किले से दूर जंग छिड़ गई। जिस तरह से राव तुला राम की सेना ने अंग्रेजों पर आक्रमण बोला, उससे अंग्रेजी सेना के छक्के छूट गए। उनके कमाण्डर जेरार्ड समेत कई अफसर मारे गए। हालात बिगड़ते देख कार्यवाहक ब्रिटिश कमांडेंट मेजर कौलफील्ड ने तोपखानों से बमबारी करने का हुक्म दे दिया। राव तुला राम के घुड़सवार और पैदल सैनिक बहादुरी से सामने डटे रहे, मगर बमबारी के सामने क्या ही मुकाबला कर पाते। तोपखानों की बरसती आग ने विद्रोहियों को पस्त कर दिया। इस जंग में राव तुला राम की हार तो हुई, मगर वो वहां से निकलने में कामयाब रहे। और इस बात का मलाल अंग्रेज़ों को रह गया। राव तुला राम के तकरीबन 5 हजार सैनिक इस जंग में मारे गए।
२३ सितंबर हरियाणा शहीदी दिवस /हरियाणा वॉर शहीदी दिवसतत्या टोपे से भेंट
जख्मी हुए राव तुला राम पहले राजस्थान पहुंचे, जहां इलाज कराने के बाद वो तांत्या टोपे की सेना में शामिल हो गए। तांत्या टोपे की सेना की भी जब हार हुई तो वो पहले ईरान पहुंचे और फिर अफगानिस्तान।
वायरस का शिकार
यहां उन्होंने भारत की आजादी के लिए मदद मांगी, वहां के शासक को उन्होंने मदद के लिए तैयार भी कर लिया था,
लेकिन तभी वहां फैली बीमारी ने राव तुला राम को अपनी चपेट में ले लिया।
डिसेंट्री (पेचिश) की वजह से इतनी तबीयत बिगड़ी कि 23 सितंबर 1863 में राव तुला राम काबुल से स्वर्ग सिधार गए। भारत को आज़ाद कराने की तमन्ना उनके दिल में ही रह गई। काबुल में उनका शाही सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। रामपुरा गांव में आज भी उनके वंशज रहते हैं। उनकी इस बहादुरी के लिए राव तुला राम के नाम पर कई पार्क, स्टेडियम, कॉलेज और अस्पताल बनाए गए हैं। साल 2001 में राव तुलाराम के नाम पर डाक टिकट भी जारी किया गया था। राव तुला राम ने जिस बहादुरी से अंग्रेज़ों का सामन किया, उसको भुलाया नहीं जा सकता। उनके जीवन पर केसी यादव ने राव तुला राम ए बायोग्राफी किताब लिखी है, जो उनके जीवन और संघर्ष की मुकम्मल दास्तान है।