COLD WAR : सिखों को हिन्दुओ से अलग करने का षड्यंत्र
जानिए सरल और कम शब्दों में कि कैसे सिखों को हिन्दुओ से अलग करने का षड्यंत्र किया गया।
1908, अमृतसर के हरि मंदिर साहिब जिसे अंग्रेज़ ईसाईयों व वामपंथियों ने गोल्डन टेंपल कहना आरम्भ किया
चलिए तनिक इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं
सिखों के गुरुओं के नाम:
*1-गुरु नानकदेव थे
*2- गुरु अंगददेव
*3- गुरु अमरदास
*4- गुरु रामदास
*5- गुरु अर्जुनदेव
*6- गुरु हरगोविंद
*7- गुरु हरराय
*8 – गुरु हरकिशन
*9- गुरु तेगबहादुर
*10- गुरु गोविंद सिंह
सभी गुरुओं के नाम में राम,किशन ,अर्जुन, अंगद, गोविंद (कृष्ण), हर(महादेव) हैं।
जब औरँगजेब ने कश्मीर के पंडितो को इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा तो कश्मीरी पंडितों ने गुरू तेगबहादुर जी के पास सहायता के लिए गुहार लगाई तब गुरु तेगबहादुर जी ने कहा कि जाओ औरंगजेब से कहना यदि हमारे गुरु तेगबहादुर जी यदि मुसलमान बन गए तो हम भी मुसलमान बन जाएंगे!
ये बात पंडित औरंगजेब तक पहुंचा देते हैं तब औरंगजेब गुरु तेगबहादुर जी को दिल्ली बुलाकर मुसलमान बनने के लिए दवाब डालता है लेकिन गुरु जी द्वारा अस्वीकार करने पर उन्हें यातना देकर मार दिया जाता है!
अब प्रश्न ये है कि यदि सिख हिन्दू से अलग हैं तो कश्मीरी पंडितों के लिए गुरु तेगबहादुर ने अपने प्राण न्यौछावर क्यों कर दिए ?
गुरु गोविन्द सिंह का प्रिय शिष्य बंदा बहादुर (माधव दास) एक वैरागी थे जिन्होंने गुरु गोविन्द सिंह जी के बाद पंजाब में मुगलों की सेना को नाकों चने चबवा दिए थे!
कृष्णदत्त जैसे ब्राह्मण ने गुरु के सम्मान के लिए अपने सम्पूर्ण परिवार को कुर्बान कर दिया था ऐसे सैकड़ो उदारहण है!
राजा रणजीत सिंह कांगड़ा की ज्वालामुखी देवी के भक्त थे उन्होंने देवी मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया था एवं काशी विश्वनाथ मंदिर को सोना दान किया था। इनके ध्वज पर चंडी और कालभैरव के चित्र थे!
आज भी अनेक सिख व्यापारियों की दुकानों में गणेश व देवी की मूर्तियां रहती हैं, आज भी सिक्ख नवरात्रि में अपने घरों में जोत जलाते हैं
अब प्रश्न ये उठता है कि सिक्ख कब, क्यों व कैसे हिन्दुओं से अलग कर दिए गए ? 1857 की क्रांति से डरे ईसाई (अंग्रेज़) ने हिन्दू समाज को तोड़ने की साज़िश रची!
1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज का गठन किया, जिसका केंद्र तत्कालीन पंजाब का लाहौर था।
स्वामी दयानंद ने ही सबसे पहले स्वराज्य की अवधारणा दी। जब देश का नाम हिंदुस्तान तो ईसाईयों (अंग्रेज़) का राज क्यों! स्वामी दयानंद के इन विचारों से पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियों की बाढ़ आ गयी।
लाला हरदयाल, लाला लाजपतराय, सोहन सिंह, भगतसिंह के दादा एवं चाचा अजीत सिंह जैसे क्रांन्तिकारी नेता आर्य समाजी थे।
अतः ईसाई मिशनरियों(अंग्रेजो) ने अभियान चलाया कि सिख व हिन्दू अलग हैं। ताकि पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन को कमजोर किया जा सके। इसके लिए कुछ अंग्रेज़ समर्थक सिखों ने एक षड्यंत्र के तहत अभियान चलाया कि सिख हिन्दू नही हैं और अलग धर्म का दर्जा देने की मांग की (जैसे हाल ही में कर्नाटक के कुछ ईसाई बने लिंगायत समुदाय के लोगों ने हिन्दू धर्म से अलग करने की मांग उठाई थी)
ईसाई मिशनरियों (अंग्रेज़) ने 1922 में गुरुद्वारा एक्ट पारित कर सिखों को हिन्दूओं से अलग कर उन्हें अलग धर्म का घोषित कर दिया। और आजादी के बाद भी भारत के विखंडन के जिम्मेदार गुलाबी चचा ने इसे बनाये रखा…!
, हिन्दू सिखों का खून एक है!
गुरु गोविन्द सिंह ने 1699 में खालसा (पवित्र) पंथ का गठन किया था और कहा था कि मैं चारों वर्ण के लोगों को सिंह बना दूँगा!
देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा प्राण देकर ही नही,प्राण लेकर भी की जाती है।”