जन्म 3 दिसंबर
केवल 18 वर्ष की आयु में मातृभूमि के लिए हँसते – हँसते बलिदान होने वाले युवा क्रांतिकारी श्री खुदीराम बोस को उनकी जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि। ( Khudiram Bose )
कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे।
किंतु खुदीराम से पूर्व 17 जनवरी 1872 को 68 कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय 13 वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था।
उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नंबर 50वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढ़ी कसकर पकड़ ली
और तब तक नहीं छोड़ी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गए बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था
भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में अनेक कम आयु के वीरों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी है। उनमें खुदीराम बोस का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है।
उन दिनों अनेक अंग्रेज अधिकारी भारतीयों से बहुत दुर्व्यवहार करते थे। ऐसा ही एक मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड उन दिनों मुज्जफरपुर, बिहार में तैनात था।
वह छोटी-छोटी बात पर भारतीयों को कड़ा दण्ड देता था। अतः क्रान्तिकारियों ने उससे प्रतिशोध लेने का निश्चय किया।
योजना
कोलकाता में प्रमुख क्रान्तिकारियों की एक बैठक में किंग्सफोर्ड को यमलोक पहुँचाने की योजना पर गहन विचार हुआ। उस बैठक में खुदीराम बोस भी उपस्थित थे।
यद्यपि उनकी आयु बहुत कम थी; फिर भी उन्होंने स्वयं को इस खतरनाक कार्य के लिए प्रस्तुत किया। उनके साथ प्रफुल्ल कुमार चाकी को भी इस अभियान को पूरा करने का दायित्व दिया गया।
योजना का निश्चय हो जाने के बाद दोनों युवकों को एक बम, तीन पिस्तौल तथा 40 कारतूस दे दिये गये। दोनों ने मुज्जफरपुर पहुँचकर एक धर्मशाला में डेरा जमा लिया।
कुछ दिन तक दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का अध्ययन किया। इससे उन्हें पता लग गया कि वह किस समय न्यायालय आता-जाता है; पर उस समय उसके साथ बड़ी संख्या में पुलिस बल रहता था। अतः उस समय उसे मारना कठिन था।
अब उन्होंने उसकी शेष दिनचर्या पर ध्यान दिया। किंग्सफोर्ड प्रतिदिन शाम को लाल रंग की बग्घी में क्लब जाता था। दोनों ने इस समय ही उसके वध का निश्चय किया।
30 अप्रैल, 1908 को दोनों क्लब के पास की झाड़ियों में छिप गये। शराब और नाच-गान समाप्त कर लोग वापस जाने लगे।
अचानक एक लाल बग्घी क्लब से निकली। खुदीराम और प्रफुल्ल की आँखें चमक उठीं। वे पीछे से बग्घी पर चढ़ गये और परदा हटाकर बम दाग दिया। इसके बाद दोनों फरार हो गये।
परन्तु दुर्भाग्य की बात कि किंग्सफोर्ड उस दिन क्लब आया ही नहीं था। उसके जैसी ही लाल बग्घी में दो अंग्रेज महिलाएँ वापस घर जा रही थीं।
क्रान्तिकारियों के हमले से वे ही यमलोक पहुँच गयीं। पुलिस ने चारों ओर जाल बिछा दिया। बग्घी के चालक ने दो युवकों की बात पुलिस को बतायी।
खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी सारी रात भागते रहे। भूख-प्यास के मारे दोनों का बुरा हाल था। वे किसी भी तरह सुरक्षित कोलकाता पहुँचना चाहते थे।
प्रफुल्ल लगातार 24 घण्टे भागकर समस्तीपुर पहुँचे और कोलकाता की रेल में बैठ गये। उस डिब्बे में एक पुलिस अधिकारी भी था।
प्रफुल्ल की अस्त व्यस्त स्थिति देखकर उसे संदेह हो गया। मोकामा पुलिस स्टेशन पर उसने प्रफुल्ल को पकड़ना चाहा; पर उसके हाथ आने से पहले ही प्रफुल्ल ने पिस्तौल से स्वयं पर ही गोली चला दी और मातृभूमि के लिए बलिदान हो गये।
इधर खुदीराम थक कर एक दुकान पर कुछ खाने के लिए बैठ गये। वहाँ लोग रात वाली घटना की चर्चा कर रहे थे कि वहाँ दो महिलाएँ मारी गयीं। यह सुनकर खुदीराम के मुँह से निकला – तो क्या किंग्सफोर्ड बच गया ?
यह सुनकर लोगों को सन्देह हो गया और उन्होंने उसे पकड़कर पुलिस को सौंप दिया। मुकदमे में खुदीराम को फाँसी की सजा घोषित की गयी।
11 अगस्त, 1908 को हाथ में गीता लेकर खुदीराम हँसते-हँसते फाँसी पर झूल गये। तब उनकी आयु 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी। जहां वे पकड़े गये, उस पूसा रोड स्टेशन का नाम अब खुदीराम के नाम पर रखा गया है।
Born 3 December
Heartfelt Tribute to the Young Revolutionary Shri Khudiram Bose, who Sacrificed his Life Happily for the Motherland at the Age of Only 18, on His Birth Anniversary.
Some historians believe that he was the youngest fiery and young revolutionary patriot to be hanged for his country.
But before Khudiram, a 13 year old boy was also martyred during the public massacre of 68 Kukas on 17 January 1872.
According to the available facts, as soon as the boy, whose number was 50, was brought in front of the cannon, he tightly held the beard of Kavan, the then Deputy Commissioner of Ludhiana,
and did not let go until both his hands were cut off with a sword. was killed by the same sword In the history of Indian independence, many young heroes have also sacrificed their lives.
Among them, the name of Khudiram Bose is written in golden letters. In those days, many British officers misbehaved with Indians.
One such Magistrate Kingsford was posted in Muzaffarpur, Bihar in those days. He used to punish Indians severely for small matters. Therefore the revolutionaries decided to take revenge from him.
Plan In a meeting of prominent revolutionaries in Kolkata, the plan to send Kingsford to hell was discussed deeply.
Khudiram Bose was also present in that meeting. Although his age was very short; Nevertheless he presented himself for this dangerous task.
Along with him, Prafulla Kumar Chaki was also given the responsibility to complete this campaign.
After the plan was decided, both the youth were given a bomb, three pistols and 40 cartridges. Both of them reached Muzaffarpur and camped in a Dharamshala.
For a few days both of them studied the activities of Kingsford. From this they came to know at what time he comes and goes to the court; But at that time a large number of police forces were with him.
Therefore, it was difficult to kill him at that time. Now he focused on the rest of his daily routine. Kingsford went to the club every evening in a red carriage.
Both of them decided to kill him at this very moment. On April 30, 1908, both of them hid in the bushes near the club. After finishing drinking and dancing, people started going back.
Suddenly a red van came out of the club. Khudiram and Prafulla’s eyes sparkled. They climbed onto the carriage from behind, removed the curtain and fired the bomb.
After this both of them ran away. But unfortunately Kingsford did not come to the club that day. Two English women were going back home in a red carriage similar to his.
She herself reached Yamalok due to the attack by the revolutionaries. The police laid a trap all around.
The driver of the carriage told the police about the two youths. Khudiram and Prafulla Chaki kept running the whole night. Both of them were in bad condition due to hunger and thirst.
They wanted to reach Kolkata safely by any means. Prafulla ran continuously for 24 hours, reached Samastipur and boarded the train to Kolkata.
There was also a police officer in that compartment. Seeing Prafulla’s disheveled condition, he became suspicious.
He tried to catch Prafulla at Mokama police station; But before he could reach it, Prafulla shot himself with the pistol and sacrificed his life for the motherland.
Here Khudiram got tired and sat down at a shop to eat something. There people were discussing the incident of the night when two women were killed there.
Hearing this came out of Khudiram’s mouth – So did Kingsford survive? Hearing this, people became suspicious and caught him and handed him over to the police.
In the trial, death sentence was declared for Khudiram. On August 11, 1908, Khudiram was hanged to death laughingly with Geeta in his hand.
Then his age was 18 years, 8 months and 8 days. The Pusa Road station where he was caught is now named after Khudiram.