सनातन संस्कृति का विज्ञान
सनातन विज्ञान को जानो
लंदन व न्यूजीलैंड के शिक्षकों ने भी स्वीकारा, संस्कृत पढ़ने से बच्चे बनते हैं महान!
आज अपनी मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही ‘संस्कृत’ विश्व में एक सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा प्राप्त कर रही है। जहां भारत के सार्वजनिक पाठशालाओं में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं विश्व की बहुत सी पाठशालाएं, ‘संस्कृत’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रही हैं !
प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा भारत की सभ्यता और संस्कृति का सबसे मुख्य भाग रही है। फिर भी आज हमारे देश में संस्कृत को पाठशाली शिक्षा में अनिवार्य करने की बात कहने पर इसका विरोध शुरू हो जाता है। हम भारतवासियों ने अपने देश की गौरवमयी संस्कृत भाषा को महत्व नही दिया। आज हमारे देश के विद्यालयों में संस्कृत बहुत कम पढ़ाई और सिखाई जाती है। किंतु आज अपनी मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही संस्कृत विश्व में एक सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा हासिल कर रही है। जहाँ भारत के सभी पब्लिक पाठशालाओं में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं विश्व की बहुत सी पाठशालाएं संस्कृत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रही हैं।
न्यूजीलैंड की एक पाठशाला में संसार की विशेषतः भारत की इस महान भाषा को सम्मान मिल रहा है। न्यूजीलैंड के इस पाठशाला में बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए संस्कृत पढाई जा रही है। फिकिनो नामक इस पाठशाला का कहना है कि, संस्कृत से बच्चों में सीखने की क्षमता बहुत बढ जाती है। न्यूजीलैंड के शहर औकलैंड के माउंट इडेन क्षेत्र में स्थित इस पाठशाला में लड़के और लड़कियां दोनों को शिक्षा दी जाती है। 16 वर्ष तक की आयु तक यहाँ बच्चों को शिक्षा दी जाती है ।
इस पाठशाला का कहना है कि, इसकी पढ़ाई मानव मूल्यों, मानवता और आदर्शों पर आधारित है। अमेरिका के हिंदू नेता राजन झेद ने पाठ्यक्रम में संस्कृत को सम्मिलित करने पर फिकिनो की प्रशंसा की है। फिकिनो में अत्याधुनिक साउंड सिस्टम लगाया गया है। जिससे बच्चों को कुछ भी सीखने में आसानी रहती है। पाठशाला के प्रिंसिपल पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, 1997 में स्थापित इस पाठशाला में नए तरह के विषय रखे गए हैं। जैसे दिमाग के लिए भोजन, शरीर के लिए भोजन, अध्यात्म के लिए भोजन।
इस पाठशाला में अंग्रेजी, इतिहास, गणित और प्रकृति के विषयों की भी पढ़ाई कराई जाती है। पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि संस्कृत ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो व्याकरण और उच्चारण के लिए सबसे श्रेष्ठ है। उनके अनुसार संस्कृत के द्वारा बच्चों में अच्छी अंग्रेजी सीखने का आधार मिल जाता है। संस्कृत से बच्चों में अच्छी अंग्रेजी बोलने, समझने की क्षमता विकसित होती है।
पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, विश्व की कोई भी भाषा सीखने के लिए संस्कृत भाषा आधार का काम करती है। इस पाठशाला के बच्चे भी संस्कृत पढकर बहुत खुश हैं। इस पाठशाला में दो चरणों में शिक्षा दी जाती है। पहले चरण में दस वर्ष की आयु तक के बच्चे और दूसरे चरण 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इस पाठशाला में बच्चों को दाखिला दिलाने वाले हर अभिभावक का यह प्रश्न अवश्य होता है कि, आप संस्कृत क्यों पढ़ाते हैं? हम उन्हें बताते हैं कि यह भाषा श्रेष्ठ है। विश्व की महानतम रचनाएं इसी भाषा में लिखी गई हैं।
अमेरिका के हिंदू नेता राजन झेद ने कहा है कि, संस्कृत को सही स्थान दिलाने की आवश्यकता है। एक ओर तो सम्पूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा का महत्व बढ रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत में संस्कृत भाषा के विस्तार हेतु ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं जिसके कारण भारत में ही संस्कृत का विस्तार नहीं हो पा रहा है और संस्कृत भाषा के महत्व से लोग अज्ञात हैं । हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म के तमाम ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं।
स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति
संस्कृत भाषा की विशेषताएँ
(1) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।
(2) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
(3) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।
(4) इसे देवभाषा माना जाता है।
(5) संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है अतः इसका नाम संस्कृत है। केवल संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।
(6) शब्द-रूप – विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं।
(7) द्विवचन – सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है।
(8) सन्धि – संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है।
(9) इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
(10) शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
(11) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे – अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं।
(12) संस्कृत विश्व की सर्वाधिक ‘पूर्ण’ (perfect) एवं तर्कसम्मत भाषा है।
(13) संस्कृत ही एक मात्र साधन है जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
(14) संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी 3 करोड़ से अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी 100 गुना अधिक है। निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वारा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है।
(15) संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है।
अब केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को सभी स्कूलों, कॉलेजों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए जिससे बच्चों की बुद्धिशक्ति का विकास के साथ साथ बच्चे सुसंस्कारी बने।
पूरी पृथ्वी पर हमारे वैदिक ऋषियों के सिद्धांत हैं, लेकिन फिर भी हम उन्हें दूसरों के नाम से पढ़ने पर विवश हैं।
वेदों की ओर लौटो ,कुछ नहीं है अंधी पश्चिमी दौड़ में।
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय
हर हर महादेव