शहीद ऊधम सिंह
आज का दिन इतिहास में इतिहास में आज का दिन 31 जुलाई शहीद ऊधम सिंह जी के बलिदान पर विशेष लेख
व्यक्तिगत प्रतिशोध वर्ष-दो वर्षों में लिया जा सकता है; परंतु राष्ट्र का प्रतिशोध अनेक वर्षों के उपरांत भी लिया जा सकता है । प्रखर देशभक्त तो केवल उस अवसर की प्रतीक्षा करते हैं । _21 वर्षों के उपरांत भी अपने राष्ट्र के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए सच्चे भारतीय देशभक्त अपने प्राणों पर भी खेल जाते हैं, यह उधम सिंह ने सारे विश्व को दिखा दिया।_ जालियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी जनरल डायर का वध कर सैकडों निर्दोष भारतीयों के नरसंहार का प्रतिशोध लिया।
ब्रिटिश साम्राज्य का दृढ शत्रु
५ जून १९४० लंदन का ओल्ड बेली न्यायालय। न्यायाधीश अॅटकिन्सन के सामने लगभग चालीस वर्ष की अवस्था का हृष्ट-पुष्ट एक हिंदुस्थानी बंदी बडे अभिमान से अपना वक्तव्य पढ़ रहा था। न्यायधीश के दंड सुनानेके पूर्वका यह उसका अंतिम वक्तव्य था। उसने कहा, ‘‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हिंदुस्थान में मैंने जनता को दाने-दाने के लिए मरते हुए देखा है। अमृतसरके जलियांवाला बाग में जनरल डायर और माइकल ओडवायर के आदेश पर किए हुए क्रूर हत्याकांड का दृश्य मैं आज भी नहीं भूला हूँ।
इन्हीं घटनाओं से मैंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध प्रतिशोध लेने की मन-ही-मन शपथ ली थी। ओडवायर का वध करके यदि मैं यह प्रतिशोध न लेता, तो हिंदुस्थान के नाम को कलंक लग जाता ! तुम्हारे १०, १५ अथवा २० वर्षों के कारावास का अथवा मृत्युदंड का मुझे भय नहीं। वृद्धावस्था तक ऐसे जीने से क्या लाभ, जिसमें कोई उद्देश्य ही न हो। अपने उद्देश्यपूर्ति के लिए, मरने में ही खरा पुरुषार्थ है, फिर यह कार्य युवावस्था में ही क्यों न हो ! अपने देश के सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है, यह तो मेरे लिए गौरव की बात है !”
उसका वक्तव्य २० मिनट चला। ब्रिटिश शासन द्वारा हिंदुस्थान पर किए जा रहे अत्याचारों का ऐसा स्पष्ट वर्णन सुनना न्यायाधीश को भी असह्य हुआ। निवेदन समाप्त हुआ, तब न्यायाधीश इतने क्रोधित थे कि मृत्युदंड (फांसी) सुनाते समय सिर पर काली टोपी चढाए बिना, ही उन्होंने उस बंदीके वक्तव्य के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया और दंड सुनाने लगे। इतने में उनके पास खडे किसी अधिकारी ने उनके सिर पर काली टोपी रखी, फिर उन्होंने बंदी से कहा, ‘तुम्हें मैं मृत्युदंड सुनाता हूँ !’
इस महापराक्रमी बंदी का नाम था उधम सिंह
पंजाबशार्दूल सरदार उधम सिंह का जन्म पटियाला जनपद के सुनाम गांव में २८ दिसंबर १८९९ को हुआ। १९१९ के जलियांवाला बाग हत्याकांड के वे प्रत्यक्ष दर्शी थे। इस सभा में वह स्वयंसेवक के रूप में पानी देने की सेवा कर रहे थे। गोलियां चलने पर उनके हाथ में भी गोली लगी और वे धरती पर गिर पडे; परंतु अपने देशबांधवों की कारुणिक चीत्कारें सुनकर वे उन्हें पानी देनेके लिए पुनः उठे। ३७३ निरपराध लोगों को मारने वाले और १५०० से भी अधिक लोगों को आहत करने वाले इस हत्याकांड का आदेश उस समय के पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओडवायरने दिया था। तभी से उधम सिंह के मनमें प्रतिशोध की अग्नि धधक रही थी।
२१ वर्षों के पश्चात् हिंदुस्थान का कलंक अपने रुधिर से धो दिया
सरदार उधम सिंह कुछ समय भगतसिंह के साथ थे। उस समय उनके पास शस्त्रास्त्र और विस्फोटक (गोला-बारूद) मिले। उस प्रकरण में उन्हें ५ वर्षों का कारावास भी हुआ था। कारागृह से छूटते ही वे १९३३ में वे इंग्लैंड गए। इसी कालावधि में उन्होंने हिंदुस्थान से इंग्लैंड लौटे ओडवायर का वध करने का दृढ निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने ओडवायर से मित्रता बढाई। यह मित्रता इतनी गहरी थी कि १९४० में मृत्युपूर्व ओडवायर ने डेवॉनशायर के अपने घर पर उन्हें चाय-पानी के लिए आमंत्रित किया था और उन्होंने इस आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार भी किया।
इस समय वे ओडवायर को मार सकते थे; परंतु उन्हें तो ओडवायर का प्रतिशोध सार्वजनिक स्थान पर तथा सबके सामने लेना था। इसलिए उन्होंने ओडवायर को उसके घर में मारना उचित नहीं समझा ! १३ मार्च १९४० को जहां मदनलाल ढींगरा ने कर्जन वायली का वध किया था, उसी कॅक्स्टन हॉल में शाम को एक सभा थी। भारतमंत्री लॉर्ड जेटलैंड सभा के अध्यक्ष स्थान पर थे। सभा में भाषण करने के लिए पर्सी साईक्स, मायकेल ओडवायर आदि मान्यवर लोग आए थे। सबका भाषण समाप्त होते ही उधम सिंह आगे बढे और तीन गज दूर रुककर उन्होंने प्रथम पंक्ति में बाई ओर बैठे ओडवायरपर दो गोलियां चलायीं। वह वहीं ढेर हो गया। उसके पश्चात् दो-दो गोलियां लॉर्ड जेटलैंड, लॉर्ड लैमिंगटन और सर लुई डेन को लगीं; परंतु वे सब केवल आहत हुए।
फांसी से विवाह
उधम सिंह को पकड लिया गया। कारागृह से जोहलसिंह नाम के मित्र को भेजे हुए पत्र में वे लिखते हैं, ‘‘मुझे मृत्यु का भय कभी भी नहीं लगता। मैं शीघ्र ही फांसी से विवाह करने वाला हूं। मेरे सर्वोत्तम मित्रको (भगतसिंह) मुझे छोडकर गए हुए १० वर्ष हो गए। मेरी मृत्यु के उपरांत उससे मेरी भेंट होगी। वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा है।” इन्हीं दिनों कारागृह में कुछ अन्याय होने के कारण उन्होंने ४२ दिन अन्नत्याग भी किया था। अपेक्षानुसार उधम सिंह को मृत्युदंड सुनाया गया। सुनकर उन्होंने सरदार भगतसिंह को आदर्श मानकर तीन बार ‘इंकलाब जिंदाबाद !’ यह घोषणा की और ब्रिटिश न्यायालय के प्रति तुच्छता तथा तिरस्कार दिखाने हेतु न्यायालय पर थूंक दिया ! ३१ जुलाई १९४० को पेंटनवील कारागृह में उन्हें फांसी दे दी गई। व्यक्तिगत प्रतिशोध वर्ष-दो वर्षों में लिया जा सकता है; परंतु राष्ट्र का प्रतिशोध अनेक वर्षों के उपरांत भी लिया जा सकता है। प्रखर देशभक्त तो केवल उस अवसर की प्रतीक्षा करते हैं। २१ वर्षों के उपरांत भी अपने राष्ट्र के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए सच्चे भारतीय देशभक्त अपने प्राणों पर भी खेल जाते हैं, यह उधम सिंह ने सारे विश्व को दिखा दिया।
मातृभूमि की जय
देश के वीर बलिदानियों की जय