कैसे जीता गया उम्बरखिंड का युद्ध ?
क्या उम्बरखिंड की लड़ाई सच्ची है ?
3 फ़रवरी – इतिहास में आज का दिन
वो ऐतिहासिक युद्ध जिसमें मात्र 1000 मराठाओ ने 25000 मुग़लों को घुटनों पर ला दिया।
वो कौन सी प्रणाली थी जिसका प्रयोग काफ़ी वर्षों बाद तक होता रहा ?
वह युद्ध कला जो चे गवेरो और वियतनामी सेना द्वारा जिसका प्रयोग किया गया ।
युद्ध की पृष्ठभूमि –
बीजापुर का सातवाँ शासक मोहम्मद आदिल शाह लगातार मुगलों की सहायता कर रहा था और 1636 में शाहजहाँ के साथ एक शांति वार्ता के ऊपर भी संधि की । मराठा जनरल शाह जी भोंसले ने इनका विरोध भी किया और इन्ही के कदमों पर चलते चलते छत्रपति शिवाजी महाराज का उदय हुआ
और बीजापुर सल्तनत से अलग होगा मराठा साम्राज्य स्थापित किया । मोहम्मद आदिल शाह की तमाम कोशिशों के बावजूद ये साम्राज्य बना रहा । औरंगजेब को पता था कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता और बढ़ती शक्ति को नजरअंदाज नहीं कर सकता
और उसने फैसला किया कि मराठों को जल्द से जल्द मिटाना जरूरी है।
1659 में औरंगज़ेब मुग़लिया गद्दी पर बैठा और उसने एक संधि को लागू करने के लिए एक बड़ी मुगल सेना के साथ शाहिस्ता खान को वाइसराय के रूप में और उज़्बेक करतलब खान को दक्कन भेजा , शिवाजी को हराने के लिए ।
शिवाजी महाराज के बढ़ते वर्चस्व को ख़त्म करने के लिए आदिल शाह ने अपने जनरल अफ़ज़ल ख़ान को मवाले सरदारों को शिवाजी से अलग करने के लिए भेजा ।
1660 सलाबत खान ने मराठों पर हमला किया, और पनहला और पवन्दुर्ग को घेर लिया ।
1661 में, शाहिस्ता खान ने वर्तमान महाराष्ट्र और कोंकण के उत्तर में कल्याण, भिवंडी, पनवेल, चुल और नागोठाणे के किलों पर करतलब ख़ान के नेतृत्व में क़ब्ज़े में ले लिया ।
1661 में कोंकण में शिवाजी को हराने के लिए शाहिस्ता ख़ान ने करतलब ख़ान के साथ राय बाग़ान (सावित्री बाई देशमुख ) को एक बड़ी सेना के साथ भेजा । जो मुग़ल सेनापति राजे उदारम देशमुख की विधवा थी ।
शिवाजी ने ही अपने गुप्त चर से उसे यह सूचना दिलवाई कि शिवाजी की सेना वहाँ स्थित है और करतलब खान ने शिवाजी की सेना को खत्म करने के लिए उम्बरखिंड के रास्ते घाट के पार तेजी से जाने का फैसला किया
ऐतिहासिक युद्ध की शुरुआत
करतलब ख़ान बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ जो मैदानी क्षेत्र में युद्ध में निपुण थे को लेकर आगे बढ़ रहा था । शिवाजी की सेना वहीं छिपी थी लेकिन शिवाजी की सेना ने करतलब ख़ान को ये महसूस करवाया कि उसका रास्ता एकदम आसान है आगे बढ़ने के लिए ।
जैसे ही मुग़लिया सेना आगे बढ़ती रही , शिवाजी महाराज ने ये सुनिश्चित किया कि एक भी मुग़ल भगाने में कामयाब ना हो तब मुग़लिया सेना पर पत्थरों से आक्रमण कर दिया और फिर तीरंदाज़ों ने एक एक मुग़ल के ऊपर निशाना साधना शुरू कर दिया ।
आधे दिन से भी कम समय में शिवाजी की सेना ने ये युद्ध जीत लिया और मुग़ल जनरल ने आत्मसमर्पण कर दिया । शिवाजी महाराज ने समस्त सेना से उनके हथियारों को गिरवा दिया और उन्हें एकत्र कर राजगढ़ वापस आ गये ।
यह युद्ध ना ही आपको बताया गया और ना इतिहास का हिस्सा बन सका शायद इतिहासकार मुग़लिया नशा करके इतिहास लिख रहे थे ।
उम्बरखिंड की पराजय मुग़लों के आत्मसम्मान को भारी ठेस थी । इसके पश्चात मुगलों ने कोंकण को जीतने की अपनी योजना छोड़ दी थी, क्यूकी उन्हें पता था कहीं कोंकण जीतने के चक्कर में पूरी सेना को ना खो दे ।
Is the battle of Umberkhind is real ?
3 February
Today’s Day in History
Today’s history
How was the battle of Umberkhind won?
That historical war in which only 1000 Marathas brought 25000 Mughals to their knees. Which was the system which continued to be used for many years?
The art of war was used by Che Guevara and the Vietnamese army. Background of war – Mohammed Adil Shah, the seventh ruler of Bijapur, continued to assist the Mughals and even negotiated peace with Shah Jahan in 1636.
Maratha General Shahji Bhonsle also opposed them and following his footsteps,
Chhatrapati Shivaji Maharaj emerged and established the Maratha Empire which would be separated from the Bijapur Sultanate. Despite all the efforts of Mohammad Adil Shah, this empire continued to exist.
Aurangzeb knew that he could not ignore the bravery and growing power of Chhatrapati Shivaji Maharaj and decided that it was necessary to eliminate the Marathas as soon as possible.
In 1659, Aurangzeb ascended the throne of Mughalia and sent Shahista Khan as viceroy and the Uzbek Kartalab Khan to the Deccan with a large Mughal army to enforce a treaty and defeat Shivaji. To end the growing dominance of Shivaji Maharaj,
Adil Shah sent his general Afzal Khan to separate the Mawale chieftains from Shivaji.
1660 Salamat Khan attacked the Marathas and besieged Panhala and Pavandurg. In 1661, Shaaista Khan captured the forts of Kalyan, Bhiwandi, Panvel, Chauk and Nagothane in the north of present-day Maharashtra and Konkan under the leadership of Kartalab Khan.
In 1661, Shaaista Khan sent Rai Baghan (Savitri Bai Deshmukh) along with Kartalab Khan with a large army to defeat Shivaji in Konkan. Who was the widow of Mughal commander Raje Udaram Deshmukh?
Shivaji himself informed him through his secret messenger that Shivaji’s army was situated there and Kartalab Khan decided to move quickly across the ghat via Umberkhind to eliminate Shivaji’s army.
Beginning of historical war Kartalab Khan was moving forward with a large number of soldiers who were adept at fighting in the plains.
Shivaji’s army was hiding there but Shivaji’s army made Kartalab Khan feel that his path was very easy to move forward.
As the Mughal army continued to advance, Shivaji Maharaj ensured that not a single Mughal was successful in driving away. He then attacked the Mughal army with stones and then the archers started targeting each Mughal.
In less than half a day, Shivaji’s army won the battle and the Mughal general surrendered. Shivaji Maharaj made the entire army drop their weapons collected them and returned to Rajgarh.
This war was neither told to you nor could it become a part of history. Perhaps the historians were writing history under the influence of Mughal intoxication.
The defeat of Umberkhind was a huge blow to the self-respect of the Mughals. After this, the Mughals had given up their plan to conquer Konkan, because they knew that they might lose their entire army in the process of conquering Konkan.