5000 वर्ष के इतिहास का सबसे बड़ा हिन्दुओं का धार्मिक आयोजन
Path-Finder January 25, 2024 05000 वर्ष के इतिहास का सबसे बड़ा हिन्दुओं का धार्मिक आयोजन
हिन्दूराष्ट्र के 5000 वर्ष के इतिहास का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन अब दूर नहीं है। आजतक देशभर के नगर नगर में देवता प्रतिष्ठित हुए होंगे, पर दूसरे नगरों को उसकी खबर नहीं थी।
वहाँ तमिलनाडु में यदि भव्य मंदिर बनते थे तो हिमाचल में बैठे हिन्दू से हम उस मन्दिर का नाम जानने की आशा भी नहीं कर सकते थे। यद्यपि पूर्वजों ने महाकुंभ की ऐसी परम्परा चलाई थी जहाँ सम्पूर्ण हिन्दू समाज जुटता चला आ रहा था।
मुझे प्रयाग के कुम्भ में सम्राट हर्षवर्धन का वो दान याद है, जब वो सर्वस्व दान करके धन्य अनुभव करते थे। पर संचार व परिवहन के अभाव में एक एक हिन्दू कुम्भ में नहीं पहुँच सकता था।
आज तो विश्वभर का करोड़ों हिन्दू समाज इस राष्ट्रपर्व में मग्न है। मानो सप्तद्वीपा मेदिनी ही एक नगर हो गयी है। प्रथम बार हर हिन्दू संचार माध्यमों से एकाकार हो गया है। श्रीनगर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से आसाम तक एक ही भाव है।
लंदन से अमेरिका तक मन्दिर सज रहे हैं, शोभायात्रा निकल रही हैं। कोई मुहल्ला ऐसा नहीं है जहाँ भगवा ध्वज न फहर रहे हों। कोई ऐसा मन्दिर नहीं है जिसमें पौष शुक्ल द्वादशी को उत्सव न हो।
5000 वर्ष में ऐसा अवसर कभी नहीं आया। सभी हिन्दू एक साथ प्रभु के दर्शन करेंगे। धन्य हैं वे नेत्र जो यह दृश्य देख रहे हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि यह क्षण जी पा रहे हैं, वरना प्रतीक्षा करते करते पथराई आँखों से पीढ़ियाँ चली गईं। जिन्होंने स्वप्न देखा, उनके प्रिय स्वप्न की पूर्ति हमने देखी, वे पूछेंगे समय आने पर उस आनन्दित क्षण के बारे में।
कल राहुल सिंह राठौड़ भैया ने बहुत ही भावुक बात लिख दी, “सच कहूँ तो आजकल मैं रास्ते चलते हुए भी बहुत सावधानी बरतने लगा हूँ। कारण यह है कि किसी भी गलती से प्राण प्रतिष्ठा से पहले मरना नहीं चाहता।
बस 22 जनवरी 2024 तक शरीर बचा रह गया और यह प्राण प्रतिष्ठा हो गया तो मेरी आत्मा अनंतकाल तक के लिए यह क्लेम कर सकेगी कि जब इस धरा पर यह पावन कार्य हो रहा था तो मैं भी सशरीर यहीं था।
मैं कोटि जन्मों के लिए अपने को सौभाग्यशाली मान लूँगा। ऐ मालिक! चार दिन के लिए और सांसें दे दे, उसके बाद कभी भी छीन लेना कोई शिकायत नहीं करूँगा।”
करोड़ों हिन्दुओं ने अपने जीवन का चरम इस क्षण को मान लिया, अपने जीवन के सत्त्व को इस उत्सव से अभेद कर दिया है।
साध्वी ऋतम्भरा का अवरुद्ध कण्ठ स्वरलहरी लगता है। अब ऐसा ही लगता है रामलला प्रतिष्ठित नहीं हो रहे हैं, प्रकट हो रहे हैं।
जैसे ही रामलला प्राण प्रतिष्ठित हो जाएंगे राष्ट्र के रंग ढंग बदल जाएंगे। घावों पर मरहम लग जाएंगे। आसमान में चाँद लग जाएंगे। बुझे हुए सूरज जल जाएंगे। भटके हुए नक्षत्र टिक जाएंगे। महलों में कंगूरे लग जाएंगे। राष्ट्र के पंख लग जाएंगे। मानो किसी निर्जन वन की तपती दुपहरी में शिवजी पर किसी ने अखण्ड जल धार कर दी हो।
आज तो 2024 चल रहा है, सम्वत् 2080 चल रहा है। हम आज हैं, मंदिर तो 5080 में भी रहेगा। आज से 5000 साल बाद भी रामलला विराजमान रहेंगे।
महाराजश्री अखण्डानन्द जी की एक बात याद आ गयी। एक भक्त किन्हीं सन्त के पास आकर बोला, प्रभु, भगवान के दर्शन कैसे होंगे? महाराज बोले, “कहाँ से आ रहे हो?” वह बोला, “कनकभवन से आ रहा हूँ।” महाराज बोले, “यदि कनकभवन में भगवान के दर्शन नहीं हुए तो कैसे भी भगवान के दर्शन नहीं हो सकते।”
रामलला स्वयं प्रकट रामलला हैं, विग्रह नहीं है ये देव हैं, इस रूपमाधुरी को भला कोई प्राकृत कहेगा? महाराजश्री प्रेमानन्द जी एक बार बोले, “देवता भोगयोनि है, मनुष्य जन्म को तरसते हैं देव, कि इस रूपमाधुरी का पान हो जाए, कथा का श्रवण हो जाए, मोक्ष लेने के लिए तो देवों को भी धरती पर आना होगा।”
जब भगवान का अवतार हुआ, तो देवता धरती पर आ आकर दर्शन करते, यह लीलासुख स्वर्ग में नहीं है। एक बार जब शुकदेवजी ने भागवत सुनाई तो देवता कथा सुनने को बहुत तरसे। आज फिर वह क्षण आ गया, कि ऐसे सुंदर मंदिर में भगवान् विराजमान होने जा रहे हैं, मानो साकेत धाम में आसन सजा है।
यह वही गर्भगृह है, जहाँ कौशल्या माँ ने टेर लगाई है, “कीजे सिसुलीला, अतिप्रिय सीला” शिशु लीला करो प्रभु , मुझे वही प्रिय है, “यह सुख परम अनूपा”। यही वह गर्भगृह है “सुनि वचन सुजाना, रोदन ठाना, होहि बालक सुरभूपा” चतुर्भुज विष्णु शिशुरूप हो गए, रो रहे हैं, प्रभु रो रहे हैं। आसमान में देवताओं में धक्का मुक्की हो गयी, झांक रहे हैं कि ये क्या प्रपंच है भैया। “सर्वलोकमहेश्वर रो रहे हैं”। महादेवजी की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं है।
सारे देश में बधाई है। भारत माता रूपी कौशल्या के लाला हुआ है.पृथ्वी को अपना पिया मिल गया। ब्रह्मांड को अपना पिता मिल गया। हिन्दू राष्ट्र को अपना राजा मिल गया।
जय श्री राम