चिपको आंदोलन और आज के संदर्भ में वनों के हालात ,आदिवासी आंदोलन

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चिपको आंदोलन

चिपको आंदोलन और आज के संदर्भ में वनों के हालात ,आदिवासी आंदोलन

चिपको आंदोलन एक प्रमुख पर्यावरण आंदोलन था जो 20वीं सदी के मध्य में भारतीय राज्य उत्तराखंड में हुआ। इस आंदोलन के द्वारा, लोगों ने पेड़ों की रक्षा करने के लिए अपने जीवन की भरपूर संकल्पित की। यह आंदोलन पेड़ों की निवास स्थलों और जलवायु की संतुलन को बचाने के लिए किया गया था।

चिपको आंदोलन का आरंभ गोपेश्वर, उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव में हुआ। 1973 में, वन्य फूलों और वन्य जानवरों की संरक्षण के लिए लोगों ने पेड़ों को काटने के विरोध में इस आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा नेतृत्वित हुआ था, जिन्होंने अपने शरीरों को पेड़ों के आसपास लेटकर खड़ा किया ताकि कटाई ना हो सके।

चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था पेड़ों की रक्षा करना और वन्य जीवन को संरक्षित करना। यह आंदोलन लोकतांत्रिक तरीके से संचालित हुआ और समाज में जागरूकता फैलाने का माध्यम बना। लोगों ने नेतृत्व, शिक्षा, और लोगों के सहयोग के माध्यम से इसे सफल बनाने का प्रयास किया।

चिपको आंदोलन ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह आंदोलन ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए संजीवनी रूप बनाया और लोगों को जागरूक किया कि वन्य जीवन और जलवायु संरक्षण का महत्व है।

चिपको आंदोलन का सफलता की वार्ता पूरी दुनिया में फैल गई और इसने अन्य पर्यावरण आंदोलनों को प्रेरित किया। इसके प्रमुख उपलब्धियों में वन्य जीवन संरक्षण के कानूनों में संशोधन, और प्राकृतिक आपातकालीन स्थितियों के लिए राहत के लिए वातावरणीय संरक्षण के प्राथमिकताओं को शामिल किया जाता है।

चिपको आंदोलन को सफल बनाने वाले कुछ मुख्य आंदोलनकर्ता

चंद्रावती देवी :

वह एक स्थानीय गाँव की महिला थी जिन्होंने अपने साथी महिलाओं के साथ मिलकर पेड़ों की रक्षा के लिए आंदोलन में भाग लिया।

गौरी देवी :

एक और स्थानीय महिला जो चिपको आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।

सुन्दरलाल बहुगुणा :

वह आंदोलन के प्रमुख पुरुष नेता थे और पेड़ों की संरक्षण के लिए लड़ा।

चीमा शेर्पा :

एक और महिला नेत्री जिन्होंने पेड़ों की रक्षा के लिए आंदोलन में अपना योगदान दिया।

बाचन सिंह रावत :

वह भी एक प्रमुख पुरुष नेता थे जो चिपको आंदोलन के समर्थकों के साथ आंदोलन में शामिल हुए।

इन नेताओं और समर्थकों के साथ अन्य भी कई लोगों ने अपना योगदान दिया और चिपको आंदोलन को सफल बनाने में मदद की। इनके संघर्षों के परिणामस्वरूप, आंदोलन ने पेड़ों की संरक्षण को लेकर कई अहम नतीजे प्राप्त किए।

चिपको आंदोलन का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण रहा है और इसने कई महत्वपूर्ण परिणामों को उत्पन्न किया है

पेड़ों की संरक्षण :

चिपको आंदोलन ने पेड़ों और जंगलों की संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाई और लोगों को इनके महत्व को समझने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने पेड़ों की रक्षा के लिए स्वयं संजीवनी उपाय बनाया और पेड़ों को कटने से रोका।

पर्यावरण संरक्षण कानूनों में संशोधन :

चिपको आंदोलन ने प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण को लेकर कानूनों में संशोधन करने की मांग की। इसके परिणामस्वरूप, वन्य जीवन संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, और पर्यावरण संरक्षण को संबंधित कई कानूनों में संशोधन किया गया।

सामुदायिक सहयोग :

चिपको आंदोलन ने सामुदायिक सहयोग को मजबूत किया और लोगों को सामूहिक रूप से काम करने के लिए प्रेरित किया। यह आंदोलन ने समुदायों को साझा उत्पादन, आत्मनिर्भरता, और पर्यावरण संरक्षण के लिए संगठित किया।

जागरूकता और शिक्षा :

चिपको आंदोलन ने पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाई और लोगों को वन्य जीवन, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझाया। इसके परिणामस्वरूप, लोगों की जागरूकता बढ़ी और वे अपने पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी लेने लगे।

पर्यावरणीय और आर्थिक विकास :

चिपको आंदोलन ने पर्यावरणीय और आर्थिक विकास के संरक्षित मॉडल को प्रस्तुत किया, जो पर्यावरण की संरक्षण को सही संतुलन में लेकर समृद्धि की और अग्रसर।

आज़ाद भारत में आज भी वनों की कटाई रुकने का नाम नहीं ले रही आदिवासी समाज आंदोलन पर बैठे है लेकिन सरकार के कानों तक उनकी आवाज़ पहुँच नहीं रही ये दुर्भाग्य है मेरे देश का जिसने प्रकर्ति के साथ इतनी छेड़छाड़ चल रही है लोगो के विरोध करने पर भी सरकार को कोई फ़र्क नहीं, क्या करेंगे ऐसे विकास का जिस्म पर्वत और जंगल ही नहीं है?

छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में कोयला खदान खोलने के लिए पिछले एक सप्ताह से हजारों पेड़ों की कटाई हुई है, लेकिन स्थानीय आदिवासी पेड़ो की कटाई का विरोध कर रहे है। ये विरोध अब बड़े स्तर में शुरू हो गया है।
कांग्रेस ने राज्य की बीजेपी सरकार को घेरने के लिए बड़े आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है।वहीं दूसरी तरफ हसदेव में जंगल की कटाई के लिए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है।
कमाल है देश का जिसकी सरकार है वो पूर्व सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है।उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि हसदेव में जंगलों की कटाई का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की सरकार है।पूर्व की भूपेश बघेल सरकार के आदेश पर ही हसदेव जंगल की कटाई की गई है, कितनी हास्यास्पद बात है अगर ये फ़ैसला ग़लत था तो इसके ऊपर रोक क्यों नहीं लगाई गई ? क्या सरकार एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप ही लगाएगी या वनों की कटाई रोकने का प्रयास भी करेगी।
क्या कहना है वन प्रेमी और वहाँ के ऑफिसियल का कहना है कि ये सब एक पूँजीपति को लाभ पहुँचाने के लिए किया गया है ।
हसदेव अरण्य में जब पेड़ों की कटाई शुरू हुई तो पुलिस जवानों की तैनाती की गई थी।इसके अलावा जो पर्यावरण प्रेमी है उनके नजरबंद किया गया था।
इसी में से एक छत्तीसगढ़ बचाव संगठन के प्रमुख आलोक शुक्ला ने ट्विटर पर हसदेव को बचाने के लिए अभियान चला रहे है।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि ये विनाश सिर्फ एक पूंजीपति की जिद के लिए है, जो हसदेव से ही कोयला निकालकर मुनाफा कमाना चाहता है।जो हसदेव असंख्य जीव, जंतुओं का घर है, हमारी सांसें जिससे चलती हैं, उसका ऐसा विनाश, प्रकृति कभी माफ नहीं करेगी।
यह पूरा इलाक़ा हाथियों का बसेरा है अगर जंगल काटे गए तो कहाँ जाएँगे ये हाथी ?
अंबानी के बेटे ने जब हाथियों की सेवा के लिये कुछ प्रयत्न किए तो पूरा सोशल मीडिया जगत गुणगान करते ना थका क्यों? आज इन आदिवासियों की सुनने वाला कोई नहीं है क्योंकि इन्होंने अपनी बात बताने के लिए किसी मीडिया वाले को पैसे नहीं खिलाए।

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