11 नवम्बर 1675 धर्म रक्षा हेतु बलिदान : गुरु तेगबहादुर

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Guru Teg Bahadur

11 नवम्बर 1675 

बलिदान दिवस 

धर्म रक्षा हेतु बलिदान : गुरु तेगबहादुर ( Guru Teg Bahadur )

एक बार सिखों के नवें गुरु श्री तेगबहादुर जी हर दिन की तरह दूर-दूर से आये भक्तों से मिल रहे थे। लोग उन्हें अपनी निजी समस्याएँ तो बताते ही थे; पर मुस्लिम अत्याचारों की चर्चा सबसे अधिक होती थी।

 मुस्लिम आक्रमणकारी हिन्दू गाँवों को जलाकर मन्दिरों और गुरुद्वारों को भ्रष्ट कर रहे थे। नारियों का अपमान और जबरन धर्मान्तरण उनके लिए सामान्य बात थी। गुरुजी सबको संगठित होकर इनका मुकाबला करने का परामर्श देते थे।

पर उस दिन का माहौल कुछ अधिक ही गम्भीर था। कश्मीर से आये हिन्दुओं ने उनके दरबार में दस्तक दी थी। वहाँ जो अत्याचार हो रहे थे, उसे सुनकर गुरुजी की आँखें भी नम हो गयीं।

 वे गहन चिन्तन में डूब गये। रात में उनके पुत्र गोविन्दराय ने जब चिन्ता का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात बताकर कहा -लगता है कि अब किसी महापुरुष को धर्म के लिए बलिदान देना पड़ेगा; पर वह कौन हो, यही मुझे समझ नहीं आ रहा है।

गोविन्दराय ने एक क्षण का विलम्ब किये बिना कहा – पिताजी, आज आपसे बड़ा महापुरुष कौन है ? बस, यह सुनते ही गुरु जी के मनःचक्षु खुल गये। 

उन्होंने गोविन्द को प्यार से गोद में उठा लिया। अगले दिन उन्होंने कश्मीरी हिन्दुओं को कह दिया कि औरंगजेब को बता दो कि यदि वह गुरु तेगबहादुर को मुसलमान बना ले, तो हम सब भी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।

कश्मीरी हिन्दुओं से यह उत्तर पाकर औरंगजेब प्रसन्न हो गया। उसे लगा कि यदि एक व्यक्ति के मुसलमान बनने से हजारों लोग स्वयं ही उसके पाले में आ जायेंगे, तो इससे अच्छा क्या होगा ? 

उसने दो सरदारों को गुरुजी को पकड़ लाने को कहा। गुरुजी अपने पाँच शिष्यों भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाला, भाई चीमा और भाई ऊदा के साथ दिल्ली चल दिये।

मार्ग में सब जगह हिन्दुओं ने उनका भव्य स्वागत किया। इस पर औरंगजेब ने आगरा में उन्हें गिरफ्तार करा लिया।

 उन्हें लोहे के ऐसे पिंजड़े में बन्द कर दिया गया, जिसमें कीलें निकली हुई थीं। दिल्ली आकर गुरुजी ने औरंगजेब को सब धर्मावलम्बियों से समान व्यवहार करने को कहा; पर वह कहाँ मानने वाला था।

 उसने कोई चमत्कार दिखाने को कहा; पर गुरुजी ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस पर उन्हें और उनके शिष्यों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से खूब प्रताड़ित किया गया; 

पर वे सब तो आत्मबलिदान की तैयारी से आये थे। अतः औरंगजेब की उन्हें मुसलमान बनाने की चाल विफल हो गयी।

सबसे पहले नौ नवम्बर को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीर दिया गया। अगले दिन भाई सतिदास को रुई में लपेटकर जलाया गया।

 भाई दयाला को पानी में उबालकर मारा गया। गुरुजी की आँखों के सामने यह सब हुआ; पर वे विचलित नहीं हुए। 

अन्ततः 11 नवम्बर, 1675 को दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरुजी का भी शीश काट दिया गया। जहाँ उनका बलिदान हुआ, वहाँ आज गुरुद्वारा शीशगंज विद्यमान है।

 औरंगजेब हिन्दू जनता में आतंक फैलाना चाहता था; पर गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान से हिन्दुओं में भारी जागृति आयी। 

उनके बारे में कहा गया कि उन्होंने सिर तो दिया; पर सार नहीं दिया। आगे चलकर उनके पुत्र दशम गुरु गोविन्दसिंह जी ने हिन्दू धर्म की रक्षार्थ खालसा पन्थ की स्थापना की।

11 November 1675 

Sacrifice Day Sacrifice to Protect Religion : Guru Teg Bahadur

Guru Teg Bahadur Once, the ninth Guru of the Sikhs, Shri Teg Bahadur Ji was meeting the devotees who had come from far and wide like every day.

 People used to tell him their personal problems; But Muslim atrocities were discussed the most. Muslim invaders were burning Hindu villages and corrupting temples and Gurudwaras. 

Insult of women and forced conversion were normal for them. Guruji used to advise everyone to unite and fight against them. 

But the atmosphere of that day was much more serious. The Hindus who had come from Kashmir had knocked at his court. 

Guruji’s eyes became moist after hearing about the atrocities that were taking place there. He was immersed in deep thought.

 At night, when his son Govindrai asked the reason for his worry, he told him everything and said – It seems that now a great man will have to sacrifice for the religion; But I am not able to understand who he is. 

Without wasting a moment, Govindrai said – Father, who is a greater man than you today? Just hearing this, Guru ji’s mental eyes opened. He lovingly took Govind in his lap. 

The next day he told the Kashmiri Hindus to tell Aurangzeb that if he converts Guru Teg Bahadur into a Muslim, then we all will also accept Islam.

 Aurangzeb was happy to receive this reply from Kashmiri Hindus.

 He felt that if one person becomes a Muslim, thousands of people will automatically join his side, then what would be better than this? He asked two chieftains to arrest Guruji.

 Guruji went to Delhi with his five disciples Bhai Matidas, Bhai Satidas, Bhai Dayala, Bhai Cheema and Bhai Uda. Hindus gave him a grand welcome everywhere on the way. 

On this Aurangzeb got him arrested in Agra. He was locked in an iron cage with nails protruding from it. 

After coming to Delhi, Guruji asked Aurangzeb to treat all religious people equally; But he was not going to agree. He asked to show a miracle; But Guruji did not accept it.

 On this he and his disciples were tortured physically and mentally; But they all came prepared to sacrifice themselves. 

Therefore, Aurangzeb’s move to convert them into Muslims failed. First of all, on November 9, Bhai Matidas was cut into two parts with a saw. 

The next day, Bhai Satidas was wrapped in cotton and burnt. Bhai Dayala was killed by boiling water. All this happened in front of Guruji’s eyes; But he was not perturbed.

 Finally, on November 11, 1675, Guruji was also beheaded in Chandni Chowk, Delhi. Gurudwara Sheeshganj exists today where he was sacrificed.

 Aurangzeb wanted to spread terror among the Hindu people; But the sacrifice of Guru Teg Bahadur ji brought great awakening among the Hindus.

 It was said about him that he gave his head; But did not give the gist. Later, his son, the tenth Guru Govind Singh ji established the Khalsa sect to protect the Hindu religion.

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