27 सितम्बर 1926:- 

जन्म-दिवस हिन्दू जागरण के सूत्रधार अशोक सिंहल

 इतिहास में आज का दिन 

एक महान हस्ती 

हिंदू हृदय सम्राट

-श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान जिनकी हुंकार से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, वे श्री अशोक सिंहल संन्यासी भी थे और योद्धा भी, पर वे स्वयं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक प्रचारक ही मानते थे।

उनका जन्म आश्विन कृष्ण पंचमी (27 सितम्बर, 1926) को आगरा (उ.प्र.) में हुआ। सात भाई और एक बहिन में वे चौथे स्थान पर थे। मूलतः यह परिवार ग्राम बिजौली (जिला अलीगढ़, उ.प्र.) का निवासी था। उनके पिता श्री महावीर जी शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे।

घर में संन्यासी तथा विद्वानों के आने के कारण बचपन से ही उनमें हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उन्हें स्वयंसेवक बनाया। उन्होंने अशोक जी की माँ विद्यावती जी को संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे प्रभावित होकर उन्होंने अशोक जी को शाखा जाने की अनुमति दे दी।

1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता पाने की खुशी मना रहे थे,पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा ?अशोक जी भी उन्हीं में से एक थे। इस माहौल को बदलने हेतु उन्होंने अपना जीवन संघ को समर्पित कर दिया।

इतिहास में आज का दिन 

बचपन से ही उनकी रुचि शास्त्रीय गायन में रही। संघ के सैकड़ों गीतों की लय उन्होंने बनायी। उन्होंने काशी हिन्दू वि.वि. से धातुविज्ञान में अभियन्ता की उपाधि ली थी। 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो वे सत्याग्रह कर जेल गये। वहां से आकर उन्होंने अंतिम परीक्षा दी और 1950 में प्रचारक बन गये।

प्रचारक के नाते वे गोरखपुर, प्रयाग, सहारनपुर और फिर मुख्यतः कानपुर रहे। सरसंघचालक श्री गुरुजी से उनकी बहुत घनिष्ठता थी। कानपुर में उनका सम्पर्क वेदों के प्रकांड विद्वान श्री रामचन्द्र तिवारी से हुआ। अशोक जी अपने जीवन में इन दोनों का विशेष प्रभाव मानते थे। 1975 के आपातकाल के दौरान वे इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। 1977 में वे दिल्ली प्रांत (वर्तमान दिल्ली व हरियाणा) के प्रान्त प्रचारक बने।

1981 में डा. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में ‘विराट हिन्दू सम्मेलन’ हुआ,पर उसके पीछे शक्ति अशोक जी और संघ की थी। उसके बाद उन्हें ‘विश्व हिन्दू परिषद’ का दाइत्व दे दी गया। एकात्मता रथ यात्रा, संस्कृति रक्षा निधि, रामजानकी रथयात्रा, रामशिला पूजन, रामज्योति आदि कार्यक्रमों से परिषद का नाम सर्वत्र फैल गया।

अब परिषद के काम में बजरंग दल, परावर्तन, गाय, गंगा, सेवा, संस्कृत, एकल विद्यालय आदि कई नये आयाम जोड़े गयेे।श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन ने तो देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा ही बदल दी। वे परिषद के 1982 से 86 तक संयुक्त महामंत्री, 1995 तक महामंत्री, 2005 तक कार्याध्यक्ष, 2011 तक अध्यक्ष और फिर संरक्षक रहे।

सन्तों को संगठित करना बहुत कठिन है, पर अशोक जी की विनम्रता से सभी पंथों के लाखों संत इस आंदोलन से जुड़े।इस दौरान कई बार उनके अयोध्या पहुंचने पर प्रतिबंध लगाये गये, पर वे हर बार प्रशासन को चकमा देकर वहां पहुंच जाते थे। उनकी संगठन और नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम था कि युवकों ने छह दिसम्बर, 1992 को राष्ट्रीय कलंक के प्रतीक बाबरी ढांचे को गिरा दिया। कार्य विस्तार के लिए वे सभी प्रमुख देशों में गये। अगस्त-सितम्बर, 2015 में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के दौरे पर गये थे।

अशोक जी काफी समय से फेफड़ों के संक्रमण से पीड़ित थे। इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को उनका निधन हुआ। वे प्रतिदिन परिषद कार्यालय में लगने वाली शाखा में आते थे। अंतिम दिनों में भी उनकी स्मृति बहुत अच्छी थी। वे आशावादी दृष्टिकोण से सदा काम को आगे बढ़ाने की बात करते रहते थे। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब अयोध्या में विश्व भर के हिन्दुओं की इच्छा के अनुरूप श्री रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण होगा।

27 September 1926:-

 Birthday Ashok Sinhal, 

Founder of Hindu Jagran 

 Today’s day in history

 A great personality hindu heart emperor

 Shri Ashok Sinhal, whose roar filled the hearts of Ram devotees with joy during the Shri Ram Janmabhoomi movement, was both a monk and a warrior, but he considered himself only a preacher of the Rashtriya Swayamsevak Sangh.

 He was born on Ashwin Krishna Panchami (27 September, 1926) in Agra (Uttar Pradesh). He was the fourth among seven brothers and one sister. Originally this family was a resident of village Bijauli (District Aligarh, Uttar Pradesh). His father Shri Mahavir ji held a high position in government service. 

 Due to the presence of monks and scholars in his house, his love for Hindu religion was awakened in him since childhood. While studying in Prayag in 1942, Prof. Rajendra Singh (Rajju Bhaiya) made him a volunteer. He narrated the Sangh’s prayer to Ashok ji’s mother Vidyavati ji. Impressed by this, he allowed Ashok ji to go to the branch. 

 At the time of partition of the country in 1947, Congress leaders were celebrating the joy of getting power, but the hearts of the patriots were burning with the pain that what would be the future of the country in the hands of such power-hungry leaders? Ashok ji was also one of them. To change this environment, he dedicated his life to the Sangh. 

 Today’s day in history 

 Since childhood he was interested in classical singing. He composed the rhythm of hundreds of songs of the Sangh. He studied at Kashi Hindu University. He had obtained the degree of Engineer in Metallurgy from. When the Sangh was banned in 1948, he did Satyagraha and went to jail. Coming from there, he gave the final examination and became a preacher in 1950. 

 As a preacher, he stayed in Gorakhpur, Prayag, Saharanpur and then mainly in Kanpur. He was very close to Sarsanghchalak Shri Guruji. In Kanpur, he came in contact with the great scholar of Vedas, Shri Ramchandra Tiwari. Ashok ji considered both of them to be a special influence in his life. During the Emergency of 1975, he continued mobilizing people in the struggle against the dictatorship of Indira Gandhi. In 1977, he became the provincial campaigner of Delhi province (present day Delhi and Haryana). 

 In 1981, ‘Virat Hindu Conference’ was held in Delhi under the leadership of Dr. Karansingh, but the power behind it was Ashok ji and the Sangh. After that he was given the responsibility of ‘Vishwa Hindu Parishad’. The name of the council spread everywhere through programs like Ekatmta Rath Yatra, Sanskriti Raksha Nidhi, Ramjanaki Rath Yatra, Ramshila Pujan, Ramjyoti etc. 

 Now many new dimensions like Bajrang Dal, Paravartan, Cow, Ganga, Seva, Sanskrit, Ekal Vidyalaya etc. were added to the work of the Council. The Shri Ram Janmabhoomi movement changed the social and political direction of the country. He was the Joint General Secretary of the Council from 1982 to 1986, General Secretary till 1995, Working President till 2005, President till 2011 and then Patron.

 It is very difficult to organize the saints, but due to the humility of Ashok ji, lakhs of saints of all sects joined this movement. During this period, restrictions were imposed several times on their reaching Ayodhya, but every time they reached there by dodging the administration. It was the result of his organizational and leadership abilities that the youth demolished the Babri structure, a symbol of national disgrace, on December 6, 1992. He went to all the major countries to expand his work. In August-September, 2015 also he went on a tour to England, Holland and America. 

 Ashok ji was suffering from lung infection for a long time. Due to this he died on November 17, 2015. He used to come every day to the branch located in the council office. Even in his last days his memory was very good. He always kept talking about taking the work forward with an optimistic attitude. True tribute to him will be paid only when Shri Ramjanmabhoomi temple is built in Ayodhya as per the wishes of Hindus all over the world.

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