आत्मबोध

दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा से जीवन में आए निरुत्साह को हटा कर वैदिक कर्मयोग के पथ पर निरन्तर चलाने की प्रार्थना

अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः । अरं वहन्त्याशवः ॥

(सामवेद – मन्त्र संख्या : 25)

मन्त्रार्थ—

हे (देव) कर्मोपदेशप्रदाता (अग्ने) जगन्नायक परमेश्वर ! ये जो (तव) आपके अर्थात् आप द्वारा रचित (साधवः) कार्यसाधक (आशवः) वेगवान् (अश्वासः) इन्द्रिय, प्राण, मन एवं बुद्धिरूप घोड़े (अरम्) पर्याप्त रूप से (वहन्ति) हमें निर्धारित लक्ष्य पर पहुँचाते हैं, उनको आप (हि) अवश्य (युङ्क्ष्व) कर्म में नियुक्त कीजिए।

व्याख्या –

हे परमात्मदेव ! किये हुए कर्मफल के भोगार्थ तथा नवीन कर्म के सम्पादनार्थ जीवनलक्ष्य तक पहुंचाने वाले शरीररूप रथ तथा इन्द्रिय, प्राण, मन एवं बुद्धि रूप घोड़े आपने हमें दिए हैं। आलसी बनकर हम कभी निरुत्साही और अकर्मण्य हो जाते हैं। आप कृपा कर हमारे इन्द्रिय, प्राण आदि रूप घोड़ों को कर्म में तत्पर कीजिए, जिससे वैदिक कर्मयोग के मार्ग का आश्रय लेते हुए हम निरन्तर अग्रगामी होवें।

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