AATMBODH IN HINDI

आत्मबोध
दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद अनुसार परमात्म-स्तुति से क्या प्राप्त होता है?
*इमꣳ स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया। भद्रा हि नः प्रमतिरस्य सꣳसद्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥*
*(सामवेद — मन्त्र ६६)*
*मन्त्रार्थ—*
(अर्हते) पूजायोग्य (जातवेदसे) सब उत्पन्न पदार्थों के ज्ञाता, सब उत्पन्न पदार्थों में विद्यमान, सकल धन के उत्पादक और वेदज्ञान को प्रकट करनेवाले परमेश्वर के लिए (मनीषया) मनोयोग के साथ (स्तोमम्) स्तोत्र को (संमहेम) सत्कारपूर्वक भेजें, (रथम् इव) जैसे किसी पूज्य जन को बुलाने के लिए उसके पास रथ भेजा जाता है। (अस्य) इस परमेश्वर की (संसदि) संगति में (नः) हमारी (प्रमतिः) प्रखर बुद्धि (भद्रा हि) भद्र ही होती है। हे (अग्ने) तेजस्वी परमात्मन्! (वयम्) हम प्रजाजन (तव) आपकी (सख्ये) मित्रता में (मा) मत (रिषाम) हिंसित होवें।
*व्याख्या—*
अव्यक्तरूप से हृदय में स्थित परमेश्वर हमारे स्तोत्र से जाग जाता है और हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चलनेवाली भद्र बनाकर विनाश से हमारी रक्षा करता है।