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आत्मबोध

दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद के अंतिम मन्त्र में परमात्मा से स्वस्ति(मङ्गल) की प्रार्थना

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

(सामवेद  मन्त्र १८७५)

व्याख्या—

(वृद्धश्रवाः) महान् कीर्तिवाला (इन्द्रः) जगत्पति परमेश्वर (नः) हमें (स्वस्ति) मङ्गल (दधातु) प्रदान करे। (विश्ववेदाः) सब धन का स्वामी (पूषा) पुष्टिप्रदाता जगदीश्वर (नः) हमें (स्वस्ति) मङ्गल (दधातु) प्रदान करे। (अरिष्टनेमिः) जिसकी व्याप्तिरूप परिधि कभी टूटती नहीं ऐसा (तार्क्ष्यः) सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी परमपिता (नः) हमें (स्वस्ति) मङ्गल (दधातु) प्रदान करे। (बृहस्पतिः) महती वेदवाणी का अधीश्वर, सर्वज्ञानमय, प्राचीनों का भी गुरु सर्वेश (नः) हमें (स्वस्ति) मङ्गल (दधातु) प्रदान करे।

मन्त्रार्थ

इन्द्र आदि विविध नामों से वेद में वर्णित, प्रसिद्ध कीर्तिवाले, सुपुष्टिदायक, सर्वान्तर्यामी सर्वज्ञ, लयसहित सामगानों द्वारा गाये गये जगदीश्वर के ध्यान से यथाशक्ति यथासम्भव उसके गुणों को अपने आत्मा में धारण करके सब मनुष्य ऐहिक और पारमार्थिक श्रेष्ठ अस्तित्व, श्रेष्ठ मङ्गल और श्रेष्ठ पूजा को निरन्तर प्राप्त करें।

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