डॉ. राजेंद्र प्रसाद

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dr. rajendra prasad

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को सिवान जिले (बिहार) के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था।

उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। 

12 वर्ष की आयु में उनका विवाह राजवंशी देवी से करवा दिया गया।

इन्होंने छपरा जिले से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।

वर्ष 1905 के बंगाल विभाजन का प्रभाव डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर भी पड़ा तथा उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के समर्थन में विदेशी वस्तुओं को जला दिया। 

इसके साथ ही इन्होंने वर्ष 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में एक स्वयंसेवक के रूप में भाग लेते हुए बाल गंगाधर तिलक, दादाभाई नौरोजी और गोपाल कृष्ण गोखले का भाषण सुना जिसमें वह गोपाल कृष्ण गोखले के विचारों से काफी प्रभावित हुए।

मुजफ्फरनगर में कुछ समय तक अध्यापन कार्य करने के बाद 1909 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए वकालत को अपना पेशा बनाया। 

वर्ष 1915 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात महात्मा गाँधी से हुई जिसके उपरांत प्रसाद उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए।

वर्ष 1917 में महात्मा गाँधी के द्वारा बिहार के चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों को ब्रिटिश शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए चलाए गए ‘चंपारण सत्याग्रह’ में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई तथा चंपारण सत्याग्रह के घटनाक्रमों की स्मृति में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ‘चंपारण में महात्मा गांधी’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी।

मुंबई में आयोजित हुए वर्ष 1934 के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई।

वर्ष 1942 में आयोजित हुए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य थे। भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव पास होते ही तमाम कांग्रेसी नेताओं के साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें अहमदनगर की जेल में बंद कर दिया गया। 

जेल में रहते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ‘इंडिया डिवाइडेड’ नामक पुस्तक लिखी जो तात्कालिक भारतीय राजनीतिक स्थिति का वर्णन करती है।

वर्ष 1946 में गठित हुई अंतरिम सरकार में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को खाद्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के संविधान के लिए गठित संविधान समिति का स्थायी अध्यक्ष बनाया गया।

स्वतंत्रता के उपरांत जब 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ तो भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने का गौरव डॉ राजेंद्र प्रसाद को प्राप्त हुआ तथा 5 वर्ष के सफल कार्यकाल को पूरा करने के बाद पुनः डॉ राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति पद के द्वितीय कार्यकाल के लिए चुना गया।

राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद राजेंद्र बाबू पटना के ‘सदाकत आश्रम’ में जाकर रहने लगे थे।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को वर्ष 1962 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया।

28 फरवरी, 1963 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का देहावसान हो गया।

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