Maharana Raj Singh and Aurangzeb Jihaadi
Can Hinduism rise again ?
When the attacks of Islamic Jihadis started increasing on Mathura, the temple priests there removed the child form of Lord Shri Krishna from the Keshavdev temple
and sent it to Vrindavan to save it from being defiled. Later, a second statue of Lord Krishna was installed in the Keshavdev temple.
When Aurangzeb wanted to demolish the Shrinathji temple of Mathura, the Pandits of the temple came to the shelter of Mewar King Maharana Raj Singh ji with his idol,
who promised that Aurangzeb would destroy the idol of Shrinathji until the heads of one lakh Mewari Rajputs were cut off.
The grand temple which was built by Maharana Raj Singh Ji of Shri Nath Ji in Mewar is still one of the most famous temples not only in Rajasthan but in the whole of India.
When Aurangzeb attacked Mewar and destroyed many temples in Mewar, Raj Singh’s son Bhim Singh, who was leading a contingent of the Mewari army, entered Gujarat and destroyed 300 mosques.
He demonstrated the policy of “Aur Shathe Shathyam Samacharet” (meaning: One should treat the wicked only wickedly/Vidur Niti which was also supported by Acharya Chanakya and Veer Savarkar).
This incident is described in the most authentic historical book of Mewar, Veer. Found in humor. Veer Durgadas Rathod had defeated Aurangzeb and succeeded only by making Maharaj Ajit Singh the king.
Durgadas Rathore’s food, water and sleep were all on the horse’s side. It is sung in the folk song that if Durgadas had not been there, everyone would have died.
Brave Durgadas Rathore was also an expert in the art of guerrilla warfare like Shivaji.
Ajit Singh ji’s father Jaswant Singh ji kept his promise, saved child Ajit Singh ji from Aurangzeb, took him to Mewarnath Rana Raj Singh ji and established the treaty of Mewar-Marwar.
The misfortune of the medieval period is just that Hindus got organized under one union.
Could not fight because Aurangzeb got Mewarnath Rana Raj Singh ji killed, otherwise, Maharana Raj Singh ji was making the policy of forming a united front of Hindus against Islam,
in which Chhatrapati Shivaji Maharaj, Guru Gobind Singh, three powerful states of Rajputana, Amer Even though it was Marwar and Mewar,
they continued to resist locally at different places and everyone defeated Aurangzeb somewhere or the other. During the time of Aurangzeb, Shivaji in the south,
Mewarnath Maharana Raj Singh in Rajputana, Raja Jaswant and Veer Durgadas of Marwar, Mirza Raja Jai Singh of Amer,
Sikh Guru Gobind Singh in the west and Lachit Burphukan in the east, Raja Chhatrasal in Bundelkhand etc.
gave full resistance. And the result of their resistance was that the Mughal dynasty collapsed as soon as Aurangzeb died.
History has witnessed that whenever the terrorists have become extremely barbaric, the Hindus have become more organized and resisted. Hindu is made only for independent consciousness.
Babar ruled for hardly 4 years. Humayun was beaten and sent away. Akbar laid the foundation of the Mughal Empire and it was uprooted by the arrival of Aurangzeb through Jahangir, Shahjahan.
The unstable rule of such a short period is taught as a complete part of history by the name of the Mughal period as if it is the period from the beginning of creation till today.
They were divided into three parts and ruled till the medieval period. When Hindus, after reading their history, will start walking unitedly in the footsteps of their ancestors,
the same day the flag of Hindutva will be hoisted all over the world.
Now, after three generations of this stable (?) rule, many books, syllabi, general knowledge, questions in competitive exams, songs in
advertisements….so much noise has been created as if the entire medieval period revolved around these 150 years. Is.
Whereas at that time Mewar was not with them. South and East were also a dream. Now think about it Have the other dynasties that ruled
India for three generations and more than a hundred years, got so much importance or place?
जब इस्लामीक जिहादिओ के हमले मथुरा पर बढ़ने लगे तब वहाँ के मंदिर पुजारियों ने भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को अपवित्र होने से बचाने के लिए केशवदेव मंदिर से हटाकर वृंदावन भेज दिया बाद में केशवदेव मंदिर में भगवान कृष्ण की दूसरी प्रतिमा लगा दी गई ।
जब औरंगजेब ने मथुरा का श्रीनाथ जी मंदिर तोड़ना चाहा तो उनकी मूर्ति लेकर मंदिर के पंडित मेवाड़ नरेश महाराणा राज सिंह जी की शरण में आये थे जिन्होंने वचन दिया था
की जब तक एक लाख मेवाड़ी राजपूतों का शीश ना कट जाये औरंगजेब श्री नाथ जी की मूर्ति ना तोड़ पाएगा और जो भव्य मंदिर मेवाड़ में श्री नाथ जी का महाराणा राज सिंह जी ने बनवाया था
आज भी ना केवल राजस्थान अपितु पुरे भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरो में से एक है जब औरंगजेब ने मेवाड़ पर आक्रमण कर मेवाड़ में कई मंदिर तोड़े तो राज सिंह के पुत्र भीम सिंह जी जो मेवाड़ी सेना की एक टुकड़ी का नैतृत्व कर रहे थे
गुजरात में जा घुसे, 300 मस्जिद तोड़ दी थी’। “और शठे शाठ्यम समाचरेत्”(अर्थ:-दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिये/विदुर नीति जिसका समर्थन आचार्य चाणक्य और वीर सावरकर ने भी किया)
की नीति का प्रदर्शन किया था इस घटना का वर्णन मेवाड़ के सबसे प्रमाणिक इतिहासिक ग्रंथ वीर विनोद में मिलता है ।
वीर दुर्गादास राठौड़ ने औरंगजेब की नाक में दम कर दिया था और महाराज अजीत सिंह को राजा बनाकर ही दम लिया।
दुर्गादास राठौड़ का भोजन, जल और शयन सब अश्व के पार्श्व पर ही होता था।लोकगीत में ये गाया जाता है कि यदि दुर्गादास न होते तो सबकी सुन्नत हो जाती।वीर दुर्गादास राठौड़ भी शिवाजी के जैसे ही छापामार युद्ध की कला में विशेषज्ञ थे।
अजीत सिंह जी के पिता जसवंत सिंह जी कों दिया वचन निभा बालक अजीत सिंह जी कों औरंगज़ेब से बचा मेवाड़नाथ राणा राज सिंह जी के पास ले गए और मेवाड़ मारवाड़ की संधि स्थापित की मध्यकाल का दुर्भाग्य बस इतना है
कि हिन्दू संगठित होकर एक संघ के अंतर्गत नहीं लड़ सके क्यूंकि औरंगज़ेब ने मेवाड़नाथ राणा राज सिंह जी की हत्या करवा दी अन्यथा इस्लाम के विरुद्ध हिन्दुओं का जो संयुक्त मोर्चा बनाने की जो नीति महाराणा राज सिंह जी बना रहे थे
उसमे छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, राजपूताने के तीनो शक्तिशाली राज्य आमेर,मारवाड़ और मेवाड़ होते फिर भी भिन्न भिन्न स्थानों पर स्थानीय रूप से प्रतिरोध करते रहे और औरंगज़ेब कों सभी ने कही ना कही हराया।
औरंगजेब के समय दक्षिण में शिवाजी, राजपूताने में मेवाड़नाथ महाराणा राज सिंह, मारवाड़ के राजा जसवंत एवं वीर दुर्गादास,आमेर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह,पश्चिम में सिख गुरु गोविंद सिंह और पूर्व में लचित बुरफुकन,
बुंदेलखंड में राजा छत्रसाल आदि ने भरपूर प्रतिरोध किया और इनके प्रतिरोध का ही परिणाम था कि औरंगजेब के मरते ही मुगलवंश का पतन हो गया।
इतिहास साक्षी रहा है कि जब जब आततायी अत्यधिक बर्बर हुए हैं, हिन्दू अधिक संगठित होकर प्रतिरोध किया है। हिन्दू स्वतंत्र चेतना के लिए ही बना है।
बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।
इतने अल्प समय के अस्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है ,मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा ।
जब अपने इतिहास को पढ़कर अपने पूर्वाजो के नक़्शे कदम पर हिंदू एकजुट होकर चलना शुरू कर देगा उसी दिन पूरे विश्व में हिंदुत्व का झंडा फहराया जाएगा ।
अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ….इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 150 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।
जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था। अब जरा विचार करें क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्षों तक राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ?