सांई बाबा मुस्लिम, हिंदू या भगवान ?

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sai baba ka sach

28 सितंबर 1835  को जन्म और मृत्यु 15 अक्तूबर 1918  को हुई वो कैसे बन गया भगवान ?

 आपको याद होगा एक बार पर्चे बाटा करते थे हम सब जिसपे लिखा होता था अगर इतने पर्चे लिखकर आगे नहीं बाटे तो साई बाबा नाराज़ हो जाएँगे । एक औरत ने पर्चे बाटें तो उसको लाभ हुआ एक बीमार ने बाटें तो उसकी बीमारी ठीक हो गई एक ने मज़ाक़ में लिया तो उसके घर नुक़सान हुआ । याद आया ये सब इसी साईं का गुणगान परचार परसार करने के लिये हुआ था । 

मंदिरों के माध्यम से चल रही है भारत के इस्लामीकरण की मुहिम

सांई का प्रचार-प्रसार भारत के महापुरूषों और देवी-देवताओं का अपमान कर धीरे-धीरे उन्हें मंदिरों से हटवाकर भारत के इस्लामीकरण की प्रक्रिया की तैयारी है।यदि हिंदू समाज में चेतना नही आई तो भयंकर परिणाम भुगतना होगा।

सांई बाबा के मुस्लिम होने के प्रश्न पर उक्त सांई चरित्र में सारी चीजें स्पष्ट लिखी हैं। जैसे-

वह स्वयं और उनके भक्त ‘अल्लाहोअकबर’ का नारा लगाते थे।

बाबा स्वयं ‘अल्लाह मालिक’ है, बोला करते थे। ‘सबका मालिक एक’ यह सांई का नारा नही था, बल्कि गुरूनानक देव जी का नारा था।

बाबा को नत्र्तकियों का अभिनय तथा नृत्य देखने और गजल कब्बालियां सुनने का शौक था। अल्लाह का नाम सदा उनके होठों पर रहता था।

उक्त पुस्तक (‘सांई सत्चरित्र’)के पेज 37 पर लिखा है।

सांई किबाबा मस्जिद में निवास करने से पहले दीर्घकाल तक तकिया में रहे।

बाबा के माता-पिता या जन्मस्थान का कोई अता-पता किसी पुस्तक से नही मिलता, इसका कारण यही है कि बाबा की असलियत को लोगों से छुपाकर रखा जाए।

पुस्तक के पेज नं. 43 पर लिखा है कि बाबा के लिए चंदन समारोह का एक बार आयोजन किया गया, जिसे कोरहल के एक मुस्लिम भक्त अमीर शक्कल दलाल ने आयोजित कराया था। प्राय: इस प्रकार का उत्सव सिद्घ मुस्लिम संतों के सम्मान में ही किया जाता है।

 बाबा देवी-देवताओं की पूजा का सख्त विरोधी था, वह सब लोगों से देवी-देवताओं की पूजा छोडक़र अपने आपको ही सब कुछ मानने मनवाने का दबाव दिया करता था।

उक्त पुस्तक के पेज 75 पर आया है।)

बाबा की मान्यता थी हिंदुओं के सभी देवी-देवता भ्रमित करने वाले हैं।

पुस्तक के पेज 87 पर आया है कि उन्होंने एक हाजी को अपने पास से 55 रूपये निकालकर दिये। तब से हाजी बाबा से खुश होकर नियमित उनकी मस्जिद में आने लगा।

पुस्तक के पेज 93 पर लिखा है कि एक बार एक मामलतदार अपने एक डाक्टर मित्र के साथ शिरडी आए। डा. का कहना था कि मेरे इष्ट श्रीराम हैं, मैं किसी यवन (मुसलमान) को शीश नही झुकाउंगा।

बाबा अपने भक्तों से आशीर्वाद देते समय हमेशा यही कहता था कि अल्लाह तुम्हारी इच्छा पूरी करेगा। (पेज नं. 104)।

सांई चरित्र की उक्त पुस्तक में ऐसे और भी अनेक प्रमाण हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि बाबा एक मुसलमान था। वह मांसाहारी था और उसके मांस के बर्तनों में कुत्ते तक साथ खा लिया करते थे, वह कई-कई दिन तक नहाता नही था, उनके कपड़े बहुत गंदे रहते थे और 1858 में वह चोरी में पकड़ा गया था।

वह बिरयानी को अपने भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा करता था। जिसके लिए मस्जिद से एक मौलवी आता था और वह फातिहा पढक़र उस प्रसाद को लोगों में बांटने के लिए तैयार करता था।

आज देश के हजारों मंदिरों को एक षडयंत्र के तहत सांई मंदिर में तब्दील किया जा रहा है। जिससे भारतीय धर्म और संस्कृति को नष्ट कर भारत के धार्मिक लोगों की भावनाओं का लाभ उठाकर उनका इस्लामीकरण करने का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है।

सांई चरित्र के पृष्ठ 197 पर बाबा ने स्वयं को एक मुसलमान होना स्वीकार किया है। इसके बावजूद भी लोग उन्हें एक हिंदू देवता के रूप में या भगवान के रूप में पूजने की जिद करते हैं तो इसके पीछे के असली कारण को हमें पहचानना होगा, और यह कारण इन लोगों के सांई मंदिरों से होने वाली कमाई के माध्यम से आर्थिक हितों की पूर्ति होना है।

गौ माता का मांस खाने वाला किस हिंदू ? 

 श्री साईं सत्चरित्र को पढ़िए व स्वयं जानिए इस ढोंगी व पाखंडी को 

 इस किताब को पहली बार 26 नवंबर 1930  को प्रकाशित किया गया । 1944  में अंग्रेज़ी में लिखी गई और इसके बाद काफ़ी भाषाओं में अनुवाद किया गया । 

आख़िर साईं कैसे बना भगवान ?? 

  जब इस ढोंगी की किताब से लोग इसकी तरफ़ आकर्षित नहीं हुए तब हिंदू धर्म का इस्लामीकरण करने के लिए बॉलीवुड  ने कहानियाँ बनानी शुरू की और पर्दे पर लेकर आए  – शिरडी के साईं बाबा  

1977  में फ़िल्म बनती है अमर अकबर एंथोनी जिस्म गाना आता है सिरडी वाले साईं बाबा आया हूँ तेरे दर पे  फिर क्या था संयोगवश फ़िल्म हिट और बाबा सुपरहिट 

फिर 2005  में सीरियल बनाया जाता है  – साई बाबा तेरे हज़ारों हाथ 

आप लोग अब सोच रहे होंगे बॉलीवुड क्यों ऐसा करेगा तो पढ़िए आगे – 

 जो हाजी अली, साईं बाबा, अजमेर शरीफ, बहराइच गाजी बाबा जाकर नाक रगड़ने का हिंदुओं का चलन है यह कोई बहुत पुराना नहीं।

महज 60/70 साल पहले तक इन मुर्दों की कब्रों पर कोई हिंदू नहीं जाता था।

फिर शुरू हुआ नया खेल 

और इसका जिम्मा सौंपा गया हिंदी सिनेमा जगत को।

गाने शुरू हुए:-

किसी को बच्चा नहीं होता था :- या मोहम्मद भर दे मेरी झोली खाली। शिरडी वाले साईं बाबा आया है तेरे दर पर सवाली।

चलो दरगाह पर गाना गाने:- 9 महीने की जगह 4 महीने में ही बच्चा दुनिया में आ गया।

हीरो बुरी तरह घायल होकर अस्पताल में ,हीरो की अम्मा दरगाह पर:-अली मोला अली मोला अली मोला

डॉक्टर ने कहा हीरो की जिंदगी खतरे में। और अली मौला के चमत्कार से हीरो ने आंखें खोल दी।

हीरोइन के पीछे गुंडे पड़े.. हीरोइन भगवान को बचाने के लिए याद करती है…हीरो बचाता है:- अल्लाह अल्लाह तारीफ तेरी।

और भी बहुत इस्लामीकरण की गंध फैलाने के लिए:-

कुछ तो पूरी की पूरी फिल्में ही इस्लाम के झंदुपने पर छाप डाली।

और झूठ सही पर चमत्कार को नमस्कार और हिंदू लेट कर दंडवत हो गया.. उठा पहुंच गया दरगाह पर।

मूर्खता, कायरपन, हीन भावना के शिकार, दब्बूपने के आपको ढेरों उदाहरण मिलेंगे। लेकिन इतिहास की वेदना और पीड़ा भूलकर अपने पूर्वजों के हत्यारों, अपनी बहन बेटियों की नीलामी करने वाले बलात्कारियों, हमारी आस्था के प्रतीक हमारे मंदिरों को तोड़ने वाले दुष्ट अधर्मियों की कब्रों पर जाने वाले हीन सिर्फ हिंदुओं में मिलेंगे। वेभी एक दो नहीं करोड़ों।

मेरा साईं से कोई ज़मीनी विवाद नहीं है बस आप लोगो को सच्चाई बताने के लिए लिख रहा हूँ । 

इससे आगे आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की साईं का बाप कौन था ? 

क्या सच में साईं की माँ धंधा करती थी ? 

क्या साईं के अब्बा ने रानी लक्ष्मीबाई को मरवाया था ? 

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